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बैंकिंग साख: नितिन देसाई मामले से कुछ नए सबक

देसाई की कंपनी आर्ट वर्ल्ड प्राइवेट लिमिटेड 2002 में स्थापित हुई थी। नवंबर 2016 में देसाई ने उक्त एनबीएफसी से 150 करोड़ रुपये के ऋण के लिए समझौता किया।

Last Updated- August 16, 2023 | 10:54 PM IST
Mumbai: Nitin Desai, art director of Bollywood films like Devdas, Lagaan, committed suicide

एक गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (एनबीएफसी) के चेयरमैन और कुछ वरिष्ठ अधिकारियों ने अपने खिलाफ दर्ज प्राथमिकी (एफआईआर) के खिलाफ पिछले सप्ताह बंबई उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है।

रायगड पुलिस ने इस महीने के शुरू में भारतीय फिल्म उद्योग के मशहूर कला निर्देशक नितिन देसाई की आत्महत्या के मामले में यह प्राथमिकी दर्ज की थी। इस अपील पर शुक्रवार को सुनवाई होगी।

पुलिस ने देसाई को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) द्वारा नियुक्त समाधान पेशेवर के खिलाफ भी प्राथमिकी दर्ज की है। कहा जा रहा है कि देसाई ऋण नहीं लौटा पा रहे थे और उन्हें इसके लिए उक्त एनबीएफसी परेशान एवं मानसिक रूप से प्रताड़ित कर रही थी। इससे आजिज होकर देसाई ने आत्महत्या कर ली। पुलिस इस मामले में दर्ज शिकायत के आधार पर कार्रवाई कर रही है और उसे तहकीकात करने का पूरा अधिकार है।

भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 306 के अंतर्गत आत्महत्या के लिए उकसाने या विवश करने के लिए दंड का प्रावधान है। इस धारा के इस्तेमाल का इतिहास सरल नहीं रहा है। अब इसका इस्तेमाल ऋणदाता एवं समाधान पेशेवर के खिलाफ भी हो रहा है।

देसाई मामले में यह स्थापित करना जरूरी है कि किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह ने एक खास इरादे से किसी अमुक व्यक्ति को आत्महत्या के लिए उकसाया या विवश किया या नहीं। क्या कानून सम्मत प्रावधानों का इस्तेमाल कर एक न्यायिक इकाई के तहत किसी एनबीएफसी द्वारा ऋणों की वसूली का प्रयास मानसिक रूप से परेशान करना या आत्महत्या के लिए उकसाने वाला माना जाना चाहिए? क्या ऋण शोधन अक्षमता कार्रवाई के विकल्प का इस्तेमाल कर फंसे ऋण को वसूलना जायज नहीं है?

एनसीएलटी एक अर्द्ध न्यायिक मध्यस्थता पंचाट है, जिसकी स्थापना केंद्र सरकार ने भारतीय कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 408 के अंतर्गत की है। इसे कंपनियों, बैंकों और वित्तीय संस्थानों से जुड़े मामलों पर निर्णय लेने का अधिकार दिया गया है। अगर कोई कर्जधारक ऋण अदा करने में चूक करता है तो बैंकों एवं गैर-वित्तीय कंपनियों के पास एनसीएलटी में अपील करने का विकल्प रहता है।

एनसीएलटी ऋण शोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता (आईबीसी), 2016 के अंतर्गत निगमित ऋण शोधन अक्षमता समाधान प्रक्रिया की शुरुआत करता है। आईबीसी के तहत भुगतान में चूक का मतलब किसी देनदारी का भुगतान करने में असफल रहना है। कई लोग जो अपने आवास ऋण की मासिक किस्त नहीं चुका पाते हैं तो बैंक अपनी रकम वसूलने के लिए उनके घरों की नीलामी कर देते हैं। अगर आत्महत्या करना और आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप को एक विकल्प के रूप में देखा गया तो ऋण देने एवं इनकी अदायगी के स्थापित ढांचे में विकृति नहीं आएगी?

एनसीएलटी के निर्णय सदैव कर्जदाताओं के पक्ष में नहीं आते हैं। उदाहरण के लिए पिछले सप्ताह एनसीएलटी ने ज़ी एंटरटेनमेंट एंटरप्राइजेज लिमिटेड का कल्वर मैक्स एंटरटेनमेंट प्राइवेट लिमिटेड (पूर्व में सोनी पिक्चर्स नेटवर्क्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड) के साथ विलय को हरी झंडी दे दी।

न्यायाधिकरण के मुंबई पीठ ने प्रस्तावित विलय पर सारी आपत्तियां खारिज कर दी। इस विलय के खिलाफ ऐक्सिस फाइनैंस लिमिटेड, जे सी फ्लावर्स ऐसेट रीकंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड, जे सी फ्लावर्स ऐसेट रीकंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड, आईडीबीआई बैंक, आईमैक्स कॉर्पोरेशन और आईडीबीआई ट्रस्टीशिप सर्विसेस लिमिटेड ने आपत्ति जताई थी।

