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G20 की गांधीनगर बैठक से उपजा सुधार का खाका

जी20 देशों के वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंकों के गवर्नरों की तीसरी बैठक 17-18 जुलाई को गांधीनगर में संपन्न हुई।

Last Updated- August 16, 2023 | 10:36 PM IST
Set goals for the success of the G20 Presidency

वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंकों के गवर्नरों की बैठक में विभिन्न कामों के जो नतीजे सामने आए वे विकसित व विकासशील देशों के नजरिये सामने रखते हैं। बता रहे हैं वी अनंत नागेश्वरन और अनूपा नायर

जी20 देशों के वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंकों के गवर्नरों की तीसरी बैठक 17-18 जुलाई को गांधीनगर में संपन्न हुई। यह बैठक अहम वैश्विक वित्तीय मुद्दों को हल करने के नजरिये से बहुत अहम रही और उसने फरवरी 2023 में पहली बैठक के एजेंडे को आगे बढ़ाने का काम किया।

बैठक के बाद जारी किए गए नतीजे संबंधी दस्तावेज और अध्यक्ष की ओर से प्रस्तुत संक्षिप्त जानकारी से पता चलता है कि अहम प्रगति हुई और अहम वैश्विक मुद्दों पर नीतिगत निर्देशन भी प्राप्त हुआ।

बहुपक्षीय विकास बैंकों (एमडीबी) को भी दानदाता और कर्जदार देशों से बढ़ती मांग का सामना करना पड़ रहा है ताकि वे अपने ऋण कारोबार का विस्तार करें और बुनियादी विकास संबंधी कामों से परे जाकर सीमाओं से परे की चुनौतियों मसलन जलवायु परिवर्तन और महामारियों आदि से भी निपट सकें। बहरहाल अगर एमडीबी के कार्यक्षेत्र का विस्तार होता है तो उनकी वित्तीय मजबूती भी बढ़ेगी।

इसके अलावा आवश्यकता इस बात की भी होगी कि उनके मौजूदा परिचालन मॉडल की समीक्षा की जाए ताकि उन्हें नई चुनौतियों से निपटने में सक्षम बनाया जा सके। अपनी मौजूदा अवस्था में एमडीबी इतने सक्षम नहीं हैं कि वे वित्तीय सहायता उपलब्ध कराने की बढ़ती मांग को पूरा कर सकें। इस संदर्भ में प्रेसिडेंसी ने जी20 के स्वतंत्र विशेषज्ञ समूह की स्थापना की ताकि एमडीबी को मजबूत बनाया जा सके।

रिपोर्ट का पहला हिस्सा प्रस्तुत किया जा चुका है और दूसरा हिस्सा अक्टूबर में वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंकों के प्रमुखों की चौथी और अंतिम दौर की बैठक के पहले पेश होने की उम्मीद है।

रिपोर्ट में जो तिहरा एजेंडा पेश किया गया है उसके मुताबिक एमडीबी को वैश्विक चुनौतियों को तो हल करना ही चाहिए। साथ ही उन्हें गरीबी उन्मूलन और साझा समृद्धि को बढ़ावा देने के लिए भी काम करना चाहिए। इसके अलावा उन्हें 2030 तक अपने सतत ऋण स्तर को तीन गुना करना है तथा मौजूदा कामों के साथ पूंजी पर्याप्तता में सुधार करते हुए अपनी वित्तीय मजबूती को बढ़ाना है।

इन अनुशंसाओं का क्रियान्वयन करने के पहले प्रत्येक एमडीपी अपने संचालन ढांचे के तहत इनकी जांच करेगी जिससे आगे चलकर विविधतापूर्ण वित्तीय चुनौतियों से निपटने की उनकी क्षमता बढ़ेगी। इस रिपोर्ट और इसकी अनुशंसाओं की मदद से भारत ने जी20 अध्यक्षता से मिले अवसर का लाभ लिया है ताकि विकासशील विश्व की प्राथमिकताओं को प्रभावी तरीके से एमडीबी सुधार से संबंधित व्यापक विश्व की चर्चाओं में लाया जा सके।

क्रिप्टो परिसंपत्तियों की प्रकृति सीमाओं से परे होती है इसलिए उन्होंने विभिन्न देशों द्वारा उनके नियमन की कोशिशों को चुनौती पेश की है। वित्तीय स्थिरता पर असर के नजरिये से देखें तो भारत को मिली जी20 की अध्यक्षता समन्वित और व्यापक नीति तथा नियामकीय ढांचे की मांग करती है ताकि इन परिसंपत्तियों से जुड़े विभिन्न जोखिमों को हल किया जा सके।

एक हालिया ब्लॉग पोस्ट में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने इस बात को स्वीकार किया कि भारत की अध्यक्षता वाले जी20 में क्रिप्टो परिसंपत्तियों को लेकर स्पष्ट नीतियों की बात ने जोर पकड़ा है।

सितंबर 2023 में जी20 नेताओं की शिखर बैठक के पहले अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और वित्तीय स्थिरता बोर्ड को यह काम सौंपा गया था कि वे एक पर्चा तैयार करें जो यह विश्व स्तर पर क्रिप्टो को लेकर प्रभावी नीतियां तैयार करने की दिशा में पहल करे।

डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर (डीपीआई) और डिजिटल नवाचारों ने भी वित्तीय समावेशन बढ़ाने की काफी संभावना दिखाई है। उनकी बदौलत कई देशों में आर्थिक वृद्धि का मार्ग प्रशस्त हुआ है। भारत में भी आधार और यूपीआई की बदौलत ऐसा हुआ है। डीपीआई के सबकों को चिह्नित करने से अन्य अर्थव्यवस्थाएं भी लाभान्वित हो सकती हैं।

