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पोर्टफोलियो प्रबंधकों के लिए कठिनाई भरा समय

अगर कोविड के समापन के बाद दो वर्षों के मूल्य संबंधी कदमों पर नजर डालें तो बाजार में अलग तरह के विजेता नजर आए हैं।

Last Updated- May 08, 2024 | 9:44 PM IST
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बाजारों के नेतृत्व और उनकी शैली में बड़ा बदलाव आ रहा है। यह काफी हद तक वैसा ही है जैसा कि 2003 से 2008 के बीच की तेजी के दौर में देखने को मिला था। बता रहे हैं आकाश प्रकाश

अब जबकि बाजार नई ऊंचाइयों की ओर हैं, तो यह इक्विटी पोर्टफोलियो के संचालन के लिए सही समय नहीं है। ऐसा प्रतीत होता है कि बाजार स्पष्ट रूप से सेक्टर रोटेशन या नेतृत्व परिवर्तन के दौर से गुजर रहे हैं और विगत 15 वर्षों के दौरान अग्रणी रहने वाले इस बार कारगर नहीं नजर आ रहे।

अगर कोविड के समापन के बाद दो वर्षों के मूल्य संबंधी कदमों पर नजर डालें तो बाजार में अलग तरह के विजेता नजर आए हैं। बाजार नेतृत्व में बदलाव की अवधि को देखते हुए कह सकते हैं यह परिवर्तन तेजी के चरण का प्रतीक है और यह तब तक बरकरार रहेगा जब तक कि बाजार में तेजी का सिलसिला जारी रहेगा।

अर्थव्यवस्था में खपत की हिस्सेदारी में ठहराव है और सकल घरेलू उत्पाद में निवेश की हिस्सेदारी बढ़ी है, ऐसे में अधोसंरचना से जुड़े शेयरों और क्षेत्रों तथा पूंजीगत चक्र को लाभ पहुंचा है। इसी प्रकार सार्वजनिक उपक्रमों के शेयरों के मूल्यांकन में भी भारी इजाफा हुआ है। एक समय अपवाद माने जाने वाले सरकारी उपक्रम अब चलन में हैं।

निवशकों को यकीन है कि मोदी सरकार वर्षों से कमजोर प्रदर्शन कर रही और इस कारण सस्ते शेयरों वाली इन कंपनियों की संभावनाओं का पूरा लाभ उठाएगी। खासतौर पर सरकारी बैंकों ने निजी बैंकों की तुलना में अपने कमजोर प्रदर्शन में सुधार किया है।

बिजली क्षेत्र के शेयरों के साथ-साथ विनिर्माण और रक्षा क्षेत्र के शेयरों में भी मजबूती नजर आ रही है। निवेशकों को यकीन है कि आपूर्ति श्रृंखला की विविधता और औद्योगिक नीति के बेहतर इस्तेमाल की मदद से भारत के पास विनिर्माण बाजार की हिस्सेदारी लेने का अच्छा खासा अवसर है। इस क्षेत्र का बाजार काफी बड़ा है और कंपनियां बहुत जल्दी दो से तीन गुना आपूर्ति की स्थिति में आ सकती हैं।

बिजली क्षेत्र में बात नवीकरणीय ऊर्जा की हो या ताप बिजली की, भारत को क्षमता विस्तार की आवश्यकता है। ग्रिड में भी निवेश की जरूरत है। निवेशक यहां मुनाफे की संभावना को महसूस कर सकते हैं क्योंकि यहां बहुत अधिक निवेश की आवश्यकता है। रक्षा क्षेत्र में भी निर्यात बढ़ाने और स्वदेशीकरण का अवसर है।

मूल्य संबंधी कदम और क्षेत्रवार नेतृत्व के माध्यम से बाजार स्पष्ट संकेत दे रहा है कि हम 2003-08 के परिदृश्य की ओर वापस जा रहे हैं। तेजी के उस दौर में बाजार में पूंजी गहन क्षेत्रों मसलन अधोसंरचना और अचल संपत्ति तथा निवेश आधारित क्षेत्रों का जोर था। बाजार राजस्व वृद्धि पर केंद्रित था, न कि पूंजी पर प्रतिफल अथवा नई नकदी के।

तथाकथित रूप से दीर्घकालिक क्वालिटी कंपाउंडर (पूरे आर्थिक चक्र में बेहतर प्रदर्शन करने वाले क्षेत्र) परिदृश्य ने बाजार को रोक रखा था। वही अंतिम दौर था जब क्वालिटी कंपाउंडर भारत में सस्ते थे।

निवेशक किसी भी कीमत पर वृद्धि चाहते थे और पूंजी निवेश की बाजार द्वारा सराहना की जा रही थी। वैश्विक वित्तीय संकट के बाद फंसे हुए कर्ज में इजाफा हुआ और बाजार वृद्धि के कारक दोबारा पिछड़ गए।

वर्ष 2009 के बाद से अभी हाल तक हमने क्वालिटी कंपाउंडर का युग देखा। गुणवत्तापूर्ण शेयर जो आमतौर पर पूंजी पर अधिक प्रतिफल देने वाले, आय के मामले में स्थिर और अनुमान योग्य होते हैं। यह उपभोक्ता कंपनियों के शेयरों का युग था। इन शेयरों ने 15-20 फीसदी के दायरे में उचित आय मुहैया कराई और उनका विस्तार भी मजबूती से हुआ। इससे उनका प्रदर्शन और बेहतर हुआ।

