मध्य प्रदेश में बुरहानपुर कपड़ा उद्योग का सबसे बड़ा और पुराना ठिकाना है। राज्य में सबसे ज्यादा पावरलूम भी यहीं हैं, जो नई तकनीक का इस्तेमाल कर बुरहानपुर की सूरत बदल रहे हैं। पहले बुरहानपुर में कपड़े की केवल बुनाई होती थी मगर अब इनकी रंगाई, छपाई, साइजिंग और डिजाइनिंग आदि का काम भी यहीं होने लगा है। देर से ही सही बुरहानपुर में टेक्सटाइल क्लस्टर बनाने की योजना भी परवान चढ़ने लगी है, जिससे आने वाले कुछ साल में बुरहानपुर के रेडीमेड कपड़ों का बड़ा केंद्र बन सकता है।
बुरहानपुर में इस समय 40-45 हजार सामान्य पावरलूम और 4-5 हजार हाई स्पीड ऑटो लूम चल रहे हैं। इन सबकी मदद से यहां रोजाना करीब 50 लाख मीटर कपड़ा बनता है। कारोबारी और उद्योग से जुड़े लोग बताते हैं कि इस शहर से सालाना 4,000 से 4,500 करोड़ रुपये के कपड़े का कारोबार होता है। कारोबार के हिसाब से ही रोजगार भी है और बुरहानपुर में यह उद्योग 80,000 से 1 लाख तक लोगों को प्रत्यक्ष और परोक्ष रोजगार देता है।
बुरहानपुर में लखोटिया फैब्रिक्स के जयप्रकाश लखोटिया ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि यहां कताई करने वाली एक ही मिल थी, जिसका नाम ताप्ती मिल था। मगर कोरोना महामारी के समय यह सरकारी मिल भी बंद हो गई, जो अभी तक चालू नहीं हो सकी। लेकिन इस बीच यहां दो-तीन नई कताई मिल शुरू हो गई हैं, जिनके कारण कपड़ा उद्यमियों और बुनकरों को दूसरे राज्यों से कम धागा मंगाना पड़ रहा है। लखोटिया ने कहा कि पावरलूम भी तकनीक की मदद से बेहतर बनने की कोशिश कर रहे हैं। इन लूम में अब वाटर जेट और एयर जेट तकनीका का इस्तेमाल हो रहा है, जिससे उत्पादन क्षमता बढ़ जाती है।
मगर बुरहानपुर के कपड़ा उद्यमी व मध्य प्रदेश लघु उद्योग संघ के प्रदेश सचिव फरीद सेठ कहते हैं कि अपग्रेड होने के बाद भी यहां के पावरलूम की रफ्तार उम्मीद से कम ही है। उनकी मांग है कि पावरलूम को अपग्रेड करने के लिए सरकार को प्रौद्योगिकी उन्नयन निधि योजना (टफ्स) दोबारा शुरू करनी चाहिए। पावरलूम बुनकर संघ, बुरहानपुर के अध्यक्ष रियाज अहमद अंसारी कहते हैं कि आर्थिक रूप से संपन्न लोग तो पावरलूम को आसानी से अपग्रेड कर लेते हैं मगर घरों में पावरलूम चलाने वाले छोटे बुनकरों को इसमें दिक्कत आ रही हैं। उनकी भी सरकार से मदद की मांग है ताकि अपग्रेड होकर ये पावरलूम भी मुख्यधारा में आ सकें। सरकार ऑटो लूम के लिए सब्सिडी देती है मगर छोटे बुनकरों को उसका फायदा नहीं मिल पाता क्योंकि सब्सिडी के अलावा जरूरी पूंजी तक उनके पास नहीं है।
मध्य प्रदेश सरकार और उद्यमी बुरहानपुर को पावरलूम और रेडीमेड परिधान का केंद्र बनाने की कोशिश में हैं। यहां सुखपुरी में 156 एकड़ में एक टेक्सटाइल क्लस्टर बन रहा है, जिसकी मंजूरी राज्य सरकार पहले ही दे चुकी है।
सुखपुरी टेक्सटाइल क्लस्टर एसोसिएशन के चेयरमैन प्रशांत श्रॉफ ने बताया कि देर से ही सही इस क्लस्टर की शुरुआत हो चुकी है। अभी वहां जमीन समतल की जा रही है और दो साल के भीतर क्लस्टर तैयार हो जाने की उम्मीद है। इस पर 56 करोड़ रुपये खर्च होंगे। शुरू में यह रकम एसोसिएशन खर्च करेगी और क्लस्टर बनने के बाद उद्यमियों को सरकार से 20 करोड़ रुपये की सब्सिडी मिलेगी। क्लस्टर में कपड़े से जुड़ी करीब 250 इकाइयां लग सकती हैं। इनमें 400 करोड़ रुपये का निवेश होने और लगभग 7,000 रोजगार तैयार होने की उम्मीद है।
श्रॉफ ने कहा कि अभी तक बुरहानपुर में कपड़ा बुनने का काम ही ज्यादा होता है और रेडीमेड परिधान बहुत कम बनते हैं। मगर क्लस्टर बनने के बाद तस्वीर बदल जाएगी। उन्होंने बताया कि 5-7 साल पहले बुरहानपुर में कपड़े के 10-15 प्रोसेस हाउस ही थे, जो अब बढ़कर 25-30 हो गए हैं। टेक्सटाइल क्लस्टर बनने के बाद प्रोसेस हाउस की संख्या कई गुना हो जाएगी। लखोटिया बताते हैं कि उद्यमी आपसी सहयोग से अलग कपड़ा क्लस्टर भी बना रहे हैं। करीब 20 करोड़ रुपये की लागत से 57 एकड़ में बनने वाले इस क्लस्टर में 125 से अधिक इकाइयां लगेगी। इसमें 200 करोड़ रुपये का निवेश और 5,000 रोजगार पैदा हो सकते हैं।
