फरवरी में तापमान सामान्य से ज्यादा रहने और मार्च से लेकर अभी तक रुक – रुककर बारिश होने एवं तेज हवाएं चलने से गेहूं के उत्पादन का सही अनुमान नहीं लग पा रहा है। इस बार यानी मौजूदा फसल वर्ष के दौरान बोआई में इजाफा देखा गया था। मौजूदा फसल वर्ष 2022-23 (जुलाई-जून) में रिकॉर्ड 343.2 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में गेहूं की बोआई की गई। जानकारों के मुताबिक पछेती फसल को बारिश से फायदा हुआ है मगर अगेती फसल को तेज हवा और बारिश से नुकसान पहुंचा है। बारिश से पछेती फसल के दाने पूरी तरह तैयार होने और पकने में मदद मिली मगर पूरी तरह तैयार हो चुकी अगेती फसल की गुणवत्ता पर इससे असर पड़ने की संभावना है।
अलग-अलग क्षेत्रों से जो रिपोर्ट आ रही हैं उसके मुताबिक तेज हवाओं के साथ बारिश की वजह से कहीं-कहीं गेहूं के दाने टूट गए हैं या काले पड़ गए हैं। दानों के सिकुड़ने की बात भी सामने आ रही है। केंद्र ने इसी सोमवार को कहा था कि प्रमुख उत्पादक राज्यों में बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से गेहूं की 8-10 फीसदी फसल को नुकसान होने का अनुमान है। मगर देर से बोआई वाले क्षेत्रों में बेहतर उपज की संभावना से इसकी भरपाई हो सकती है।
कुछ राज्यों खासकर मध्य प्रदेश में नए गेहूं की आवक मार्च में ही शुरू हो चुकी है। मगर मंडी में आ रही फसल में नमी की मात्रा अधिक है। इस वजह से कारोबारी और बड़ी कंपनियां खरीद से परहेज कर रही हैं। कारोबारी किसानों से गेहूं खरीद भी रहे हैं तो एमएसपी से कम भाव दे रहे हैं। केंद्रीय खाद्य सचिव संजीव चोपड़ा ने इसी गुरुवार को कहा कि मध्य प्रदेश में गेहूं की खरीद के लिए गुणवत्ता मानकों में ढील दी गई है और पंजाब तथा हरियाणा में भी जल्द ही ऐसा करने पर विचार किया जाएगा। नैशनल कमोडिटीज मैनेजमेंट सर्विसेज (एनसीएमएल) के चेयरमैन सिराज चौधरी को लगता है कि एमएसपी पर खरीद और गुणवत्ता मानकों में ढील के कारण किसान सरकारी एजेंसियों को ही ज्यादातर गेहूं बेचेंगे। भारतीय खाद्य निगम और राज्य एजेंसियां कई राज्यों में खरीद शुरू कर चुकी हैं।
ज्यादातर विशेषज्ञ मान रहे हैं कि आगे मौसम साफ रहा और बारिश नहीं हुई तो गेहूं का उत्पादन 10.5 करोड़ टन के करीब रह सकता है। मगर मौसम खराब रहा तो उत्पादन 10 करोड़ टन के नीचे जा सकता है। सिराज चौधरी के मुताबिक बारिश के कारण उत्पादन में कमी तो 1 से 2 फीसदी ही रहेगी मगर फसल की गुणवत्ता पर ज्यादा असर पड़ सकता है। इसका मतलब है कि जिन किसानों की फसल बरबाद हुई है, उन्हें अपनी उपज औने-पौने भाव पर बेचनी होगी। वहीं ग्रीन एग्रेवल्यूशन प्राइवेट लिमिटेड (देहात) में कमोडिटी रिसर्च हेड इंद्रजीत पॉल का अनुमान है कि इस साल गेहूं की फसल 10 से 10.1 करोड़ टन रह सकती है।
गेहूं का उत्पादन (मिलियन टन)
2022-23 -112.18 (अनुमान )
2021-22-107.74
2020-21 -109.59
2019-20 -107.86
2018-19 – 103.60
2017-18 – 99.87
2016-17- 98.51
2015-16 – 92.29
2014-15 – 86.53
2013-14 – 95.85
2012-13 – 93.51
फरवरी में जारी सरकार के दूसरे अग्रिम अनुमानों के मुताबिक इस वर्ष 11.22 करोड़ टन गेहूं का उत्पादन हो सकता है। पिछले साल (2021-22) मार्च में तापमान में रिकॉर्ड बढोतरी और लू के कारण गेहूं का उत्पादन गिरा था। सरकारी अनुमान के अनुसार तब 10.77 करोड़ टन गेहूं हुआ था। मगर बाजार सूत्रों का कहना है कि उत्पादन गिरकर 9.7 करोड़ टन ही रह गया था। यूएस डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर ने भी बीते साल के लिए 9.9 करोड़ टन गेहूं का उत्पादन अनुमान लगाया था। 2020-21 में रिकॉर्ड 10.96 करोड़ टन गेहूं हुआ था।
