भारत के ऊर्जा भविष्य को सुरक्षित बनाने की दृष्टि से देखें तो भूमिगत विधि से कोयला खनन पर्यावरण की दृष्टि से एक बेहतर विकल्प है। बता रहे हैं पीएम प्रसाद और बी. वीरा रेड्डी
भारत के ऊर्जा परिदृश्य में नाटकीय परिवर्तन देखने को मिल रहा है। हम तेजी से सौर और पवन ऊर्जा जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को अपनाने की दिशा में बढ़ रहे हैं। बदलाव की इस प्रतिस्पर्धा में हरित हाइड्रोजन, पंपयुक्त भंडारण जलविद्युत, गुरुत्व ऊर्जा भंडारण एवं ऊर्जा भंडारण प्रणालियां आदि शामिल हैं।
कार्बन उत्सर्जन तीव्रता को कम करने के लिए देश की राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) को ध्यान में रखते हुए सामूहिक उद्देश्य प्रदूषणकारी जीवाश्म ईंधन को त्यागना है। यही वजह है कि कोयला निशाने पर है।
जलवायु परिवर्तन के संकट को देखते हुए हरित ऊर्जा की तरफ बढ़ना स्वागतयोग्य पहल है, लेकिन इसमें एक बहुत बड़ी अड़चन है। भारत के विविध ऊर्जा स्रोतों में कोयला प्रमुख स्थान रखता है। देश के ऊर्जा क्षेत्र में बड़ा हिस्सा हासिल करने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत कड़ी प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं।
चालू वित्त वर्ष में अक्टूबर तक नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन 15.7 अरब यूनिट वृद्धि के साथ सालाना आधार पर 139.76 अरब यूनिट पहुंच गया। इसके बावजूद देश के कुल 1,045.85 अरब यूनिट बिजली उत्पादन में इसकी हिस्सेदारी मात्र 13.36 फीसदी ही है। कोयले से बनने वाली ऊर्जा की हिस्सेदारी नवीकरणीय ऊर्जा के मुकाबले 5.24 गुना अधिक यानी 732.09 अरब यूनिट है।
नीति आयोग एवं कुछ स्वतंत्र अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के अनुमान के मुताबिक भारत में कोयले का इस्तेमाल 2030 तक चरम पर होगा और उसके अगले एक दशक तक यह इसी स्तर पर बना रहेगा। यह स्थिति तब है जब भारत विश्व की शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं में सबसे तेजी से नवीकरणीय ऊर्जा अपनाने वाला देश है।
यद्यपि कोयले की कीमत पर नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता में वृद्धि होने की आशा की जा रही है और देश में कुल ऊर्जा मांग लगातार बढ़ रही है। इसका मतलब यह हुआ कि आवश्यक कोयले की मात्रा तो बढ़ जाएगी, लेकिन ऊर्जा हिस्सेदारी में इसका प्रतिशत घट जाएगा।
यदि भारत को अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान को हासिल करना है, तो उसके पास दो विकल्प हैं- या तो वह इसके इस्तेमाल में तेजी से कमी लाए अथवा पर्यावरण अनुकूल खनन प्रक्रिया अपनाए। पहला विकल्प तो लगभग असंभव है, क्योंकि इस मोड़ पर कोयले का उपयोग रोक देने से देश के ऊर्जा क्षेत्र के लिए बड़ा संकट खड़ा हो जाएगा।
इसका उपयुक्त तरीका पर्यावरणीय अनुकूल खनन यानी भूमिगत खनन करना ही बचता है। खुली खनन पद्धति की अपेक्षा भूमिगत खनन के बहुत अधिक फायदे हैं। पर्यावरण के स्तर पर भी यह अधिक स्वच्छ तरीका है। दूसरा, इसके लिए अधिक भूमि खुदाई की जरूरत नहीं होती और भूमि अधिग्रहण के झंझट से बचने के साथ-साथ वनों की रक्षा भी होती है। इस तरीके को अपनाकर कृषि भूमि को बचाया जा सकता है।
सबसे बड़ी बात, यह समाज अनुकूल भी है, क्योंकि इसमें लोगों को सामूहिक विस्थापन का सामना नहीं करना पड़ता और पुनर्वास एवं मुआवजे जैसी प्रक्रियाओं में नहीं जाना पड़ता। साथ ही रोजी-रोटी के पारंपरिक स्रोत भी खत्म नहीं होते। विशेष यह कि भूमिगत खनन से मिलने वाला कोयला बेहतर गुणवत्ता वाला होता है और इससे उच्च श्रेणी के कोयले का आयात कम करने में मदद मिलती है।
भारत में मुख्यत: खुली विधि से कोयला खनन होता है। वर्ष 2022 में पूरी दुनिया में कुल 8.5 अरब टन कोयले का उत्पादन हुआ। इसमें भूमिगत विधि से निकाले गए कोयले की मात्रा लगभग 55 फीसदी थी। इसके उलट, भारत के कोयला उत्पादन में भूमिगत की मात्रा केवल चार फीसदी ही रही। लेकिन, हमेशा से ऐसी स्थिति नहीं रही है।
