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जमीनी हकीकत: तबाही के मंजर की हो चुकी है शुरुआत

वैज्ञानिकों ने आगाह किया है कि यह तो विनाश की महज शुरुआत भर है क्योंकि हमारे आसपास प्राकृतिक संरचना तेजी से बदल रही है।

Last Updated- August 07, 2023 | 11:16 PM IST
End of 'eco-friendly' development concept!

पिछले कुछ महीनों में जलवायु एवं मौसम के मिजाज में काफी तल्खी दिखी है। इतनी तल्खी संभवतः पहले कभी नहीं देखी गई थी। सबसे पहले, इस साल जून में तापमान ने पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। इसके बाद जुलाई के दो हफ्तों में गर्मी ने ऐसा तांडव मचाया जो पहले कभी नहीं देखा गया था।

जून में दुनिया में समुद्र की सतह का तापमान पिछले सारे आंकड़े को पार कर गया और अंटार्कटिका पर जमी बर्फ की परत भी पिघल कर चौंकाने वाले स्तर पर आ गई। दुनिया के कई हिस्सों में तापमान में ताबड़तोड़ बढ़ोतरी हुई और भारी वर्षा से जान-माल दोनों की भारी क्षति हुई थी।

वैज्ञानिकों ने किया आगाह

वैज्ञानिकों ने आगाह किया है कि यह तो विनाश की महज शुरुआत भर है क्योंकि हमारे आसपास प्राकृतिक संरचना तेजी से बदल रही है। बंगाल की खाड़ी सहित सागरों में अत्यधिक गर्म हवाएं चलने से भारतीय उपमहाद्वीप में मॉनसूनी हवाओं के बहाव पर भी असर हो रहा है। इसके अलावा भू-मध्य सागरीय क्षेत्र से उत्पन्न प्रतिकूल हवाओं में भी काफी बदलाव देखा जा रहा है। ये प्रतिकूल परिस्थितियां शीत ऋतु में भारतीय उपमहाद्वीप में हिमपात एवं वर्षा कराती हैं।

वैज्ञानिकों का मानना है कि आर्कटिक में तापमान में बदलाव इसका कारण है। जून 2023 में पश्चिम विक्षोभ मॉनसून से टकरा गया जिससे अतिवृष्टि, बाढ़ एवं विनाश लीला का मंजर देखने को मिला। अब यह स्थिति उत्तरी अटलांटिक महासागर क्षेत्र में अपेक्षा से अधिक तापमान के साथ मिलकर स्थिति और भयावह बना रही है।

उत्तरी अटलांटिक महासागर क्षेत्र में अपेक्षा से अधिक तापमान से चक्रवात और प्रशांत महासागर में अल नीनो जैसी प्रतिकूल मौसमी परिस्थितियां जन्म लेती हैं जो बाद में अत्यधिक गर्मी एवं सूखे का खतरा पैदा करती हैं। कुल मिलाकर, निष्कर्ष यह है कि अब ऐसा कोई नियत मौसमी प्रारूप नहीं रह गया है जिस पर वैज्ञानिक ध्यान केंद्रित या भरोसा कर सके।

अब परिस्थितियां हमारे लिए सहज नहीं

अब परिस्थितियां हमारे लिए सहज नहीं रह गई हैं और प्रकृति का गुस्सा हमारे लिए बढ़ता ही जा रहा है। मगर इतना कुछ होने के बाद भी इन आपदाओं से निपटने के लिए अब तक उठाए गए कदम पूरी तरह अपर्याप्त रहे हैं। एक बात तो स्पष्ट है, हानिकारक (ग्रीनहाउस) गैसों का उत्सर्जन कहीं भी उतना कम नहीं हो रहा है जितना कम होना चाहिए था। हमें यह तथ्य स्वीकार करना चाहिए और इस पर बार-बार जोर डालना चाहिए ताकि हम इस मुगालते में नहीं रहें कि धनी एवं औद्योगिक देश जीवाश्म ईंधन के बजाय अब स्वच्छ ऊर्जा और बैटरी से चलने वाहन एवं बसों के इस्तेमाल की तरह कदम बढ़ा रहे हैं।

