दिल्ली में तीन पहिया वाहन चलाने वाले राजेश एम एक अच्छी वजह से बदलाव चाह रहे हैं और कुछ कागजी कार्रवाई में व्यस्त हैं। यात्रियों की तलाश की बजाय वह एक नई गाड़ी खरीदने की योजना में बनाने में लगे हैं, मगर इस बार उनकी पसंद इलेक्ट्रिक तीन पहिया वाहन खरीदने की है।
हाल ही में राजेश के दोस्तों ने इलेक्ट्रिक वाहन खरीदे हैं और उन्होंने बताया कि इससे ईंधन खर्च में बचत हो रही है। राजेश कहते हैं, ‘वे सिर्फ ईंधन खर्च कम होने की वजह से ही मुझसे अधिक कमा रहे हैं।’
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के तीन पहिया वाहन चालक ईंधन के लिए हर दिन औसतन 450 रुपये कंप्रेस्ड नैचुरल गैस (सीएनजी) पर खर्च करते हैं। वहीं दूसरी ओर, इलेक्ट्रिक वाहन चालक महज 200 रुपये खर्च करते हैं।
अधिकतर इलेक्ट्रिक वाहन चालक अपने घर में या फिर चार्जिंग सुविधा वाले वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों में अपने वाहन चार्ज करते हैं। कुछ का यह भी कहना है कि वे स्कूल, मॉल और बाजार जैसे सार्वजनिक स्थानों पर अपने वाहन चार्ज करते हैं।
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के वाहन डैशबोर्ड के आंकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2024 में अब तक देश भर में बेचे गए कुल 9,86,797 तीन पहिया वाहनों में 54 फीसदी इलेक्ट्रिक से चलने वाली गाड़ियां हैं। वित्त वर्ष 2015 में इसकी हिस्सेदारी महज 15 फीसदी थी।
हालांकि, सीएनजी वाले तीन पहिया वाहनों में भी लगातार बिक्री देखी जा रही है। यह वित्त वर्ष 2019 के 1,98,616 इकाइयों से 53 फीसदी बढ़कर अभी 3,03,817 इकाइयों पर पहुंच गई है। मगर, सभी हरित ईंधन को एक जैसी सफलता नहीं मिली है।
लिक्विफाइड पेट्रोलियम गैस (एलपीजी) से चलने वाले वाहनों में काफी गिरावट देखी गई। सीएनजी और इलेक्ट्रिक वाहनों से कड़ी टक्कर मिलने के कारण इसकी संख्या वित्त वर्ष 2019 के 1,03,950 इकाइयों से घटकर फिलहाल 25,442 हो गई है।
उद्योग के जानकारों का कहना है कि इलेक्ट्रिक तीन पहिया वाहनों की बिक्री को बल मिलने में सरकार की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इलेक्ट्रिक परिवहन पर सरकार के जोर देने और पेट्रोल-डीजल की कीमतों में वृद्धि से भी लोगों ने इलेक्ट्रिक वाहनों की ओर रुख किया है।
राष्ट्रीय राजधानी सहित कई राज्य अब डीजल वाहनों पर रोक के साथ सीएनजी अथवा इलेक्ट्रिक गाड़ियों पर जोर दे रहे हैं। मगर, इलेक्ट्रिक तीन पहिया वाहनों की वृद्धि का एक अन्य कारण भी है। उद्योग के अनुमान के मुताबिक, उनमें से अधिकतर यानी करीब 70 फीसदी वाहन लीथियम आयन बैटरी की बजाय लेड एसिड पर चलते हैं।
एनआरआई कंसल्टिंग सॉल्यूशंस के केस ऐंड ऑल्टरनेटिव पावरट्रेन विशेषज्ञ प्रीतेश सिंह का कहना है, ‘लेड बैटरी से चलने वाले इलेक्ट्रिक तीन पहिया वाहनों का अभी बाजार में इसलिए भी दबदबा है क्योंकि ऐसी बैटरियों के लिए परिवेश देश भर में विकसित हो चुका है।
लेकिन चार्जिंग बुनियादी ढांचे का विस्तार होता है और लीथियम बैटरी से चलने वाली रिक्शा की कीमतें और प्रतिस्पर्धी हो जाती है तो उनकी बाजार हिस्सेदारी भी बढ़ने की संभावना है।’
सरकार के इलेक्ट्रिक वाहन को तेजी से अपनाने और विनिर्माण (फेम2) योजना के तहत बैटरी के आकार के आधार पर लीथियम बैटरी से चलने वाले इलेक्ट्रिक तीन पहिया वाहनों पर 32,200 से 1,11,505 रुपये तक की सब्सिडी दी जाती है। विभिन्न तीन पहिया वाहनों को प्रोत्साहित करने के लिए योजना के 10,000 करोड़ रुपये के परिव्यय में से कुल 987 करोड़ रुपये आवंटित किए गए।
अमूमन तीन पहिया वाहन चालक निम्न आय वर्ग से ताल्लुक रखते हैं इसलिए वे लेड-एसिड वाले वाहनों का विकल्प चुनते हैं। इलेक्ट्रिक तीन पहिया वाहनों की शुरुआती कीमत 1 लाख रुपये होती है और 4 लाख रुपये तक जाती है। कुल लागत का करीब 40 फीसदी हिस्सा बैटरी का होता है और लीथियम बैटरियों की तुलना में लेड एसिड बैटरियां 20 से 40 फीसदी तक सस्ती होती हैं।
वाहन उद्योग के जानकारों के मुताबिक, लागत प्रतिस्पर्धा और आर्थिक लाभ से इलेक्ट्रिक तीन पहिया वाहनों की पैठ और अधिक बढ़ेगी। उन्हें उम्मीद है कि इलेक्ट्रिक तीन पहिया वाहनों की बिक्री फर्राटा भरेगी और यह साल 2030 तक तीन पहिया श्रेणी में नीति आयोग के 80 फीसदी बाजार हिस्सेदारी के लक्ष्य को पूरा करने के लिए भी तैयार है।
इस बीच, डीजल-पेट्रोल जैसे पारंपरिक ईंधन वाले वाहन अपनी पकड़ खो रहे हैं। डीजल से चलने वाले तीन पहिया वाहनों की बिक्री वित्त वर्ष 2019 के 3,19,010 इकाइयों से घटकर फिलहाल मात्र 1,10,845 रह गई है। यह 65 फीसदी की भारी गिरावट है। इसी अवधि के दौरान पेट्रोल से चलने वाले तीन पहिया वाहनों की बिक्री भी 23,713 से घटकर 12,116 इकाइयां तक रह गई।