उत्पादन घटने और कीमत न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से अधिक रहने के कारण पिछले साल सरकारी खरीद भी काफी कम रही थी क्योंकि किसानों ने निजी कंपनियों और कारोबारियों को ऊंचे भाव पर गेहूं बेचना पसंद किया था। पिछले साल सरकारी केंद्रों पर केवल 1.88 करोड़ टन गेहूं बिका था, जो 2021-22 के 4.33 करोड़ टन गेहूं की तुलना में 56.58 फीसदी कम रहा। इस साल 3.41 करोड़ टन गेहूं खरीदने का सरकार का लक्ष्य है।
गेहूं की सरकारी खरीद (मिलियन टन)
2022-23 – 18.79
2021-22 – 43.34
2020-21 – 38.99
2019-20 – 34.13
2018-19 – 35.79
2017-18 – 30.82
2016-17 – 22.96
2015-16 – 28.08
2014-15 – 28.13
2013-14 – 25.07
2012-13 – 38.21
2011-12 – 28.33
2010-11 – 22.51
गेहूं की बढ़ती कीमतों पर को काबू में करने के लिए सरकार ने जनवरी और फरवरी में खुले बाजार में 50 लाख टन गेहूं बेचने का फैसला किया। इसके बाद भी 1 अप्रैल 2023 को सरकार के पास बफर स्टॉक में तकरीबन 85 लाख गेहूं बचे रहने की संभावना है, जो 75 लाख टन की सरकार की न्यूनतम बफर स्टॉक सीमा से अधिक है। पिछले महीने की शुरुआत में सरकार के पास 116.7 लाख टन बफर स्टॉक था, जबकि अप्रैल 2022 में केंद्रीय पूल में 190 लाख टन गेहूं का स्टॉक था।
सेंट्रल पूल में गेहूं का बफर स्टॉक (मिलियन टन)
1 अप्रैल 2022 – 19
1 अप्रैल 2021 – 27.30
1 अप्रैल 2020 – 24.77
1 अप्रैल 2019 – 17
1 अप्रैल 2018 – 13.23
1 अप्रैल 2017 – 8.06
1 अप्रैल 2016 – 14.54
1 अप्रैल 2015 – 17.22
1 अप्रैल 2014 – 17.83
1 अप्रैल 2013 – 24.21
1 अप्रैल 2012 – 19.95
1 अप्रैल 2011 – 15.36
खुले बाजार में गेहूं बिक्री की सरकारी घोषणा से पहले जनवरी के मध्य में भाव 3,200 रुपये प्रति क्विंटल तक चले गए थे। लेकिन जनवरी के आखिरी हफ्ते में 30 लाख टन गेहूं की खुली बिक्री के फैसले के बाद भाव घटने लगे। फरवरी में सरकार ने 20 लाख टन गेहूं और बेचने की निर्णय लिया और इसका आरक्षित मूल्य भी घटाकर 2,125 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया। 15 मार्च तक सरकार ने 33.77 लाख टन गेहूं खुले बाजार में बेचा है। इन सभी फैसलों का असर गेहूं की कीमतों पर हो रहा है। साथ ही आवक भी कमोबेश सभी प्रमुख उत्पादक राज्यों से हो रही है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी गेहूं की मौजूदा कीमतें पिछले साल के मुकाबले तकरीबन 30 फीसदी कम हैं। यूक्रेन और रूस के बीच शुरू हुई जंग के कारण आपूर्ति में रुकावट आई, जिससे पिछले साल मई में गेहूं (EURONEXT) के अंतरराष्ट्रीय भाव बढ़कर 450 डॉलर प्रति टन से ऊपर चले गए थे, जो अब 280 डॉलर प्रति टन के आसपास हैं। परिणामस्वरूप गेहूं की कीमत कई राज्यों में तो एमएसपी से नीचे यानी 1,800 से 2,000 रुपये प्रति क्विंटल तक रह गईं, एमएसपी 2,125 रुपये प्रति क्विंटल है। जानकारों के अनुसार वैश्विक बाजार में कीमतों में नरमी और नई आवक के बीच गेहूं की कीमतों में तेजी के आसार नहीं हैं। उलटे उत्पादन सरकार के अनुमानों पर खरा उतरा तो दाम घट सकते हैं। लेकिन आगे मौसम बिगड़ा रहा तो गेहूं का उत्पादन और गुणवत्ता दोनों घटेंगे और भाव चढ़ सकते हैं। देश में इसकी कीमतें उत्पादन और सरकारी खरीद पर ही निर्भर करेंगी। इंद्रजीत पॉल की मानें तो निकट अवधि में गेहूं की कीमतों पर दबाव बन सकता है लेकिन उसके बाद कीमतों में तेजी आएगी।
