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नीति नियम: हेनरी किसिंजर…सफलता से अधिक विफलताएं

किसिंजर ने शुरू में ही यह ताड़ लिया था कि यदि सत्ता से बाहर रहते वह स्वयं को ऐसे प्रतिभाशाली व्यक्ति के रूप में पेश करें, तो सरकार चला रहे लोग उनसे जुड़े रहेंगे।

Last Updated- December 06, 2023 | 10:45 PM IST
Henry Kissinger

हेनरी किसिंजर (Henry Kissinger) के जीवन और प्रभाव को लेकर अधिकांश चर्चा उनके द्वारा कंबोडिया से लेकर वियतनाम और चिली से बांग्लादेश तक की गई बुराइयों अथवा उठाए गए गलत कदमों के इर्द-गिर्द ही घूमती है। इसे तो आसानी से समझा जा सकता है, लेकिन जो कुछ नजरअंदाज किया गया अथवा जिसे बहुत कम करके आंका गया, वह यह कि अपने कार्यक्षेत्र में भी उनकी छवि बहुत अच्छी नहीं थी।

किसिंजर ने लंबा जीवन जिया और यह भी कि वह युग-परिभाषित अपनी गलतियों को देखने के लिए जिंदा रहे। हालांकि, यह अलग बात है कि रणनीतिक भविष्यदृष्टा के तौर पर उनकी प्रतिष्ठा में कोई कमी नहीं आई।

यह भूलना आसान है कि एक वरिष्ठ अधिकारी के तौर पर केवल 1969 से 1975 के बीच छह वर्षों तक किसिंजर के पास वास्तविक शक्ति थी। सत्तर के दशक में अमेरिका की विदेश नीति में सफलताओं के बजाय नाकामियां अधिक थीं। उस दौरान अमेरिका की सबसे बड़ी सफलता मिस्र और इजरायल के बीच मित्रता कराना रही, जो आज तक कायम है।

यह कदम भी जिमी कार्टर द्वारा उठाया गया था जो किसिंजर के विपरीत अपनी इस बड़ी पहल को कामयाब होते देखने के लिए जीवित रहे। नैतिकता के सवाल को अलग रख भी दें, तो ऐसा कुछ नहीं था, जिसे सफलता के रूप में गिना जा सके।

दक्षिण-पूर्व एशिया में अपने युद्ध के अनावश्यक विस्तार के बाद अमेरिका ने अपमानित होकर वियतनाम से बाहर निकलने में बहुत देर कर दी। इससे विश्व के इस हिस्से में उसकी छवि अमेरिका की सनक पर सवार देश के रूप में बन गई। युद्ध समाप्ति के बाद वियतनाम के प्रमुख शहर सैगोन से निकलने के इंतजार में आखिरी हेलीकॉप्टर में सवार होने के लिए भयभीत लोगों की कतार लगी थी।

अन्य बड़े कदम के रूप में ईरान के शाह और उनके तेजी से अलोकप्रिय होते शासन के साथ अमेरिका की घनिष्ठता बढ़ाने का निर्णय शामिल था। इस एक निर्णय ने यह तय कर दिया था कि अमेरिका अगले कई दशकों तक अयातुल्ला के गुस्से का निशाना बना रहेगा।

अफ्रीका में किसिंजर ने अंगोला से लेकर रोडेशिया तक अनेक हारे हुए श्वेत वर्चस्ववादी लोगों का समर्थन किया और उन्हें अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन से यह शिकायत करते हुए सुना गया कि अफ्रीका में अमेरिकी विदेश विभाग की छवि श्वेत-विरोधी बन रही है।

इस फैसले की अनैतिकता पर ध्यान केंद्रित करना तो आसान है और अधिकांश लोगों ने ऐसा किया भी, परंतु असली सवाल यह है कि एक महान रणनीतिकार यह कैसे सोच सकता है कि लंबी अवधि को ध्यान में रखते हुए यह जीतने की रणनीति थी। किसिंजर का कार्यकाल समाप्त होने के कुछ समय बाद ही अंगोला पर क्यूबाइयों का कब्ज़ा हो गया और दक्षिणी रोडेशिया का श्वेत बहुल राज्य एक दशक तक भी अस्तित्व बनाए नहीं रख सका।

