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Economic survey: कृषि विकास की रफ्तार स्थिर, जलवायु चुनौतियों से निपटने पर जोर

आर्थिक समीक्षा में जलवायु-प्रतिरोधी फसलों, सिंचाई में निवेश और कृषि विविधता बढ़ाने की सिफारिश की गई है।

Last Updated- January 31, 2025 | 11:14 PM IST
India- Moldova to work together in agriculture field

संसद में शुक्रवार को पेश आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि कृषि की लगातार और स्थिर वृद्धि दर लगभग 5 प्रतिशत रहेगी, तथा अर्थव्यवस्था में समग्र जीवीए (सकल मूल्य वर्धन) में इसकी हिस्सेदारी 20 फीसदी रहेगी, जिससे प्रति श्रमिक उत्पादन और प्रति हेक्टेयर उत्पादन बढ़ने के बावजूद अतिरिक्त श्रम को अवशोषित किया जा सकेगा। इसमें भारतीय कृषि को स्वतंत्र, सशक्त और साहसी बनाने का भी आह्वान किया गया है ताकि जल पर निर्भर फसलों से दूर रहा जा सके और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए सिंचाई और कृषि अनुसंधान में निवेश का विस्तार किया जा सके।

देश के कृषि क्षेत्र के सामने बढ़ते जलवायु-संकट की ओर इशारा करते हुए वित्त वर्ष 25 के आर्थिक समीक्षा में इस क्षेत्र को स्वतंत्र, सशक्त और वर्षा पर निर्भर फसलों से हटकर विविधता लाने के लिए प्रोत्साहित करने का आह्वान किया गया है। इसमें देश के कृषि क्षेत्र पर जलवायु परिवर्तन के बढ़ते असर से मुकाबला करने लिए सिंचाई और कृषि अनुसंधान में निवेश में तेज वृद्धि की भी वकालत की गई है।

समीक्षा में दावा किया गया है कि पिछले दशक के दौरान कृषि आय में सालाना 5.23 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि गैर-कृषि आय में 6.24 प्रतिशत तथा समूची अर्थव्यवस्था में 5.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। समीक्षा में अनाज के अधिक उत्पादन को हतोत्साहित करने तथा दालों और खाद्य तेलों के उत्पादन को बढ़ाने के लिए नीतिगत सुधारों का सुझाव दिया गया है। समीक्षा में कहा गया है, ‘अधिकांश अध्ययनों ने सुझाव दिया है कि भारत में बाढ़ और शीत लहरों की तुलना में सूखा और लू कृषि उत्पादकता पर नकारात्मक असर डालते हैं। इसलिए सिंचाई के तहत क्षेत्र को बढ़ाना तथा गर्मी और जल प्रतिरोधी फसलों की दिशा में विविधता लाना उचित है।’

खरीफ सीजन के दौरान नौ प्रमुख फसलों के लिए जिला स्तर पर देश में फसल की पैदावार और बारिश के बीच संबंधों की जांच करने वाले अध्ययन का हवाला देते हुए समीक्षा में कहा गया है कि उसमें वर्षा की खासी कमी और फसल उपज की बड़ी हानि के बीच गहरा संबंध पाया गया है।

इस सांख्यिकीय घटना को लोअर टेल डिपेंडेंस के रूप में जाना जाता है, जो दर्शाता है किअगर बारिश बहुत कम होती है तो उपज में कमी की ज्यादा आशंका रहती है। मगर बारिश में मामूली कमी है तो ऐसा नहीं होता। समीक्षा में कहा गया है, ‘अन्य अध्ययनों ने इस बात का संकेत दिया है कि साल 2099 तक वार्षिक तापमान में संभावित दो डिग्री सेंटीग्रेड के इजाफे और वार्षिक वर्षा में सात प्रतिशत के इजाफे से भारतीय कृषि की उत्पादकता में आठ से 12 प्रतिशत की गिरावट आ सकती है।’ समीक्षा में एक अन्य अध्ययन का भी हवाला दिया गया है, जिसके तहत तमिलनाडु में पांच बागवानी फसलों – बैंगन, टमाटर, केला, तरबूज और आम पर ड्रिप सिंचाई के असर की परख की गई। समीक्षा में कहा गया है कि इस अध्ययन में पाया गया कि ड्रिप सिंचाई कृषि उपज बढ़ाती है।

समीक्षा में पाया गया, ‘बाढ़ सिंचाई की तुलना में यह पानी की खपत को 39 प्रतिशत से 55 प्रतिशत तक कम कर देती है और लक्षित जल वितरण के कारण फसल की पैदावार को 33 प्रतिश से 41 प्रतिशत तक बढ़ा देती है। यह सुव्यवस्था से किसानों को खासा आर्थिक लाभ होता है और लाभ मार्जिन 52.92 प्रतिशत से 114.50 प्रतिशत तक बढ़ जाता है, जो फसल (जैसे बैंगन, आम) पर निर्भर करता है।’

इसमें एक पूरा अध्याय इसके लिए समर्पित किया गया है कि देश में भीषण मौसम की घटनाएं किस तरह बढ़ रही हैं और इसका कृषि क्षेत्र पर क्या असर पड़ सकता है। अनुसंधान और विकास में निवेश, खास तौर पर जलवायु-प्रतिरोधी किस्मों, कृषि की बेहतर कार्य प्रणालियों, अधिक उपज और जलवायु के लिहाज से लचीली फसलों के मामलो में विविधता और सूक्ष्म सिंचाई से दीर्घकालिक लाभ मिल सकता है।

First Published - January 31, 2025 | 11:14 PM IST

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