अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने हाल ही में एशिया के तीन देशों की यात्रा के दौरान अपने सहयोगी देशों को भरोसा दिलाया कि अमेरिका अब भी उनके साथ खड़ा है। महीनों तक टैरिफ बढ़ाने की धमकियों और रक्षा खर्च पर दबाव डालने के बाद, ट्रंप ने इस दौरे में दोस्ताना रुख अपनाया और कई अहम घोषणाएं कीं।
ट्रंप ने दक्षिण कोरिया को भरोसा दिलाया कि अमेरिका उसके साथ “गहराई से जुड़ा” है। उन्होंने 350 अरब डॉलर के निवेश को लेकर वहां की चिंताओं पर चर्चा की और परमाणु-संचालित पनडुब्बियों की मांग को मंजूरी दी। जापान की नई प्रधानमंत्री साने ताकाइची से मुलाकात में ट्रंप ने कहा कि वह उनसे “किसी भी मदद के लिए” संपर्क कर सकती हैं। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ शिखर बैठक में भी ट्रंप ने ताइवान को लेकर अमेरिकी प्रतिबद्धता में कोई कमी नहीं आने दी।
अमेरिकी रक्षा मंत्री पीट हेगसेथ ने चीन की नौसैनिक गतिविधियों को लेकर चिंता जताई और भारत के साथ 10 साल की रक्षा साझेदारी समझौते पर हस्ताक्षर किए। इसके अलावा, अमेरिका ने कम्बोडिया, मलेशिया, थाईलैंड और वियतनाम के साथ व्यापारिक समझौते किए – जिससे इन देशों के साथ संबंधों को मजबूती मिली।
मलेशिया के प्रधानमंत्री अनवर इब्राहिम ने ट्रंप से हुई बातचीत के बाद कहा, “यह उम्मीद से कहीं बेहतर रहा – भरोसा, मित्रता और रिश्तों को और मजबूत करने की प्रतिबद्धता।”
हालांकि एशिया-प्रशांत के देशों को अब भी ट्रंप की नीतियों की अनिश्चितता और अमेरिकी बाजार तक महंगे पहुंच की हकीकत से जूझना होगा।
दूसरी ओर, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भी अपने कूटनीतिक कदम बढ़ाए – 11 साल बाद दक्षिण कोरिया का दौरा किया, 2017 के बाद पहली बार किसी कनाडाई नेता से मुलाकात की और जापान की नई प्रधानमंत्री से भी मिले। उन्होंने स्थिर आपूर्ति श्रृंखला और क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण पर जोर दिया।
ट्रंप ने अपने दौरे के दौरान सख्त छवि छोड़कर विनम्रता और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेकर माहौल को हल्का किया। मलेशिया में उन्होंने पारंपरिक नृत्य में हिस्सा लिया और झंडे लहराए। जापान में ताकाइची के साथ अमेरिकी एयरक्राफ्ट कैरियर का दौरा किया, जबकि दक्षिण कोरिया में कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी से भी सौहार्दपूर्ण बातचीत की।
डोनाल्ड ट्रंप की हालिया एशिया यात्रा ने कई कूटनीतिक संकेत छोड़े। हालांकि उन्होंने चीन और दक्षिण कोरिया के साथ संबंधों में सुधार की दिशा में कदम बढ़ाए, लेकिन यह दौरा “पूर्ण क्षेत्रीय जुड़ाव” की श्रेणी में नहीं आता, विशेषज्ञों का कहना है कि चीन की तुलना में ट्रंप की भागीदारी सीमित रही।
ट्रंप ने दो अहम क्षेत्रीय शिखर सम्मेलनों के दौरान कुछ सत्रों में हिस्सा नहीं लिया। उन्होंने मलेशिया में एक महत्वपूर्ण क्षेत्रीय बैठक से पहले ही वापसी कर ली और दक्षिण कोरिया से भी एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग (APEC) नेताओं के सत्रों से पहले रवाना हो गए, जबकि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग उन सत्रों में मौजूद रहे।
चीन और अमेरिका के बीच व्यापारिक तनाव के बीच ट्रंप और शी जिनपिंग की मुलाकात हुई, जहां दोनों देशों ने एक साल के लिए टैरिफ विवाद में “संघर्ष विराम” पर सहमति जताई। इस समझौते से दोनों देशों को रणनीतिक क्षेत्रों में एक-दूसरे पर निर्भरता कम करने का समय मिला। ट्रंप अप्रैल में शी जिनपिंग के निमंत्रण पर चीन की यात्रा पर जाएंगे।
वॉशिंगटन में यह आशंका थी कि ट्रंप राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े प्रतिबंधों में ढील दे सकते हैं या ताइवान पर चीन के पक्ष में रुख दिखा सकते हैं, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
एक बड़ा सरप्राइज दक्षिण कोरिया के साथ हुआ, जहां ट्रंप और राष्ट्रपति ली जे म्यूंग ने $350 अरब निवेश योजना पर असहमति के बावजूद व्यापार समझौता किया। नई डील के तहत दक्षिण कोरिया का वार्षिक निवेश $20 अरब तक सीमित रहेगा, जिससे विदेशी मुद्रा बाजार पर असर नहीं पड़ेगा। इसके साथ ही ट्रंप ने सियोल को परमाणु-संचालित पनडुब्बी बनाने की मंजूरी भी दी।
यात्रा के दौरान ट्रंप को कई देशों से सम्मान भी मिला। जापान में उन्हें सोने की गोल्फ बॉल और शिंजो आबे द्वारा इस्तेमाल किया गया पटर मिला, जबकि दक्षिण कोरिया ने उन्हें स्वर्ण मुकुट भेंट किया। थाईलैंड और कंबोडिया के बीच शांति समारोह की अध्यक्षता करने का मौका भी मिला।
थाई विदेश मंत्री सिहासक फुआंगकेतकेओ ने कहा, “ट्रंप शांति के पक्षधर नेता बनना चाहते हैं, और हम इसका स्वागत करते हैं।”
वापस लौटने पर ट्रंप ने सोशल मीडिया पर अपनी यात्रा को “सफल” बताया और कहा कि “मजबूत व्यापार समझौते हुए, लंबे समय के रिश्ते बने।”
हालांकि सबकुछ सहज नहीं रहा। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आसियान सम्मेलन से दूरी बनाए रखी ताकि ट्रंप से मुलाकात से बचा जा सके। इसके बाद ट्रंप ने मोदी पर टिप्पणी करते हुए कहा कि वे “सबसे अच्छे दिखने वाले व्यक्ति हैं लेकिन ‘किलर’ भी हैं,” जिससे भारत-अमेरिका संबंधों में तनाव बढ़ सकता है।
विशेषज्ञ बॉनी ग्लेसर के अनुसार, “ट्रंप की विदेश नीति पारंपरिक नहीं रही है, और उनकी एशिया यात्रा से यह संकेत नहीं मिलता कि वे अब परंपरागत अमेरिकी नीति की ओर लौट रहे हैं।”