केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड (CBIC) ने कारोबारियों के लिए एक बड़ा फैसला लिया है। अब अगर सप्लायर बिक्री के बाद छूट के लिए फाइनेंशियल या कमर्शियल क्रेडिट नोट जारी करते हैं, तो खरीदार को इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) वापस करने की जरूरत नहीं होगी। यह छूट भले ही कम कीमत पर भुगतान के साथ दी जाए। CBIC ने शुक्रवार को एक सर्कुलर जारी कर इसकी जानकारी दी थी।
CBIC ने कहा कि फाइनेंशियल या कमर्शियल क्रेडिट नोट से सप्लाई की मूल टैक्सेबल वैल्यू पर कोई असर नहीं पड़ता। यानी सप्लायर की मूल GST देनदारी में कोई बदलाव नहीं होगा। सर्कुलर में साफ किया गया है कि ऐसी छूट के मामले में खरीदार को अपने इनपुट टैक्स क्रेडिट में कोई कटौती नहीं करनी होगी। इसका मतलब है कि कारोबारी अब बिना किसी चिंता के छूट का फायदा ले सकेंगे।
Also Read: GST दरें घटने पर हर महीने कीमतों की रिपोर्ट लेगी सरकार, पता चलेगा कि ग्राहकों तक लाभ पहुंचा या नहीं
सर्कुलर में यह भी स्पष्ट किया गया कि मैन्युफैक्चरर द्वारा डीलरों को दी जाने वाली बिक्री के बाद की छूट को सर्विसेज के लिए भुगतान नहीं माना जाएगा। हालांकि, अगर डीलर किसी खास प्रमोशनल गतिविधि जैसे विज्ञापन या को-ब्रांडिंग के लिए स्पष्ट समझौते के तहत काम करता है, तो उस सर्विस पर GST लागू होगा। यह नियम कारोबारियों को अपनी डीलरशिप और प्रमोशनल रणनीतियों को बेहतर ढंग से समझने में मदद करेगा।
KPMG इंडिया के पार्टनर और अप्रत्यक्ष कर के राष्ट्रीय प्रमुख अभिषेक जैन ने इसे एक स्वागत योग्य कदम बताया। उन्होंने कहा कि यह सर्कुलर मैन्युफैक्चरर और डीलरों के बीच छूट से जुड़े लेनदेन पर स्पष्टता लाएगा। इससे कारोबारियों को अपने सौदों को अमल में लाने में आसानी होगी और पुराने विवादों में कमी आएगी। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि कुछ मामलों में, जहां डीलर अंतिम ग्राहकों को विशेष लाभ देने के लिए समझौते करते हैं, वहां कारोबारियों को अपने कॉन्ट्रैक्ट्स और टैक्स स्थिति की दोबारा जांच करनी होगी।
EY के टैक्स पार्टनर सौरभ अग्रवाल ने कहा कि इस स्पष्टता से GST नियमों को लागू करना आसान होगा। उन्होंने बताया कि ट्रेड डिस्काउंट और प्रमोशनल सर्विसेज के बीच सरकार का साफ रुख विवादों को कम करेगा। इससे कारोबारी अब ज्यादा आत्मविश्वास के साथ अपने कॉन्ट्रैक्ट्स बना सकेंगे।