जी20 ने कर्म आधारित नीतिगत अनुशंसाएं विकसित की हैं ताकि एक खुली समावेशी और जिम्मेदार डिजिटल व्यवस्था विकसित की जा सके।

जी 20 की अध्यक्षता के दौरान भारत को नवाचारी वित्तीय मॉडल तैयार करने पर भी ध्यान देना चाहिए जो निजी निवेश आकर्षित कर सकें और अधोसंरचना की फाइनैंसिंग में कमी को पाट सकें और भविष्य के शहर निर्मित किए जा सकें। जी 20 ने भविष्य के शहरों की फाइनैंसिंग के सिद्धांत विकसित किए हैं जिनकी मदद से एमडीबी तथा अन्य विकास वित्त संस्थानों को शहरी अधोसंरचना परियोजनाओं की प्लानिंग और फाइनैंसिंग के लिए निर्देशित किया जाएगा।

संवेदनशील अर्थव्यवस्थाओं में बढ़ते कर्ज का प्रश्न अहम आर्थिक जोखिम पैदा करता है और एजेंडा 2030 को हासिल करने की दिशा में उनकी प्रगति को बाधित करता है। भारत जी20 कॉमन फ्रेमवर्क के तहत कर्ज के पुनर्गठन को गति प्रदान करने की कोशिश करता रहा है।

जुलाई में वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंकों के गवर्नरों के समूह ने जांबिया, इथियोपिया और घाना में साझा फ्रेमवर्क के तहत कर्ज पुनर्गठन के क्षेत्र में किए गए काम की सराहना की। श्रीलंका के मामले में साझा फ्रेमवर्क के बाहर किए गए काम की सराहना की गई। जी20 से निरंतर मदद इस दिशा में वैश्विक प्रयासों को मदद पहुंचा सकती है।

जलवायु परिवर्तन की बात करें तो विश्व स्तर पर अधिक से अधिक देश कार्बन प्राइसिंग को बदलाव के प्राथमिक नीतिगत टूल के रूप में अपना रहे हैं। 2023 में जी20 प्रेसिडेंसी के दौरान भारत ने यह सुनिश्चित करने की दिशा में काम किया है कि बदलाव को लेकर वैश्विक नीतिगत चर्चा इस बात को चिह्नित करे कि उनकी विशिष्ट परिस्थितियों के आधार पर विभिन्न देश कई नीतिगत विकल्पों का चयन कर सकते हैं जो कीमतों से संबंधित और उससे इतर भी हो सकते हैं।

इसमें कार्बन कर, उत्सर्जन कारोबार, कारोबारयोग्य प्रदर्शन मानक, ग्रीन सब्सिडी, हरित तकनीक के मानक, नीतियों को अपनाना और नियामकीय तथा गैर मूल्य संबंधी नीतिगत कारण जिम्मेदार हैं। किसी देश के लिए जरूरी नीतिगत हस्तक्षेप का क्रियान्वयन लाभों को बढ़ाएगा और जलवायु परिवर्तन की वैश्विक प्रवृत्ति के चलते इस क्षेत्र में और सहयोग की आवश्यकता होगी।

एक समावेशी, सहज सहकारी और विशिष्ट रुख अपनाने से जलवायु परिवर्तन से निपटने की लागत और जोखिम दोनों कम होंगे। सीमित संसाधनों को देखते हुए सरकारों को जलवायु परिवर्तन से संबंधित अपने लक्ष्यों को कम लागत में हासिल करना चाहिए और यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि ये प्रयास वृद्धि को गति देने और वंचित वर्गों पर इसके सामाजिक-आर्थिक प्रभाव को कम करने का प्रयास करना चाहिए।

चुनौतीपूर्ण भूराजनीतिक माहौल में भारत की जी20 अध्यक्षता ने जी20 के सदस्य देशों तथा उससे इतर सामूहिक आर्थिक नतीजों को प्रभावित करने वाले मुद्दों को हल करने की दिशा में एक व्यापक रुख अपनाया है। भारत की अध्यक्षता ने संस्थागत जड़ता को तोड़ा है तथा क्रिप्टो परिसंपत्ति जैसे विषयों के अधिक समावेशी परीक्षण की इजाजत दी है।

विभिन्न कामों से जो नतीजे हासिल हुए वे भी विकासशील और विकसित दोनों देशों की चिंताओं से जुड़े हैं। इस तरह दुनिया के गरीब देशों को भी उन मुद्दों पर अपनी बात रखने और प्रभावी भूमिका अपनाने का अवसर मिला जो उनके हितों को बहुत अधिक प्रभावित करते हैं।

लब्बोलुआब यह कि जी20 देशों के वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंकों के गवर्नरों की भारत की अध्यक्षता में हुई बैठक में वैश्विक वित्तीय चुनौतियों को हल करने और समावेशी तथा टिकाऊ आर्थिक वृद्धि सुनिश्चित करने की दिशा में अहम वृद्धि हुई है। विकासशील देशों की जरूरतों को प्राथमिकता देते हुए भारत के नेतृत्व ने वैश्विक एजेंडे को आकार देने में अहम भूमिका निभाई और वैश्विक स्तर पर अहम मुद्दों से संबंधित जरूरी सुधारों को आगे बढ़ाया।
(लेखक भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार और लेखिका भारतीय आर्थिक सेवा की अधिकारी हैं)

First Published - August 16, 2023 | 10:36 PM IST

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