बुरहानपुर का कपड़ा उद्योग बढ़ तो रहा है मगर बुनकरों की परेशानी बदस्तूर हैं। अंसारी के मुताबिक बड़े कपड़ा उद्यमियों का तो ठीक है मगर बुनकर तय मजदूरी के लिए भी तरस रहे हैं। बुनकरों के लिए 25.25 रुपये प्रति मीटर की मजदूरी तय है मगर उन्हें 23-24 रुपये प्रति मीटर ही मिल रहे हैं। बुनकरों के शहर में बुनकर ही बेहाल हैं। टेक्सटाइल क्लस्टर के लिए जमीन तो मिल गई है मगर इकाई बड़े उद्यमियों की ही लगेंगी क्योंकि छोटे-छोटे बुनकरों के पास इतना पैसा नहीं है कि वे इकाई लगाने के लिए जरूरी निवेश कर सकें। इसलिए बुनकरों को अलग से जमीन देने और उन्हें बसाने के लिए इकाइयां बनाने की मांग भी सरकार से की जा रही है।
बुरहानपुर के बुनकर जयंत नवलखे ने कहा कि बुनकर अब केवल कपड़ा बुनते नहीं रहना चाहते बल्कि रेडीमेड कपड़ा बनाना चाहते हैं मगर इसके लिए उन्हें रकम की जरूरत है। इसीलिए सरकार बुनकरें को अलग बसाने के साथ ही सस्ता कर्ज भी दिलाए। अंसारी कहते हैं कि इस समय 80 फीसदी से ज्यादा बुनकर दूसरों के लिए कपड़ा बुन रहे हैं। उद्यमी कपड़े की प्रोसेसिंग कर कमाई कर रहे हैं। अगर बुनकरों को सस्ता कर्ज और सस्ती बिजली मिल जाएं तो वे खुद ही कपड़ा तैयार कर बेचना चाहेंगे ताकि उन्हें हुनर की सही कीमत मिल सके।
शायद ही कोई ऐसा कपड़ा हो, जो बुरहानपुर में नहीं बनता है। यहां बनने वाले कपड़े का उपयोग स्कूल की सामग्री जैसे यूनिफॉर्म, बैग, जूते आदि में खूब होता है। कपड़ा उद्यमी फरीद सेठ बताते हैं कि बुरहानपुर दर्जियों के पेशे में इस्तेमाल होने वाली सामग्री जैसे बकरम कपड़े का बड़ा बाजार है। यह कपड़ा कॉलर में लगाया जाता है। शहर में चमड़े व रैगजीन में अस्तर की तरह इस्तेमाल होने वाला कपड़ा भी काफी बनता है। इस अस्तर का इस्तेमाल ट्रेन और बस की सीट में भी किया जाता है। बुरहानपुर में बेल्ट, पर्स, फुटबॉल, ऑटो रिक्शा कवर, गाड़ी सीट कवर में इस्तेमाल होने वाला अस्तर भी बनाया जाता है। साथ ही यहां महिलाओं के सूट, ब्लाउज, पेटीकोट, साड़ी फॉल, साफा, धोती, रजाई, खोल, झंडे, बैनर, पोस्टर आदि के लिए भी कपड़े बनते हैं। बुरहानपुर चैंबर ऑफ कॉमर्स ऐंड इंडस्ट्री के चेयरमैन प्रशांत श्रॉफ कहते हैं कि यहां के कपड़े की सूरत, भीलवाड़ा, अहमदाबाद, पानीपत, लुधियाना, कोलकाता जैसे रेडीमेड कपड़े के औद्योगिक केंद्रों में खूब मांग है। अब तो यहां से रेडीमेड कपड़ा बनकर भी जगह-जगह जाने लगा है। यहां इस्तेमाल होने वाला कच्चा माल पंजाब व तमिलनाडु से आता है।
माना जाता है कि 1857 गदर के बाद अंग्रेजों ने दमनकारी नीतियां अपनाईं, जिन्होंने पूरे भारत के बुनकरों को परेशान कर दिया। इन्हीं दिक्कतों और अत्याचार से परेशान होकर उत्तर तथा दक्षिण भारत के कुछ बुनकर समुदाय बुरहानपुर में बस गए। वे अपने साथ हाथ खड्डी यानी हैंडलूम या हथकरघा भी लाए। उत्तर भारत से आने वाले अधिकतर बुनकर अंसारी और मोमिन कहलाए। दक्षिण से जो बुनकर आए, उन्हें कोष्ठी और साली कहा गया। बुरहानपुर में कपड़ा उद्योग की शुरुआत इन्हीं बुनकरों से मानी जा सकती है। 1906 में मध्य प्रदेश की पहली सूती मिल ताप्ती शुरू हुई, जिसके बाद बुरहानपुर में पावरलूम आ गए और उन पर सफेद कपड़ा बुना जाने लगा। राजस्थानी व्यापारियों एवं बुरहानपुर के पूंजीपतियों ने बुनकरों को कच्चा माल देकर कपड़ा बुनवाना शुरू किया था। आज भी बुनकर तो यहीं के हैं मगर प्रोसेसिंग हाउस चलाने वाले ज्यादातर उद्यमी गुजरात और राजस्थान के हैं।