वर्ष 1975 में देश की प्रमुख कोयला उत्पादक कंपनी कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) की स्थापना के बाद पहले दशक में भूमिगत विधि से अधिक उत्पादन हुआ, बजाय कि खुली पद्धति के। वित्त वर्ष 1985 में पहली बार खुली विधि का पलड़ा भारी हो गया जब इससे उत्पादित कोयले की मात्रा 7.03 करोड़ टन हो गई और भूमिगत विधि से उत्पादित कोयले की मात्रा 6.03 करोड़ टन रह गई।
इसके बाद यह खाई पाटी नहीं जा सकी। बीते 38 वर्षों में सीआईएल का खुली विधि से कोयला उत्पादन वित्त वर्ष 2023 की समाप्ति तक 9.64 गुना बढ़कर 67.77 करोड़ टन पहुंच गया, इसके विपरीत भूमिगत विधि से कोयला उत्पादन 57.8 प्रतिशत घटकर मात्र 2.55 करोड़ टन ही रह गया।
इस गिरावट के प्रमुख कारण लगातार घाटे की ओर बढ़ता उत्पादन, भूमिगत खनन प्रक्रिया की लंबी अवधि, कुशल श्रमिकों का अभाव, स्वदेशी उपकरण बनाने वालों की अनुपलब्धता और विभागीय उत्पादन लागत का अधिक होना आदि रहे हैं।
परिवहन और सांख्यिकीय दृष्टि से वैश्विक औसत तक पहुंचना तो अब असंभव लगता है, लेकिन वित्त वर्ष 2030 तक भूमिगत विधि से कोयला उत्पादन को चार गुना बढ़ाकर 10 करोड़ टन करने के लिए सीआईएल ने महत्त्वाकांक्षी योजना तैयार की है।
बेशक इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए कंपनी को भारी चुनौतियों से गुजरना होगा, फिर भी एक केंद्रित नीति ढांचा और बड़े पैमाने पर पर्यावरण अनुकूल उत्पादन प्रौद्योगिकी उपलब्ध होने पर यह संभव हो सकता है। घरेलू विनिर्माण और मेक इन इंडिया को बढ़ावा देने के लिए खनन उपकरणों का मानकीकरण भी इसमें खासी मदद कर सकता है।
भूमिगत खनन विधि को जो चीजें व्यावहारिक बनाती हैं, उनमें कुशल एवं प्रशिक्षित ऑपरेटर, ठेकेदारों को आउटसोर्सिंग, कुशल खदान डेवलपर और ऑपरेटर एवं बड़े पैमाने पर उत्पादन करने वाली प्रौद्योगिकी की उपलब्धता शामिल है। इसमें भारतीय हालात के अनुकूल लगातार खनन करने वाले खनिक, मौजूदा उपलब्ध बुनियादी ढांचे के जरिये कम लागत पर निकासी के लिए पंच एंट्री विधि, भूमि अधिग्रहण और पुनर्वास प्रक्रियाओं जैसे मुद्दों से छुटकारा दिलाने उच्च तकनीक से लैस वॉल मशीनें भी जोड़ी जा सकती हैं। साथ-साथ पेस्ट फिल तकनीक भी लाभप्रद होती है।
भूमिगत खनन विधि में खाली हुई जगह को भरने के लिए पारंपरिक रेत के बजाय फ्लाई ऐश का इस्तेमाल किया जाता है। भूमिगत खनन विधि धरातल पर किसी प्रकार की अड़चन पैदा किए बिना चलती है।
खनन से पैदा हुए खड्डों में राख भराव का काम भी बहुत ही सावधानीपूर्वक किया जाता है। खुली विधि और भूमिगत विधि से 10 लाख टन कोयला उत्पादन में पीएम10 के उत्सर्जन का तुलनात्मक आकलन सीआईएल की परामर्शदाता कंपनी सेंट्रल माइन प्लानिंग ऐंड डिजाइन इंस्टीट्यूट और यूनाइटेड स्टेट एनवायरनमेंटल प्रोटेक्शन एजेंसी ने किया था।
इससे पता चला कि खुली विधि से खनन से प्रदूषण का वार्षिक भार 226.81 टन रहा, जबकि भूमिगत खनन से यह 0.823 टन रहा। पीएम10 का तात्पर्य 10 माइक्रोमीटर या उससे कम व्यास वाले कणीय पदार्थ से होता है।
खुली विधि से खनन पर कुल भार का 52 प्रतिशत सीमा से अधिक भार हटाने एवं संबंधित कदमों के कारण होने का अनुमान लगाया गया था, जो भूमिगत खदानों में लागू नहीं है।
तुलनात्मक रूप से भूमिगत खनन विधि में सीओ2 उत्सर्जन खुली विधि के मुकाबले लगभग 24 प्रतिशत कम होता है। भूमिगत खनन से उत्पादित दस करोड़ टन कोयले पर सीओ2 उत्सर्जन अपेक्षाकृत 24 लाख टन कम होता है।
भूमिगत खनन से जल प्रदूषण नहीं होता। आसपास शोर भी उल्लेखनीय रूप से कम होता है और बड़ी बात यह कि इससे धरातल पर उपजाऊ भूमि अप्रभावित रहती है। भूमिगत खनन की लागत खुले खनन के मुकाबले अपेक्षाकृत कम आती है।
मौजूदा भू-राजनीतिक परिदृश्य में विकास के लिए ऊर्जा सुरक्षा में आत्मनिर्भरता बहुत महत्त्वपूर्ण कारक है। भारत में अन्य ऊर्जा स्रोतों के मुकाबले कोयला सबसे अधिक स्वदेशी स्रोत आधार उपलब्ध कराने की क्षमता रखता है।
भारतीय कोयला भंडार 361 अरब टन है, जिसका 170 अरब टन सुरक्षित श्रेणी में है। भूमिगत खनन से इन भंडारों पर कम से कम पर्यावरणीय प्रभाव पड़ता है। भूमिगत खनन विधि से कोयला उत्पादन में उठाए गए सकारात्मक कदम भविष्य में प्रगति के लिए बड़े कारगर साबित होंगे।
*(लेखक क्रमश: कोल इंडिया लिमिटेड के अध्यक्ष और तकनीकी निदेशक हैं। लेख में प्रस्तुत विचार निजी हैं)