विस्तार का यह दौर अब समाप्त होता नजर आ रहा है और हम ऐसी अवधि के बीच में हैं जहां गुणवत्ता परिदृश्य सामान्य हो रहा है। उनके चर में कमी आने के साथ ही ये शेयर बीते करीब 18 महीनों से सीमित तेजी के दौर में हैं। चूंकि वे बहुत महंगी दरों पर कारोबार कर रहे थे, इसलिए उनके गुणकों के सामान्य होने में वक्त लग सकता है।

इसी प्रकार हमने देखा कि कैसे सरकारी उपक्रमों का मूल्य निजी क्षेत्र के प्रतिस्पर्धियों की ओर स्थानांतरित हुआ। यह निजी बैंकों और सरकारी बैंकों के मामले में सबसे अधिक स्पष्ट था लेकिन इसे दूरसंचार, बीमा और विमानन क्षेत्र में भी देखा जा सकता है। इस स्थिति में भी बदलाव आ रहा है।

सरकारी कंपनियों के शेयर अब कई क्षेत्रों में निजी कंपनियों से बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं और 18 से 24 माह की अवधि में उन्होंने बहुत अच्छा प्रतिफल भी दिया है। इस बात की संभावना नहीं है कि सरकारी उपक्रम अंतहीन समय तक हिस्सेदारी गंवाते रहेंगे।

बाजार इस विश्वास में नजर आ रहे हैं कि सरकारी उपक्रम अपनी मौजूदा बाजार हिस्सेदारी को बचाए रखेंगे और उनकी उत्पादकता और मुनाफे में भी सुधार होगा। उनके परिचालन में सुधार की गुंजाइश बनी रहेगी।

बुनियादी संदेश यह है कि जिस पोर्टफोलियो संरचना ने बीते 15 वर्षों में सफलता दिलाई अब वह कुछ समय से कमजोर है और तब तक कमजोर बना रहेगा जब तक कि गुणवत्ता परिदृश्य के गुणक पूरी तरह बदलते नहीं हैं। अगर आप 2003 से 2008 के बीच बाजार में नहीं थे तो आपने गुणवत्ता संचालित बाजारों के विपरीत नहीं देखा होगा।

बाजार का संदेश स्पष्ट है। नेतृत्व बदला है। अब पुरानी व्यवस्था जल्दी नजर नहीं आएगी। इसी प्रकार मिड कैप शेयरों के बेहतरीन प्रदर्शन का रुझान बढ़ती घरेलू आवक की बदौलत हुआ है। इसमें बदलाव आता नहीं दिखता। अगर कुछ वर्ष पहले की बात करें जब विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक इक्विटी प्रवाह के सबसे प्रमुख स्रोत थे, तब मिड कैप शेयर वर्षों तक कमजोर प्रदर्शन करते थे। आज इसकी कल्पना करना भी मुश्किल है।

बीते 15 वर्षों के दौरान निवेश करने वाले किसी भी व्यक्ति ने क्वालिटी शेयरों पर पैसे कमाए होंगे और सरकारी शेयरों तथा परिसंपत्ति गहन क्षेत्रों से बचा होगा। तेजी के मौजूदा दौर में यह रणनीति कारगर नहीं दिखती। मिड कैप, सरकारी उपक्रम और निवेश चक्र के लाभार्थी शेयर तेजी की ओर अग्रसर नजर आते हैं। ऐसे में निवेशक को क्या करना चाहिए?

निवेश दर्शन को भूलकर जो कारगर हो उस पर टिके रहना चाहिए? गुणवत्ता वाले नामों को त्यागकर विनिर्माण और निवेश शेयरों की खरीद करनी चाहिए? या फिर विपरीत दिशा में जाना चाहिए और पूंजी को पिछड़ रहे और सस्ते हो चुके गुणवत्ता शेयरों में लगाना चाहिए?

इन सवालों का जवाब इस बात पर निर्भर है कि हम विशुद्ध रूप से प्रदर्शन पर ध्यान दे रहे हैं या सापेक्ष पर? इसके अलावा यह देखना होगा कि हम लंबी अवधि के जोखिम समायोजन वाले प्रदर्शन को लेकर चल रहे हैं या हमें तिमाही आधार पर मानकों के साथ तालमेल बनाना है? यह निवेशक आधार और उनकी इच्छा पर भी निर्भर करता है कि वे आपको अल्पकालिक रूप से कमजोर प्रदर्शन करने देने की छूट देते हैं या नहीं।

बाजार की शैली और उसके नेतृत्व में व्यापक बदलाव आ रहा है। ये परिवर्तन हर कुछ वर्ष में होता है और इसकी प्रकृति चक्रीय होती है। यही वजह है कि किसी एक फंड का हर वर्ष बेहतर प्रदर्शन करना मुश्किल होता है। कई फंड लंबी अवधि में बेहतरीन प्रदर्शन करते हैं लेकिन शायद ही कोई फंड हो जो हर वर्ष बेहतरीन प्रदर्शन करता हो।

इस नेतृत्व परिवर्तन का सामना कैसे किया जाए, यह इस बात पर निर्भर करता है कि फंड का उद्देश्य क्या है, उसके निवेशकों में कितना धैर्य है और खराब प्रदर्शन के दौरान उनमें कितने समय तक शांति से रहने की क्षमता है। जो भी हो, पोर्टफोलियो प्रबंधकों के समक्ष कठिन समय है।

(लेखक अमांसा कैपिटल से संबद्ध हैं)

First Published - May 8, 2024 | 9:40 PM IST

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