डॉनल्ड ट्रंप के अमेरिका के राष्ट्रपति बनने के शुरुआती दिनों में रुपये में कुछ उतार-चढ़ाव की स्थिति देखने को मिल सकती है लेकिन कुछ दिनों के बाद इसमें स्थिरता आएगी। भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की एक रिपोर्ट में इस बात की तस्दीक की गई है और इस अल्पकालिक घटना को ‘ट्रंप टैंट्रम’ नाम दिया गया है।
रिपोर्ट में अनुभवजन्य साक्ष्यों का हवाला देते हुए इस रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि अमेरिका में डेमोक्रेटिक पार्टी के राष्ट्रपति के कार्यकाल के मुकाबले रिपब्लिकन पार्टी से जुड़े राष्ट्रपति के कार्यकाल में रुपये का प्रदर्शन बेहतर होता है। रुपये ने सोमवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 86 के स्तर को पार कर लिया। अगर हम निक्सन के दौर से लेकर अब तक के अमेरिकी राष्ट्रपतियों के कार्यकाल का ऐतिहासिक विश्लेषण करें तो यह अंदाजा मिलता है कि डेमोक्रेटिक प्रशासन की तुलना में रिपब्लिकन प्रशासन के दौरान रुपये का प्रदर्शन स्थिर रहता है।
रिपोर्ट के मुताबिक मौजूदा अस्थिरता ‘ब्याज दर में अचानक आई तेजी’ यानी टेपर टैंट्रम को नहीं दर्शाता है और इससे यह धारणा मजबूत होती है कि रुपये के लिए भी ‘ट्रंप टैंट्रम’ भी अस्थायी घटना होगी जिसमें शुरुआती बाधा के बाद मुद्रा का समायोजन हो जाएगा। रिपोर्ट में कहा गया, ‘अनुभवजन्य साक्ष्यों के मुताबिक रुपये के लिए ट्रंप टैंट्रम घटनाक्रम बेहद क्षणिक होगा और ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के शुरुआती दिनों के बाद रुपये में समायोजन होगा। बाजार की धारणा के विपरीत गैर-ट्रंप शासन या डेमोक्रेटिक शासन में रुपया ज्यादा संवेदनशील दिखता है।’
उन्होंने कहा, ‘निक्सन के दौर से लेकर बाद के वर्षों में अमेरिकी राष्ट्रपतियों के कार्यकाल पर गौर करें तब अंदाजा होगा कि रिपब्लिकन दौर में रुपया बेहद स्थिर था जबकि डेमोक्रेटिक पार्टी के राष्ट्रपति के शासन के दौरान इसका प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा। हालांकि हाल के दौर की अस्थिरता कहीं से भी टेपर ट्रैंटम की तरह नहीं लगती है ऐसे में हमें यह मानने के लिए बाध्य होना पड़ता है कि रुपये के लिए ट्रंप टैंट्रम क्षणिक घटना होगी।’
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि महामारी के बाद अधिक अस्थिर होने के बावजूद रुपये के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) का समर्थन है और मौजूदा चुनौतियों से यह उबरेगा। आने वाले महीने में उभरते बाजारों की मुद्राओं को प्रभावित करने वाली बाहरी घटनाओं का असर भी खत्म होगा तब रुपया अपने स्वभाविक स्तर पर पहुंच जाएगा।
वर्ष की दूसरी छमाही में पूंजी के बाहर निकलने के कारण रुपये में कमजोरी दिखने लगी। इसके अलावा नवंबर 2024 में अमेरिका के राष्ट्रपति के तौर पर डॉनल्ड ट्रंप का चुनाव होने के चलते भी वैश्विक स्तर पर डॉलर में मजबूती आई जिसका असर अधिकांश मुद्राओं पर पड़ा। अब तक डॉलर के मुकाबले रुपये में 3 प्रतिशत की गिरावट देखी गई है लेकिन अब भी वैश्विक स्तर पर इसकी रैंकिंग सबसे कम प्रभावित मुद्राओं में की जाती है।