लौह अयस्क से लेकर इस्पात तक के दाम इतने चढ़ गए हैं, जितने 2008 से अभी तक पहुंचे ही नहीं थे। इसके बाद बहस शुरू हो गई है कि यह उद्योग में सुपर-साइकल का नतीजा है या कोई रणनीति बदलाव आ रहा है।
इस साल अप्रैल में लौह अयस्क की वैश्विक कीमतें औसतन 178 डॉलर प्रति टन रहीं, जो पिछले साल अक्टूबर में 120 डॉलर प्रति टन थीं। अब मई की शुरुआत में इस्पात बनाने में इस्तेमाल होने वाले इस प्रमुख कच्चे माल के दाम 200 डॉलर प्रति टन को पार कर गए, जो वर्ष 2008 में वैश्विक वित्तीय संकट से लेकर अब तक का सबसे ऊंचा स्तर है।
देश में सार्वजनिक क्षेत्र की लौह अयस्क उत्पादक एनएमडीसी ने 12 मई से फाइंस की कीमतें 29.64 फीसदी और लंप अयस्क की 10 फीसदी बढ़ा दीं। कंपनी ने चीन के डालियन कमोडिटी एक्सचेंज में सोमवार को अयस्क वायदा के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचने के बाद यह फैसला किया है। आर्सेलरमित्तल निप्पॉन स्टील इंडिया में मुख्य विपणन अधिकारी रंजन धर ने कहा कि देश की सबसे बड़ी खनिक एनएमडीसी ने कीमतों में खासी बढ़ोतरी की हैं, जिससे ये 11 साल के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गई हैं।
लेकिन यह तेजी लौह अयस्क तक ही सीमित नहीं है। दुनिया भर में लौह धातुओं की कीमतें बढ़ रही हैं। क्रिसिल रिसर्च के मुताबिक कबाड़ की वैश्विक कीमतें (रोटरडम एफओबी) पिछले छह महीने के दौरान 120 डॉलर प्रति टन बढ़ी हैं। इस्पात की वैश्विक कीमतें (चीन एचआर एफओबी) 2008 के संकट के समय की ऊंचाई 1,029 डॉलर प्रति टन को पार कर मई की शुरुआत में अपने अब तक के सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गईं। चीन एचआर एफओबी की कीमतें अक्टूबर 2020 में 510 डॉलर प्रति टन थीं। ये अप्रैल में बढ़कर औसतन 863 डॉलर प्रति टन रहीं। अब मई 2021 के दूसरे सप्ताह में कीमतें 1,050 डॉलर प्रति टन के आसपास बनी हुई हैं। घरेलू बाजार में कीमतें नवंबर से लगातार बढ़ रही हैं। फरवरी में चीनी नव वर्ष की छुट्टी के दौरान जरूर उनमें ठहराव आया था। एनएमडीसी अक्टूबर से लंप अयस्क की कीमतें करीब 122 फीसदी और फाइंस की कीमत 107 फीसदी बढ़ा चुकी है। वाहनों एïवं उपभोक्ता उत्पादों में इस्तेमाल होने वाली एचआरसी (हॉट रोल्ड कॉइल) की कीमतें देसी बाजार में अक्टूबर से करीब 54 फीसदी बढ़ चुकी हैं।
हालांकि धर ने कहा कि कच्चे माल की कीमतों में बढ़ोतरी के बावजूद इस समय भारत में इस्पात की कीमतें सबसे कम हैं। उन्होंने कहा, ‘सबसे कम अंतरराष्ट्र्ीय कीमत वियतनाम में घरेलू एचआरसी की 1,030 डॉलर है। उस स्तर पर भी भारत के साथ 9,000 रुपये प्रति टन का अंतर है।’
भारत में इस्पात विनिर्माताओं का मानना है कि यह तेजी ढांचागत बदलाव से आई है। यह जिंस चक्र से अलग है। इसके लिए वे खपत के तरीके में बदलाव का उदाहरण देते हैं। जेएसडब्ल्यू स्टील के निदेशक (वाणिज्य एïवं विपणन) जयंत आचार्य ने कहा कि इस्पात उद्योग ढांचागत बदलाव के दौर से गुजर रहा है।