वित्त मंत्रालय के तहत आने वाले राजस्व विभाग ने भारी उद्योग मंत्रालय से कहा है कि प्रस्तावित उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना के तहत रेयर अर्थ स्थायी चुंबक (आरईपीएम) के निर्माण में उपयोग की जाने वाली मशीनरी और उपकरणों के आयात के लिए सीमा शुल्क या उपकर से छूट दिए जाने की जरूरत नहीं है।
अधिकारियों ने कहा कि योजना के तहत मिलने वाली पूंजीगत सब्सिडी ही उच्च लागत से आने वाली समस्या से निपटने के लिए पर्याप्त होगी। अधिकारियों के मुताबिक भारत में स्थापित किए जाने वाले संयंत्रों और मशीनरी पर खर्च काफी अधिक होने की उम्मीद है क्योंकि लगभग सभी उपकरणों को चीन के अलावा अन्य देशों, जैसे जर्मनी, जापान और दक्षिण कोरिया से मंगवाना होगा। पीएलआई योजना के तहत बोली हासिल करने वालों (निजी कारोबारियों) को पीएलआई योजना के तहत वित्तीय प्रोत्साहन दिए जाने का प्रस्ताव है, जो 6,000 टन सालाना संयुक्त उत्पादन क्षमता वाले 5 संयंत्र स्थापित करेंगे।
भारी उद्योग मंत्रालय इस योजना के लिए नोडल मंत्रालय है, जो विभिन्न मंत्रालयों से चर्चा कर रहा है। अधिकारियों ने उल्लेख किया कि मसौदा पीएलआई योजना में शुरुआत में बुनियादी सीमा शुल्क (बीसीडी) और पूंजीगत वस्तुओं पर उपकर (संयंत्र और मशीनरी) से छूट का प्रावधान था, जो आरईपीएम विनिर्माण संयंत्र के लिए जरूरत होती है।
बहरहाल राजस्व विभाग ने भारी उद्योग मंत्रालय को बताया कि ऐसी छूट किसी भी योजना या नीति दस्तावेज का हिस्सा नहीं होनी चाहिए और अगर जरूरी हो तो अलग अलग मामलों हिसाब से इस पर विचार किया जा सकता है। इसके बाद एमएचआई ने मसौदा योजना से शुल्क छूट का प्रावधान हटा दिया।
इस मसले पर वित्त मंत्रालय या भारी उद्योग मंत्रालय ने बिज़नेस स्टैंडर्ड की ओर से मांगी गई जानकारी पर कोई जवाब नहीं दिया।
अधिकारियों ने कहा कि योजना के तकनीकी पहलुओं को देख रहे परमाणु ऊर्जा विभाग ने अनुमान लगाया था कि भारत में प्रति वर्ष 1,200 टन आरईपीएम का उत्पादन करने वाले संयंत्र स्थापित करने के लिए खर्च चीन की तुलना में 4 गुना ज्यादा हो सकता है। परमाणु ऊर्जा विभाग ने संकेत दिया है कि ऐसी सुविधा के लिए भारत में लगभग 1,000 करोड़ रुपये के निवेश की आवश्यकता होगी। इसे देखते हुए सीमा शुल्क से छूट के बजाय पूंजीगत सब्सिडी देने का निर्णय लिया गया है।