महंगाई पर RBI की कड़ी नजर जरूरी, संसद की निगरानी से बढ़ेगी जवाबदेही
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने अपने मुद्रास्फीति-लक्ष्यीकरण ढांचे की समीक्षा के लिए एक परिचर्चा पत्र जारी कर अच्छा कदम उठाया है। मार्च 2026 में मुद्रास्फीति-लक्ष्यीकरण ढांचे की अनिवार्य दूसरी पांच वर्षीय समीक्षा से पहले इस परिचर्चा पत्र के जरिये प्रमुख पहलुओं पर प्रतिक्रिया मांगी गई है। वर्ष 2021 में पहली पांच वर्षीय समीक्षा में इस […]
कारोबार में उलझी सरकार, 2021 के विनिवेश लक्ष्यों को जल्द से जल्द लागू करने की जरूरत
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फरवरी 2021 में आयोजित एक वेबिनार में ठीक ही कहा था कि ‘सरकार को स्वयं कारोबार करने के झमेले में नहीं पड़ना चाहिए’। उनका यह संक्षिप्त भाषण काफी संजीदगी से तैयार किया गया था और इसमें अंतर्निहित संदेश पूरी तरह स्पष्ट था। प्रधानमंत्री के उक्त बयान के बाद वित्त वर्ष 2021-22 […]
विकसित भारत और नेट जीरो लक्ष्यों के लिए स्पष्टता जरूरी
आकांक्षाएं जब पक्के इरादों से जुड़ी होती हैं तब किसी भी व्यक्ति, कंपनी या देश को आगे बढ़ने और तरक्की करने के लिए प्रेरित करती हैं। कोई भी बड़ी कंपनी अपने लक्ष्यों और उद्देश्यों से जुड़े दस्तावेजों में अपनी आकांक्षाएं दिखाती है। अगर देशों की बात करें तो उनकी कई आकांक्षाएं अलग-अलग सरकारी दस्तावेजों में […]
भारत में कार्बन क्रेडिट बाजार की बुनियाद तैयार, लेकिन कई चुनौतियां बाकी
भारत सरकार ने जून 2023 में कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग स्कीम (सीसीटीएस) की अधिसूचना जारी की थी और उसके बाद से कई कदम उठाए गए ताकि इसको अमलीजामा पहनाया जा सके। उम्मीद है कि ट्रेडिंग 2026 में शुरू हो जाएगी और वर्ष 2027 तक इसका एक स्थिर बाजार हो जाएगा। इस लेख में हम कार्बन बाजार […]
नियामकों के लिए खुलासे की व्यवस्था की सीमाएं
दुनिया भर में वित्तीय बाजार का नियमन मोटे तौर पर डिस्क्लोजर यानी खुलासे की व्यवस्था पर आधारित होता है। विनियमित संस्थाओं से कहा जाता है कि वे समय-समय पर खुलासा करें। यह यकीनन समय की कसौटी पर खरी और मजबूत व्यवस्था है क्योंकि जितना अधिक खुलापन हो उतना बेहतर। डिस्क्लोजर प्रणाली, कैविएट एम्प्टर के सिद्धांत […]
बाजार अर्थव्यवस्था में नियामकीय संस्थाएं
माइक्रोइकनॉमिक्स 101 मुक्त बाजार वाली अर्थव्यवस्था में बाजार के नाकाम होने की वजहें और असर समझाता है। साथ ही वह बताता है कि नियामक क्यों होने चाहिए। समय के साथ-साथ विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को भी अहसास हो गया है कि टिकाऊ वृद्धि के लिए भरोसेमंद और प्रतिष्ठित नियामकीय संस्थाएं कितनी जरूरी हैं। नियामक के गठन की […]
जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए भारत को चाहिए ठोस और कारगर नीति
जलवायु परिवर्तन ऐसी समस्या है, जो आम लोगों पर असर डालती है। हाल के वर्षों में बढ़ी प्राकृतिक आपदाएं इस बात की बार-बार याद दिलाती है। जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन की एक बड़ी नाकामी विकसित देशों का उस वादे से मुकरना है, जिसमें उन्होंने विकासशील देशों को वित्तीय मदद और तकनीक देने की […]
बैंकों के नियमन में नियामकीय संतुलन
दुनिया के अधिकांश देशों खासकर भारत जैसे उभरते देशों में वित्तीय क्षेत्र पर बैंकों का दबदबा है। बैंक महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि वे अपनी पहुंच के जरिये वित्तीय समावेशन को गति देते हैं, ऋण को वांछित क्षेत्रों तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाते हैं और सरकारों को विभिन्न लक्ष्य पाने में सहायता करते हैं। बैंकों के […]
इन्फ्लेशन टारगेट तय करने के तरीकों में हो बदलाव…
नई सरकार को मुद्रास्फीति का लक्ष्य (Inflation target) निर्धारित करते समय व्यापक विचार-विमर्श करना चाहिए। बता रहे हैं अजय त्यागी मुद्रास्फीति को नियंत्रण में रखने के लिए दुनिया के केंद्रीय बैंकों द्वारा तय लक्ष्यों के प्रभाव और अब उनके औचित्य पर सवाल खड़े होने लगे हैं। कोविड महामारी के बाद ब्याज दर-मुद्रास्फीति के समीकरण को […]
खुदरा निवेशकों पर भरोसा बरकरार रखने का वक्त
भारतीय पूंजी बाजारों में 2020-21 के बाद से खुदरा भागीदारी में इजाफा हुआ है। करीब 15 करोड़ के आंकड़े के साथ डीमैट खाते 1 अप्रैल, 2020 की तुलना में 275 प्रतिशत अधिक हो चुके हैं। शेयर बाजार के नकदी क्षेत्र में कारोबार करने वाले आम लोगों का अनुपात करीब 40 फीसदी है। सूचीबद्ध कंपनियों में […]