भारत में अब तक व्यक्तिगत ऋण शोधन अक्षमता एवं दिवालिया कानून पूरी तरह स्थापित नहीं हो पाया है। दिवालिया प्रक्रिया शुरू करने से पहले व्यक्तिगत दिवालिया के संबंध में ऋण निपटान के लिए क्या अमेरिका की तरह भारत में भी एक संस्थागत निपटान प्रणाली होनी चाहिए? अगर भारत में वकील सहित वित्तीय क्षेत्र के अनुभवी लोगों से लैस एक ढांचा होता तो देसाई जैसी घटना टाली जा सकती थी।

असफल कारोबार और असफल कारोबारी यो दो अलग-अलग चीजें हैं। किसी कारोबार के विफल होने के कई कारण हो सकते हैं। उद्यमी इन कारणों का विश्लेषण कर सीखता है और नए तरीके से कारोबार दोबारा शुरू करता है। ऐसे वित्तीय संकट और कारोबारी विफलताओं से निकलना किसी उद्यमी की एक प्रमुख पहचान होती है।

देसाई मामले से सीख यह मिलती है कि कारोबार विफल हो सकते हैं या चुनौतियों का सामना कर सकते हैं मगर यह उद्यमी की क्षमता या उसकी कमजोरी का प्रमाण नहीं होता है। कारोबार में विफलता और ऋण नहीं चुकाने में असमर्थता किसी की भावना पर गहरा चोट कर सकती है। हमें कारोबारी विफलताओं को बदनामी के रूप में बिल्कुल नहीं देखना चाहिए, खासकर ऐसे समय में जब पूरे देश में एक के बाद एक स्टार्टअप इकाइयां खड़ी हो रही हैं और चुनौतियां भी साथ ही चलती हैं।

देसाई की कंपनी आर्ट वर्ल्ड प्राइवेट लिमिटेड 2002 में स्थापित हुई थी। नवंबर 2016 में देसाई ने उक्त एनबीएफसी से 150 करोड़ रुपये के ऋण के लिए समझौता किया। 2018 में 35 करोड़ रुपये के एक और ऋण के लिए समझौता हुआ मगर मंजूर रकम में केवल 31 करोड़ रुपये आवंटित हो पाए। इससे ऋण की कुल रकम बढ़कर 181 करोड़ रुपये हो गई।

इन दोनों ऋणों के लिए देसाई और उनकी पत्नी ने शेयरों की पेशकश की थी। ऋण भुगतान में देरी के बाद मई 2022 में एनबीएफसी ने देसाई को पूरा ऋण चुकाने के लिए नोटिस भेज दिया। उस समय पहले ऋण के मामले में कुल बकाया रकम 200 करोड़ रुपये से अधिक हो गई थी और दूसरे ऋण के मामले में यह 47.77 करोड़ रुपये थी। जून 2022 तक कुल बकाया रकम बढ़कर 252.49 करोड़ रुपये हो गई थी।

एनसीएलटी ने 25 मई को अपने आदेश में कहा कि कंपनी (कर्जधारक) ‘ऋण या भुगतान में चूक’ किसी पर भी सवाल खड़ा नहीं कर रही है और न ही ऋण शोधन अक्षमता के लिए ‘कर्जदाता आवेदन खारिज करने के लिए कोई वैध कानूनी आधार’ नहीं दे पाई है। एनसीएलटी ने आर्ट वर्ल्ड के खिलाफ ऋण शोधन अक्षमता शुरू करने का आदेश जारी कर दिया।

देसाई ने इस आदेश के खिलाफ अपील की मगर राष्ट्रीय कंपनी विधि अपील न्यायाधिकरण के नई दिल्ली में प्रमुख पीठ ने 1 अगस्त को उनकी अपील खारिज कर दी। देसाई ने इसके तत्काल बाद आत्महत्या कर ली। मुझे अंदाजा नहीं ऋण पर कितना ब्याज जमा हो गया था और कर्जदाता ने ऋण वसूली के लिए देसाई को परेशान किया था या नहीं। पहली नजर में तो यही लगता है कि इस मामले में उपयुक्त कानूनी प्रक्रिया का पालन हुआ है।

न्यायालय प्राथमिकी पर विचार करेगा मगर देसाई की अफसोसनाक मौत पर कोई राजनीति भी नहीं होनी चाहिए। समय-समय पर केंद्र एवं राज्य सरकार ऋण माफ करती रहती है। हमें देश में ऋण आवंटन एवं इसकी अदायगी के ढांचे को नुकसान पहुंचाने के लिए कर्जधारकों को एक और जरिया नहीं देना चाहिए।

(लेखक जन स्मॉल फाइनैंस बैंक लिमिटेड में वरिष्ठ सलाहकार हैं)

First Published - August 16, 2023 | 10:54 PM IST

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