इक्विटी निवेश में खुदरा निवेशकों की बढ़ती भागीदारी की वजह से भारत के पूंजी बाजारों में संरचनात्मक रूप से परिवर्तन आया है। ऐसे परिदृश्य के बीच विश्लेषक इस क्षेत्र को निवेश के अहम मौके के तौर पर देखते हैं। व्हाइटस्पेस अल्फा के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) और फंड मैनेजर (कैट-3 वैकल्पिक निवेश फंड) पुनीत शर्मा का मानना है, खुदरा निवेशकों की बढ़ती भागीदारी से परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनियां (एएमसी) और स्टॉक एक्सचेंज/मध्यस्थ दोनों को ही स्पष्ट रूप से लाभ हो रहा है, लेकिन एक्सचेंज और मध्यस्थ खंड जोखिम-लाभ के लिहाज से ज्यादा आकर्षक हैं।
उन्होंने कहा, एक्सचेंज और डिपॉजिटरी इकोसिस्टम के पास मजबूत परिचालन क्षमता और एन्युटी जैसे राजस्व के स्रोत हैं। जैसे-जैसे वॉल्यूम के साथ उनका कारोबार बढ़ता है, तो उन्हें व्यापक बाजार भागीदारी का सीधा लाभ मिलता है। एक्सचेंजों और मध्यस्थों में एनएसई (गैर-सूचीबद्ध), बीएसई, एमसीएक्स, सीडीएसएल, एनएसडीएल और सीएएमएस जैसे नाम शामिल हैं। परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनियों (एएमसी) और ब्रोकरेज में एचडीएफ एएमसी, ग्रो, आदित्य बिड़ला सन लाइफ एएमसी, नुवामा वेल्थ मैनेजमेंट, मोतीलाल ओसवाल फाइनैंशियल सर्विसेज आदि शामिल हैं।
कोविड-19 के कारण 2020 में शेयर बाजार में आई गिरावट के बाद से भारत में इक्विटी के रुझान में लगातार वृद्धि हुई है। डिपॉजिटरी के आंकड़ों के अनुसार अक्टूबर 2025 तक कुल डीमैट खातों की संख्या 21 करोड़ हो गई जो फरवरी 2020 के 4 करोड़ खातों के मुकाबले जोरदार वृद्धि है।
इसके अलावा, बाजारों ने सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (एसआईपी) में लगातार वृद्धि देखी है और मासिक एसआईपी अक्टूबर 2025 में 29,529 करोड़ रुपये के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गया। म्युचुअल फंड उद्योग की प्रबंधित परिसंपत्तियां (एयूएम) भी 80 लाख करोड़ रुपये के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गई हैं।
बी एंड के सिक्योरिटीज के एक नोट में कहा गया है, पिछले 10/20 वर्षों में घरेलू इक्विटी बाजार पूंजीकरण में क्रमशः 18 फीसदी /15 फीसदी की सालाना चक्रवृद्धि के हिसाब से वृद्धि हुई है और यह 5.3 लाख करोड़ डॉलर/475 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। इसके अलावा, भारत में डीमैट खातों की पहुंच 13 फीसदी है जो चीन और अमेरिका से कम है, जिससे मध्यम से दीर्घकालीन निवेश का अच्छा मौका मिलता है। मेहता इक्विटीज में रिसर्च के वरिष्ठ उपाध्यक्ष प्रशांत तापसे ने कहा कि निवेशक एक्सचेंजों और मध्यस्थों पर अधिक दांव और उसके बाद एएमसी और ब्रोकरेज फर्मों पर ध्यान देते हुए निवेश में विविधता ला सकते हैं।
उन्होंने कहा, एक्सचेंजों/मध्यस्थों का राजस्व मुख्य रूप से बाजार की दिशा पर निर्भर होने के बजाय वॉल्यूम से जुड़ा होता है, जिससे आय में स्पष्टता आती है। खुदरा गतिविधियों में वृद्धि सीधे तौर पर डेरिवेटिव कारोबार, कैश वॉल्यूम, डेटा सेवाओं और अन्य राजस्व स्रोतों को बढ़ावा देती है।
उन्होंने कहा, चूंकि एक्सचेंज/मध्यस्थ उच्च प्रवेश बाधाओं, स्थिर नियामक निगरानी और मजबूत नकदी पोजीशन वाले अल्पाधिकारवादी माहौल में काम करते हैं। इसलिए उन्हें उच्च परिचालन लिवरेज, इक्विटी पर बेहतर रिटर्न (आरओई) और आय में अपेक्षाकृत कम स्थिरता का फायदा मिलता है। वहीं, एएमसी और ब्रोकरेज फर्मों की आय बाजार के उतार-चढ़ाव और बढ़ती प्रतिस्पर्धा के प्रति संवेदनशील होती है। विश्लेषकों का कहना है कि डिस्काउंट ब्रोकरेज फर्मों को विशेष रूप से बढ़ती प्रतिस्पर्धा और सख्त नियमों का सामना करना पड़ रहा है, जिससे निकट भविष्य में उनकी आय में वृद्धि सीमित हो सकती है।
तथापि विश्लेषकों ने पूरे पूंजी बाजार क्षेत्र के लिए नियामकीय जोखिमों के प्रति आगाह किया है। उन्होंने कहा कि एक्सचेंजों के कारोबार का वॉल्यूम साप्ताहिक एक्सपायरी तारीखों में बदलाव/सीमा निर्धारण, मासिक एक्सपायरी तारीखों को एक ही दिन में स्थानांतरित करने, विकल्प अनुबंधों के आकार में वृद्धि आदि से प्रभावित हो सकता है।
एएमसी और ब्रोकरेज फर्मों को उच्च इंट्राडे लिक्विडिटी बफर रखने की आवश्यकता, खर्चों के संभावित स्पष्ट खुलासे और टीईआर/शुल्क संरचनाओं में बदलाव और पिछले रिटर्न के सत्यापन के कारण मार्जिन में सिकुड़न और उच्च लागत का सामना करना पड़ सकता है।
सैमको सिक्योरिटीज के शोध विश्लेषक राज गायकर का मानना है कि एक्सचेंज और मध्यस्थ अपनी स्थिर, गतिविधियों से जुड़ी वृद्धि के मद्देनजर मुख्य निवेश हो सकते हैं, जबकि अतिरिक्त लाभ के लिए उच्च गुणवत्ता वाली एएमसी को जोड़ा जा सकता है।