गेहूं और आटे के मासिक औसत खुदरा भाव (रुपये /किग्रा )
माह गेहूं आटा
अप्रैल 22 28.93 32.38
मई 22 29.35 32.97
जून 22 29.72 33.67
जुलाई 22 29.88 33.88
अगस्त 22 30.56 35.08
सितंबर 22 30.84 35.91
अक्टूबर 22 30.83 36.06
नवंबर 22 31.38 36.64
दिसंबर 22 31.95 36.96
जनवरी 23 32.79 37.51
फरवरी 23 33.21 37.8
मार्च 23 32.21 37.07
(स्रोत : उपभोक्ता मामलों का विभाग)
उत्पादन में कमी और सरकारी खरीद में गिरावट को देखते हुए सरकार ने पिछले साल मई में गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था। सरकार के इस कदम का उद्देश्य देश में गेहूं की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करना था। बाद में गेहूं के आटे, सूजी और मैदा के निर्यात को भी प्रतिबंध के दायरे में लाया गया। इसके बावजूद कम आपूर्ति के कारण कीमतें जनवरी, 2023 तक लगातार बढ़ती रहीं। जानकारों के अनुसार सरकार अभी उत्पादन और सरकारी खरीद पर नजर जमाए है। अगर उत्पादन 10.5 करोड़ टन के आसपास रहा और सरकारी खरीद लक्ष्य के मुताबिक रही तो केंद्र निर्यात से प्रतिबंध हटा सकती है। लेकिन अगर उत्पादन और सरकारी खरीद लक्ष्य के अनुरूप नहीं रही तो निर्यात से रोक हटने की गुंजाइश नहीं होगी। जानकार बताते हैं कि कि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना को दिसंबर, 2022 के बाद नहीं बढ़ाने के फैसले के बाद भी सरकार को चालू वित्त वर्ष के लिए राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत देश भर के गरीब परिवारों को आवंटन तथा अन्य लोक कल्याणकारी योजनाओं के तहत आवंटन के लिए तकरीबन 5.5 से 6 करोड़ टन गेहूं और चावल की जरूरत होगी। इसमें 2.5 से 3 करोड़ टन गेहूं की जरूरत पड़ सकती है। हालांकि सरकार गेहूं खरीद में कमी देखते हुए पिछले वित्त वर्ष में गेहूं आवंटन में कटौती कर चावल से उसकी भरपाई कर रही थी। मौजूदा वित्त वर्ष में 31 जनवरी तक कुल 2.2 करोड़ टन गेहूं की निकासी केंद्रीय पूल से हुई है, जबकि वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून और अन्य योजनाओं के तहत आवंटन के लिए केंद्रीय पूल से करीब 5.1 करोड़ टन गेहूं निकाला गया था। मगर इन दोनों वर्षों में प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत आवंटन भी शामिल है। कोरोना महामारी के दौरान केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना की शुरुआत की थी। जिसके तहत 80 करोड़ गरीब लोगों को 5 किलो मुफ्त अनाज दिया जा रहा था।
सरकार के पास 1 अप्रैल, 2023 को तकरीबन 80 से 90 लाख टन गेहूं है। इंद्रजीत पॉल के मुताबिक सरकारी एजेंसियां कम से कम 3 करोड़ टन गेहूं खरीदने की पुरजोर कोशिश करेंगी। सरकार ने इस साल 3.41 करोड़ टन गेहूं खरीद का लक्ष्य रखा है। अगले वर्ष देश में आम चुनाव हैं। इसलिए सरकार ज्यादा से ज्यादा खरीद करना चाहेगी ताकि देश में कीमतें काबू करना आसान हो। इसलिए निर्यात से प्रतिबंध पूरी तरह हटाने की संभावना कम ही है। हां, पर्याप्त सरकारी खरीद के बाद सरकार कुछ शर्तों के साथ निर्यात में ढील दे सकती है। वित्त वर्ष 2021-22 में भारत से रिकॉर्ड 72 लाख टन गेहूं का निर्यात हुआ, जबकि 2020-21 में केवल 21.5 लाख टन गेहूं निर्यात किया गया था। सिराज चौधरी के मुताबिक सरकार जल्दबाजी में निर्यात पर प्रतिबंध नहीं हटाएगी। वैसे भी पिछले साल के विपरीत, अभी भारतीय गेहूं कीमतों के मामले में वैश्विक बाजारों में बहुत प्रतिस्पर्धी नहीं है।