इक्विटी मार्केट में बढ़ती उथल-पुथल के बीच रिटेल निवेशकों ने सीधे शेयरों में अपने निवेश को काफी कम कर दिया है। हालांकि, पारंपरिक सेविंग इंस्ट्रूमेंट्स से इक्विटी की ओर उनका रुझान म्युचुअल फंड्स के जरिये अब भी जारी है। साल 2025 में अब तक रिटेल निवेशकों की तरफ से आया नेट इनफ्लो 13,273 करोड़ रुपये रहा, जो जनवरी–सितंबर 2024 के 1.1 लाख करोड़ रुपये की तुलना में करीब 90 फीसदी की गिरावट दर्शाता है। सीधे निवेश से रिटेल निवेशकों की दूरी घरेलू संस्थागत निवेशकों (DIIs), खासकर म्युचुअल फंड्स (MFs) से आए तेज इनफ्लो के बिल्कुल उलट तस्वीर पेश करती है। म्युचुअल फंड्स के अलावा, अन्य प्रकार के घरेलू संस्थागत निवेशक (DIIs) में बीमा कंपनियां और पेंशन फंड शामिल हैं। ये संस्थान रिटेल निवेशकों से सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (SIP), बीमा प्रीमियम और रिटायरमेंट सेविंग स्कीम्स के जरिए फंड जुटाते हैं।
एक्सपर्ट्स का कहना है कि सीधे निवेश करना चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है, इसलिए रिटेल निवेशक तेजी से अपने अतिरिक्त पैसों को निवेश करने के लिए औपचारिक निवेश विकल्पों की ओर रुख कर रहे हैं।
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एचडीएफसी सिक्योरिटीज के पूर्व हेड ऑफ रिटेल रिसर्च दीपक जसानी ने कहा, “HNI और रिटेल निवेशक समय के साथ जो अनुभव जुटाते हैं, उसी के कारण DIIs के जरिए निवेश करने की प्राथमिकता बढ़ती है। एक समय पर ज्यादातर निवेशक समझ जाते हैं कि सीधे निवेश करना रोमांचक तो है, लेकिन बहुत कम लोग ही बेंचमार्क या म्युचुअल फंड्स के रिटर्न से बेहतर प्रदर्शन कर पाते हैं। जब उन्हें यह समझ आता है, तो उनकी पूंजी का बड़ा हिस्सा म्युचुअल फंड्स में जाने लगता है और सीधे निवेश के लिए केवल थोड़ा हिस्सा ही बचता है।”
पिछले एक साल में बेंचमार्क निफ्टी ने लगभग जीरो रिटर्न दिए हैं। मार्केट एक्सपर्ट्स का कहना है कि कई रिटेल निवेशकों को और भी ज्यादा नुकसान हुआ क्योंकि उन्होंने उन थीमैटिक स्टॉक्स पर दांव लगाया था, जो पिछले साल के शुरुआती नौ महीनों में बाजार में तेजी के दौरान ट्रेंड में थे।
इक्विनॉमिक्स के फाउंडर और हेड ऑफ रिसर्च जी चोक्कलिंगम ने कहा, “स्मॉल और मिडकैप स्टॉक्स की बुल रन में आमतौर पर एक या दो थीमैटिक आइडिया ही निवेशकों की पसंद बनते हैं। लेकिन पिछली बार कई थीमैटिक आइडियाज पर रिटेल निवेशकों ने बड़ा दांव लगाया और ये स्टॉक्स पिछले साल सितंबर के बाद बुरी तरह टूट गए। हालांकि फरवरी से रिकवरी शुरू हुई, लेकिन इनमें से कई स्टॉक्स अब तक पूरी तरह से संभल नहीं पाए हैं।”
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रिटेल निवेशक नौ में से पांच महीनों में नेट सेलर्स रहे। मार्च में उन्होंने 14,325 करोड़ रुपये की शुद्ध बिकवाली की, जो 2016 के बाद उनका सबसे बड़ा मंथली आउटफ्लो रहा। मार्च की यह बिकवाली इसलिए देखने को मिली क्योंकि इससे पहले महीनों में आई गिरावट के चलते निवेशकों ने टैक्स-लॉस हार्वेस्टिंग की स्ट्रैटेजी अपनाई। इसमें निवेशक घाटे वाले स्टॉक्स बेचकर मुनाफे वाले स्टॉक्स से होने वाले टैक्स गेन को एडजस्ट करते हैं।
जून तक बिकवाली जारी रही, हालांकि इसकी तीव्रता कुछ कम रही। अप्रैल से जून के बीच कुल 10,555 करोड़ रुपये की नेट सेलिंग हुई। जुलाई और अगस्त में रिटेल निवेशक नेट बायर्स बने, लेकिन सितंबर में अब तक वे एक बार फिर नेट सेलर्स रहे हैं।
कुछ एक्सपर्ट्स का मानना है कि सितंबर 2024 से अब तक के नेट रिटेल फ्लो यह दिखाते हैं कि रिटेल निवेशक अब पहले से ज्यादा समझदार हो रहे हैं। वे पारंपरिक ‘खरीदो और लंबे समय तक होल्ड करो’ वाली रणनीति छोड़कर जानकारी के आधार पर शॉर्ट-टर्म दांव लगाने लगे हैं।
स्वतंत्र इक्विटी विश्लेषक अम्बरीश बालिगा ने कहा, “वे बाजार चढ़ने पर प्रॉफिट बुक कर रहे हैं और जब बाजार गिरता है तो खरीदार बन जाते हैं। यह उस सामान्य सोच के बिल्कुल उलट है कि रिटेल निवेशक तेज गिरावट के समय घबरा जाते हैं और बाजार से बाहर निकल जाते हैं।”
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आगे चलकर रिटेल निवेशक अपनी ‘गिरावट में खरीदारी’ वाली रणनीति पर कायम रह सकते हैं।
जसानी ने कहा, “बाजार में अभी ज्यादा गिरावट नहीं आई है, और ऐसी स्थिति में वे इस महीने या आने वाले महीने में बड़े खरीदार नहीं होंगे, जब तक कि कोई गिरावट न देखने को मिले। जब मार्केट में करेक्शन नहीं होता, तो वे सतर्क रहते हैं और अपना पैसा म्युचुअल फंड्स में लगाना जारी रखते हैं।”