रबी सीजन की पारंपरिक तिलहनी फसल सरसों देश को खाद्य तेलों में आत्मनिर्भर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। उद्योग विशेषज्ञों और प्रमुख कंपनियों के अनुसार, सरसों की खेती के रकबे को बढ़ाना, उच्च उपज देने वाली बीज किस्मों को बढ़ावा देना और किसानों को सुनिश्चित मूल्य देना बेहद जरूरी है ताकि उत्पादन और उत्पादकता में उल्लेखनीय वृद्धि हो सके।
Ministry of Agriculture & Farmers Welfare के मुताबिक भारत सरकार के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2024-25 (जुलाई-जून) में देश में सरसों और रेपसीड का कुल उत्पादन 126.06 लाख टन रहा, जो कि 86.29 लाख हेक्टेयर भूमि में हुआ और औसत उपज 1,461 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रही। हालांकि, पिछले वर्ष 2023-24 में सरसों का रकबा 91.83 लाख हेक्टेयर और उत्पादन 132.59 लाख टन था, जिससे यह स्पष्ट है कि इस बार फसल में गिरावट दर्ज की गई है।
भारत के रबी सीजन में उगने वाले रैपसीड एवं सरसों (Rapeseed & Mustard) की क्षेत्रफल, उत्पादन और उपज (yield) के आंकड़े कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार की द्वितीय अग्रिम अनुमान (2nd Advance Estimates) के अनुसार प्रस्तुत किए गए हैं
वर्ष | क्षेत्रफल (लाख हे.) | उत्पादन (लाख टन) | उपज (किग्रा/है.) |
2019–20 | 68.56 | 91.24 | 1,331 |
2020–21 | 66.99 | 102.10 | 1,524 |
2021–22 | 79.91 | 119.63 | 1,497 |
2022–23 | 88.52 | 126.43 | 1,428 |
2023–24 | 91.83 | 132.59 | 1,444 |
2024–25* | 87.58 | 128.73 | 1,470 |
पुरी ऑयल मिल्स लिमिटेड के प्रबंध निदेशक विवेक पुरी ने कहा, “सरसों का तेल खाद्य तेलों की मांग और आपूर्ति के अंतर को पाटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है और हमारे देश को आयात पर निर्भरता से मुक्त कर सकता है। यही हमारे ब्रांड P Mark Mustard Oil की मूल सोच का भी हिस्सा है।”
पुरी का मानना है कि सरसों की खेती के विस्तार और प्रति हेक्टेयर उपज में सुधार की बड़ी संभावनाएं हैं। उन्होंने कहा कि “खाद्य तेलों में आत्मनिर्भरता की कोई भी ठोस रणनीति सरसों के तेल को केंद्र में रखे बिना सफल नहीं हो सकती।”
मदर डेयरी के प्रबंध निदेशक मनीष बंदलिश ने बताया कि “सरसों का तेल नॉन-रिफाइंड तेल श्रेणी में एक प्रमुख उत्पाद बना हुआ है, जिसकी बाजार में लगभग 30% हिस्सेदारी है। उपभोक्ताओं में स्वदेशी तेलों के प्रति रुझान बढ़ रहा है, जिससे सरसों के तेल की खपत में सालाना 4% से अधिक की वृद्धि होने की संभावना है।”
उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा चलाई जा रही राष्ट्रीय खाद्य तेल-तिलहन मिशन जैसी पहल, न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में वृद्धि, और उच्च उपज वाली बीज किस्मों का प्रचार—इन सब से उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा और खाद्य सुरक्षा मजबूत होगी।
सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन (SEA) के अनुसार, 2023-24 (नवंबर-अक्टूबर) के दौरान भारत ने 1.6 करोड़ टन वनस्पति तेल का आयात किया जबकि घरेलू उत्पादन 11.62 मिलियन टन तक सीमित रहा।
वहीं, सरसों/रेपसीड तेल की खपत 38 लाख टन रही, जो कुल मांग का लगभग 15% हिस्सा है।
इंडियन वेजिटेबल ऑयल प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन (IVPA) ने कहा कि “पिछले 6 वर्षों में सरसों की खेती में 40-45% की वृद्धि हुई है और देश में सरसों तेल का उत्पादन लगभग 3.5 मिलियन टन (35 लाख टन) तक पहुंच गया है। सरसों एक अनोखी तिलहन है, जिसे आयात से प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता।”
एसोसिएशन ने पंजाब और हरियाणा में गेहूं और धान से सरसों की ओर फसल चक्र में बदलाव की आवश्यकता जताई और कहा कि धान की फसल के बाद खाली पड़ी जमीनों (rice fallow lands) को सरसों की खेती में परिवर्तित किया जाना चाहिए। IVPA ने कहा, “किसानों के लिए मुनाफे के लिहाज से सरसों फायदेमंद है। साथ ही, राष्ट्रीय तिलहन मिशन के तहत अनुसंधान एवं विकास (R&D) को बढ़ावा देना भी जरूरी है।”
विवेक पुरी ने नीति आयोग की रिपोर्ट “Edible Oil Growth Strategy” का हवाला देते हुए बताया कि “उत्तर भारत में खाद्य तेल की खपत में सरसों तेल का हिस्सा 61% है, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह 45% है। इसका मतलब है कि यह भारत के खाद्य तेल पारिस्थितिकी तंत्र में सबसे प्रमुख भूमिका निभा रहा है।” विशेषज्ञों का मानना है कि यदि सरकार द्वारा चल रही योजनाओं को जमीनी स्तर पर प्रभावी ढंग से लागू किया जाए और कृषि नीति, न्यूनतम समर्थन मूल्य, अनुसंधान और तकनीक को मिलाकर एक ठोस रणनीति बनाई जाए, तो भारत खाद्य तेलों में आत्मनिर्भरता की दिशा में तेज़ी से आगे बढ़ सकता है। सरसों, जो तेल उत्पादन के साथ-साथ खली के रूप में पशु आहार और निर्यात का भी बड़ा स्रोत है, कृषि क्षेत्र में संतुलित विकास और आर्थिक मजबूती की दिशा में एक अहम भूमिका निभा सकती है।
(कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, आर्थिक आंकड़ा विभाग, एजेंसी इनपुट के साथ)
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