अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के नेतृत्व में अपनी परिकल्पना के दो दशक से ज्यादा समय बाद और नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा चाबहार (Chabahar) में अंतरराष्ट्रीय परिवहन और ट्रांजिट कॉरिडोर की स्थापना संबंधी समझौते के आठ वर्ष बाद आखिरकार भारत और ईरान ने सोमवार को 10 वर्षीय परिचालन अनुबंध पर हस्ताक्षर कर दिए।
भारत सरकार के स्वामित्व वाली कंपनी इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड (IPGL) और ईरान के पोर्ट्स ऐंड मैरीटाइम ऑर्गनाइजेशन (पीएमओ) के बीच हुए समझौते में भारतीय कंपनी ने बंदरगाह को उपकरण संपन्न बनाने और संचालन के लिए करीब 12 करोड़ डॉलर का निवेश करने की प्रतिबद्धता जताई है।
अधोसंरचना को पूरा करने के लिए 25 करोड़ डॉलर की रुपी क्रेडिट की बात भी कही गई है। समझौते का तात्कालिक महत्त्व तो यही है कि यह उपकरणों की खरीद को लेकर छह साल से चला आ रहा गतिरोध समाप्त करता है।
आपूर्तिकर्ता आईपीजीएल को ऋण देने के अनिच्छुक रहे क्योंकि वे ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों से आशंकित थे। नए समझौते के तहत पीएमओ आईपीजीएल की ओर से उपकरण खरीदेगा और धनराशि संयुक्त अरब अमीरात में स्थित एक ईरानी कंपनी को रिफंड की जाएगी।
इससे पहले अप्रैल में भारत और म्यांमार के बीच एक समझौता हुआ था जिसमें म्यांमार और भारत के पूर्वोत्तर इलाके के बीच संपर्क मजबूत करने के लिए सितवे बंदरगाह का पूरा संचालन आईपीजीएल के संभालने की बात शामिल थी।
चाबहार परियोजना चीन की विशाल बेल्ट और रोड पहल का भारतीय जवाब
चाबहार परियोजना (Chabahar Project) को चीन की विशाल बेल्ट और रोड पहल का भारतीय जवाब माना जा रहा है। अगर मान भी लें कि यह बढ़ाचढ़ाकर कही गई बात है तब भी यह भारत के लिए महत्त्वपूर्ण है क्योंकि नौवहन, बंदरगाह और जलमार्ग मंत्री सर्वानंद सोनोवाल आम चुनाव के बीच इस समझौते पर हस्ताक्षर करने तेहरान पहुंचे।
चाहबार का पूरा नाम शाहिद बहेश्ती बंदरगाह को ग्वादर के प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखा जा रहा है। ग्वादर वह बंदरगाह है जिसे चीन पाकिस्तान में विकसित कर रहा है। चाबहार भारत को अफगानिस्तान और मध्य एशिया से संपर्क मुहैया कराएगा। इसके इंटरनैशनल नॉर्थ साउथ परिवहन गलियारे से जुड़ाव की संभावना इसकी संभावनाओं का विस्तार करती है। यह भारत, रूस और ईरान की संयुक्त परियोजना है जो हिंद महासागर और पर्शिया की खाड़ी को एक जमीन स्थित मल्टी मॉडल कॉरिडोर के जरिये सेंटर पीटर्सबर्ग तथा उत्तरी यूरोप से जोड़ेगी।
चाबहार को मोदी सरकार के लिए इतना अहम माना जा रहा था कि अफगानिस्तान तक पहुंच को वजह बताते हुए डॉनल्ड ट्रंप के नेतृत्व वाले अमेरिकी प्रशासन से बाकायदा रियायत चाही गई थी। परंतु अमेरिका के अफगानिस्तान से निकलने के बाद बाइडन प्रशासन ने चेतावनी जारी की कि ईरान के साथ समझौता करने वालों को प्रतिबंध झेलने होंगे। भारत सरकार के आगे बढ़ने की राह में यह कूटनीतिक चुनौती होगी।
म्यांमार में छिड़ा गृहयुद्ध सितवे की प्रगति को रोक रहा है, उसी तरह इस क्षेत्र में मची राजनीतिक उथलपुथल भी बताती है कि बंदरगाह का संचालन मुश्किल होगा। यह सिस्ता-बलूचिस्तान क्षेत्र में स्थित है जहां पाकिस्तान और अफगानिस्तान की सीमा मिलती है। वह अशांतिपूर्ण क्षेत्र है। इस वर्ष जनवरी में ईरान ने पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में मिसाइल हमला किया था ताकि ईरान विरोधी आतंकियों को समाप्त कर सके।
इसके जवाब में पाकिस्तान ने भी मिसाइल और लड़ाकू विमानों से हमला बोला। यूक्रेन के साथ रूस का युद्ध भी आईएनएसटीसी को कमजोर कर सकता है। परंतु चाबहार समझौते से भूराजनीतिक लाभ हासिल होगा।
ऐसे समय पर जब भारत हमास के खिलाफ जंग में रणनीतिक रूप से इजरायल का साथ दे रहा है और एक समझौते के तहत फिलिस्तीनियों की जगह इजरायल में भारतीय कामगारों को भेज रहा है, चाबहार समझौता अवसर है कि भारत पश्चिम एशिया में अपने रिश्तों को नए सिरे से संतुलित करे। इस क्षेत्र की मौजूदा अनिश्चितता तथा भारत की इस पर गहरी निर्भरता को देखते हुए यह भी बड़ा लाभ होगा।