चाहे लैटिन अमेरिका हो, जहां अलेंदे और पिनोशे की विभाजनकारी यादें अभी भी जिंदा हैं अथवा दक्षिण एशिया को ले लें, जहां 1971 के पाकिस्तान के प्रति उनका झुकाव अब तक जगजाहिर रहा, विश्व में कहीं भी ऐसा मामला देखने को नहीं मिलता, जहां किसिंजर के बारे में यह कहा जा सके कि वह किसी विशेष अंतर्दृष्टि वाले व्यक्तित्व के मालिक थे। इसके बावजूद वह किसी तरह अपनी प्रतिष्ठा बनाने में कामयाब रहे।

वर्ष 1979 में किसिंजर द्वारा अपने संस्मरण की पुस्तक प्रकाशित कराने के बाद विलियम फैफ (दिवंगत) ने द न्यूयॉर्क टाइम्स में एक बहुत तीखा ऑप-एड लिखा था। उसकी शुरुआत कुछ इस प्रकार थी- स्पष्ट सोच रखने वाले किसी भी व्यक्ति ने नहीं कहा कि विदेश मंत्री के तौर पर मिस्टर किसिंजर पूरी तरह नाकाम थे।

जब उन्होंने वॉशिंगटन छोड़ा, उस समय अमेरिका बहुत कमजोर हो चुका था और उसकी प्रतिष्ठा एवं हनक कम हो चुकी थी। विदेश मंत्री रहते लागू की गई उनकी नीतियों के कारण अमेरिका वियतनाम युद्ध हार चुका था। कुछ को छोड़ दें, तो अमेरिका के खाते में कोई संतुलित कामयाबी नहीं थी। फिर भी मिस्टर किसिंजर के बारे में समझा जाता है कि वह सफल थे।

इस प्रकार किसिंजर की प्रतिभावान राजनयिक की छवि उनकी लंबी उम्र के दौरान किए गए बेहतर कार्यों के कारण नहीं बनी थी। उन्होंने कार्यभार संभालने के फौरन बाद इस पर पूरी मेहनत से काम करना शुरू कर दिया था। किसिंजर को एक अफसरशाह के रूप में याद नहीं किया जाना चाहिए।

उन्होंने संक्षेप में और बुरी तरीके से जो कुछ किया, उसे देखते हुए उन्हें एक सलाहकार और स्वयं का प्रचार करने वाला व्यक्ति कहना उचित होगा। उनकी ये दोनों गतिविधियां एक-दूसरे से मेल खाती हैं और इस मामले में वास्तव में वह एक प्रतिभावान व्यक्ति थे।

किसिंजर ने शुरू में ही यह ताड़ लिया था कि यदि सत्ता से बाहर रहते वह स्वयं को ऐसे प्रतिभाशाली व्यक्ति के रूप में पेश करें, जो सत्ता संभाल सकता है, तो सरकार चला रहे लोग उनसे जुड़े रहेंगे। अपना कारोबार बढ़ाने के लिए किसिंजर एसोसिएट्स का सत्ता में शामिल लोगों से जुड़े रहना बहुत आवश्यक था।

हम आज भी नहीं जानते कि चार दशक के दौरान किसिंजर एसोसिएट्स को सलाह और सत्ता तक पहुंच उपलब्ध कराने के लिए किन कंपनियों ने भुगतान किया। इसके मालिक ने किसी भी तरह से अमेरिकी सरकार को सेवा देने से खुले तौर पर मना कर दिया था, क्योंकि ऐसी कोई भी नियुक्ति होने पर उसे अपने हितों और फर्म के बारे में पूरा खुलासा करना पड़ता।

आखिर में, किसिंजर की प्रतिष्ठा उनके अब तक के सबसे बड़े आह्वान से चीन के बारे में बनी लोगों की धारणा के साथ गिर जाएगी। उन्होंने इस विश्वास को आगे बढ़ाया कि स्वतंत्र विश्व के लिए सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी के मुकाबले चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) कम खतरा है। इससे बुरी राय और कुछ नहीं हो सकती थी।

यह वह चीज थी, जिससे किसिंजर और उनकी फर्म को बहुत अधिक लाभ हुआ। कोई अन्य अमेरिकी पीपल्स रिपब्लिक में उतनी पहुंच नहीं रखता था, जितनी किसिंजर की थी और कंपनियां इसका फायदा उठाने के लिए कतार में लगी रहती थीं। सीसीपी को एक शताब्दी का प्रभुत्व सौंपने वाले किसी भी व्यक्ति को संभवत: रणनीतिक प्रतिभा के रूप में याद नहीं किया जा सकता।

First Published - December 6, 2023 | 10:38 PM IST

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