विकसित देशों में केवल इस बात से फर्क पड़ा है कि वे कोयले की जगह प्राकृतिक गैस के इस्तेमाल की तरफ बढ़ रहे हैं। इससे इन देशों में उत्सर्जन में कमी आई है। मगर प्राकृतिक गैस भी जीवाश्म ईंधन है और इससे भी प्रदूषण फैलता है और दुनिया अब भी प्रदूषण की गिरफ्त में है। इतना ही नहीं, जलवायु परिवर्तन के खतरे का सामना कर रही दुनिया में उस अनुपात में निवेश नहीं हो रहा है जो स्वच्छ भविष्य की दिशा में धीमी गति से भी बढ़ने के लिए पर्याप्त हो।

समस्या से तत्काल निपटने की जरूरत

हमें इस समस्या से तत्काल निपटना होगा। हमें इस विषय पर इधर-उधर ध्यान भटकाने और हवा में तीर चलाने के बजाय यह समझने की कोशिश करनी चाहिए कि जब हम कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन से निपटने में हम सब साथ हैं तो हमें वाकई एकजुट रहना चाहिए। दुनिया के कई हिस्सों में बेतहाशा गर्मी पड़ रही है और इससे राहत पाने के लिए उन्हें वातानुकूलित मशीनों (एसी) की जरूरत होगी।

वैश्विक तापमान पर इसका असर इस बात पर निर्भर करेगा कि ये देश उत्सर्जन कम करने के लिए क्या उपाय करते हैं। यह इस बात पर भी निर्भर करेगा कि वे किस तरह अपनी इमारतों को गर्म होने से बचाते हैं और हवा आने की व्यवस्था करते हैं। इस बात पर लंबे समय से चर्चा चल रही है। वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि के बीच हमें इससे निपटने के लिए कुछ और नए तरीके खोजने होंगे।

दुनिया में लाखों किसान तेजी से बदलते मौसम से सर्वाधिक प्रभावित हो रहे हैं। हालत इतनी बदतर हो गई है कि किसानों के लिए इस बात का अंदाजा लगाना मुश्किल हो रहा है कि उन्हें कब अगली फसल बोनी चाहिए। वे जो भी फसलें बोते हैं वे वर्षा के अभाव में सूख जाते हैं या अतिवृष्टि के कारण बरबाद हो जाते हैं। इसका नतीजा यह हुआ है कि फसलों की बोआई को लेकर कोई निश्चित समय सारिणी नहीं रह गई है और इससे जोखिम कई गुना बढ़ गया है। यह तेजी से बदलते मौसम का वीभत्स रूप है जिसका सामना अब हमें बार-बार करना पड़ रहा है। हमें इस विकराल स्थिति से निपटने का हरसंभव प्रयास करना चाहिए क्योंकि किसी तरह की लापरवाही संकट और बढ़ा देगी।

बदलते मौसम एवं जलवायु से जूझने की क्षमता रखने वाले उपायों की जरूरतों पर हम ध्यान नहीं दे रहे हैं। वास्तव में हम और रसातल में जा रहे हैं। हम निर्माण कार्यों से जल जमा होने वाली जगहों को नुकसान पहुंचा रहे हैं और जल निकासी के रास्ते में भी अवरोध उत्पन्न कर रहे हैं। हमें इस बात का जरा भी भान नहीं है कि हिमालय पर्वतमाला दुनिया की सबसे नई श्रृंखला है, इसलिए सड़क से लेकर अन्य आधारभूत ढांचा बनाने से पहले हमें इससे जुड़े खतरों को अवश्य ध्यान में रखना चाहिए।

दुनिया में केवल जलवायु परिवर्तन ही तबाही के मंजर का कारण नहीं है जैसा कि हमारे राजनीतिज्ञ अक्सर समझाने की कोशिश करते रहते हैं। जलवायु परिवर्तन मानव के क्रियाकलापों से पैदा हुई प्रतिकूल परिस्थिति को और विकराल बना रहा है। मैं इसलिए ऐसा कह रही हूं क्योंकि हमें यह नहीं समझ लेना चाहिए कि इस समस्या का समाधान खोजना हमारे बस की बात नहीं है। अगर ऐसा हुआ तो आगे कोई रास्ता नहीं दिखेगा और अंततः यह एक भयंकर त्रासदी को जन्म देगा।
(लेखिका सेंटर फॉर साइंस ऐंड एनवायरनमेंट से संबद्ध हैं)

First Published - August 7, 2023 | 11:16 PM IST

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