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खाद्य तेल के आयात का असर पड़ेगा किसानों पर

Last Updated- December 11, 2022 | 2:15 AM IST

देश में खाद्य तेल के आयात में बढ़ोतरी हो रही है। वर्ष 2008-09 के पहले पांच महीने में खाद्य तेल का आयात 34.34 लाख टन का आयात किया गया।
पिछले साल समान अवधि में खाद्य तेल के आयात में 15 लाख टन तक का उछाल आया। खरीफ की तिलहन फसलों के उत्पादन को जबरदस्त झटका लगा और यह वर्ष 2007-08 के 1.64 करोड़ टन के मुकाबले 1.50 करोड़ टन हो गया।
मूंगफली और सोयाबीन फसलों के उत्पादन में कमी आने से उसका असर तेल की कीमतों पर भी पड़ा। इसी वजह से ज्यादा आयात की स्थिति बनी। दिसंबर में तेल के आयात में 442,000 टन की बढ़ोतरी हुई और जनवरी में लगभग 400,000 टन और फरवरी में 300,000 टन का आयात किया गया।
हालांकि मार्च में आयात में वृद्धि में गिरावट आई। इसकी वजह यह थी कि यहां तेल का भंडार बढ़ने लगा। कच्चे पाम तेल (सीपीओ)के आयात में कोई आयात शुल्क नहीं लगाया गया। इसके अलावा हाल में कच्चे सोयाबीन तेल पर लगाए गए 20 फीसदी सीमा शुल्क को भी हटा दिया गया। दरअसल यह खाद्य तेल की कीमतों को कम करने की सरकार की रणनीति का हिस्सा था।
खाद्य तेल की कीमतों में एक वर्ष पहले के मुकाबले 30 फीसदी तक की गिरावट आई है। तेल के आयात पर अगर शुल्क फिर से लगाया जाता है तो किसानों को रेपसीड-मस्टर्ड सीड के लिए 1,830 रुपये न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बेहतर प्रीमियम पाने का मौका होगा।
सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन के मुताबिक रबी की सरसों फसल में इस बार 65.5 लाख टन की बढ़ोतरी हुई है जो पिछले रबी सीजन में 45.9 लाख टन थी। एसईए के अध्यक्ष अशोक सेठिया का कहना है कि किसानों के लिए बहुत मुश्किल की घड़ी है क्योंकि 42 फीसदी के बेंचमार्क स्तर के मुकाबले तेल का तत्व बेहद कम यानी 38-39 फीसदी है।
सूर्यमुखी की फसल बहुत बड़े पैमाने पर नहीं उगाई जाती लेकिन इसके बीजों की बढ़ती कीमतों की वजह से किसानों को असंतोष हो रहा है। सरसों और सूर्यमुखी के बीजों की बाजार में ज्यादा आवक हुई है इसकी वजह से किसान मौजूदा कीमत पर अपनी फसल को नहीं देना चाहते हैं।
किसान फिलहाल थोड़ी राहत की खोज में हैं उनकी परेशानी यही है कि सरकार करमुक्त तेल के आयात के लिए ही प्रतिबद्ध है। वर्ष 2007-08 के दौरान 56 लाख टन खाद्य तेल के आयात से ही यह साबित होता है कि भारत दुनिया के बाजार से तेल की खरीदारी करने से दूर नहीं रह सकता है।
वास्तव में भारत और चीन की खरीदारी का ही बड़ा असर दुनिया में तेल की कीमतों पर पड़ता है।  बड़े स्तर की खरीदारी की वजह से कच्चे पाम तेल और मलेशियाई पाम तेल के भंडार बन चुका है। इसकी वजह से कच्चे पाम तेल की कीमतों में भी तेजी आई है। चीन ने रिकॉर्ड स्तर पर रेपसीड का का आयात किया है। हालांकि इस साल स्थानीय फसल भी भरपूर हुई है।
सेठिया का कहना है, ‘इस वक्त कोई भी आयात के खिलाफ नहीं है क्योंकि हमारे यहां प्रति व्यक्ति तेल का उपभोग 11.5 किलोग्राम से नीचे है। नवंबर से ही समय-समय पर आयात किया जा रहा है, इसी वजह से हमारे कृषि क्षेत्र को नुकसान हो रहा है। वहीं तिलहन की पेराई मिलों पर भी दबाव बन रहा है।’
कारोबारी बहुत ज्यादा आयात पर ध्यान दे रहे थे लेकिन अब वह अपने ही बनाए जाल में फंस गए हैं। नई सरकार को यह जरूर सोचना होगा कि आयात की वजह से किसान पांच सालों के अंदर प्रति हेक्टेयर 1,300 किलोग्राम अपनी उत्पादकता बढ़ाने के लक्ष्य को लेकर हतोत्साहित न हो जाएं। यह उद्देश्य पूरा करने के लिए तिलहन विकास फंड बनाया जाएगा।
वैसे कई लोगों को यह संदेह हाता है कि कर में छूट एक अस्थायी कदम था और सीमा कर को फिर से लागू करके एक मौका बनाया गया है।

First Published - April 23, 2009 | 9:36 AM IST

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