नेपाल के युवाओं के नेतृत्व में हफ्तों तक चले विरोध-प्रदर्शन के बाद पिछली सरकार सत्ता से बेदखल हो गई और नई सरकार के सत्तासीन होते ही नेपाल में नए राजनीतिक दौर की शुरुआत हो गई। देश की आर्थिक स्थिति के विरोध में शुरू हुआ यह प्रदर्शन सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगने के बाद और उग्र हो गया और पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की की अंतरिम प्रधानमंत्री बनने के बाद खत्म हुआ। उन्होंने अपना कार्यकाल भ्रष्टाचार से लड़ने के वादे के साथ शुरू किया है, जो इस नाजुक अर्थव्यवस्था के सामने सबसे बड़ी चुनौती है।
नेपाल की वैश्विक भ्रष्टाचार रैंकिंग में कोई खास बदलाव नहीं आया है। यह 2019 से 2021 के बीच 113 से 117वें स्थान के बीच रही, लेकिन पिछले साल 2024 में थोड़ी सुधरकर 107वें स्थान पर पहुंच गई। फिर भी यह देश दुनिया भर में निचले आधे हिस्से में है। भ्रष्टाचार जारी करने वाली ट्रांसपेरेंसी इंटरनैशनल ने 2024 में देश में आयात-निर्यात की प्रक्रियाओं, सार्वजनिक सेवाओं, कर भुगतान और ठेके में बढ़ते भ्रष्टाचार का उल्लेख किया है। इसमें इस बात पर जोर दिया गया है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ पनपा आक्रोश जेन-जी के विरोध प्रदर्शन की मुख्य मांग क्यों बन गया।
नेपाल की अर्थव्यवस्था में सेवाओं का दबदबा है, जिसकी वित्त वर्ष 2023-24 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 55 फीसदी से अधिक की भागीदारी रही और इसका एक बड़ा हिस्सा पर्यटन और आतिथ्य से जुड़ा है। कृषि की हिस्सेदारी करीब 21 से 22 फीसदी रही, जबकि विनिर्माण का योगदान सिर्फ 4 से 5 फीसदी के बीच रहा।
दुनिया भर की सुर्खियों में छाए रहने वाले नेपाल के पर्यटन क्षेत्र भी नई अनिश्चितता का सामना कर रहा है। यह पहले भी अस्थिरता के प्रति संवेदनशील क्षेत्र रहा है। साल 2022 में जीडीपी का 22 फीसदी रहने वाला धन प्रेषण पिछले साल उछल कर 33.1 फीसदी हो गया। भले ही यह परिवारों का समर्थन करता है, लेकिन प्रवासी मजदूरों पर निर्भरता और घरेलू नौकरी के अभाव को भी दर्शाता है। यह एक ऐसा असंतुलन है जो नेपाल के युवाओं में असंतोष की भावना और बढ़ा सकता है।