वाराणसी के सुनील कुमार सिंह पिछले 3 दशक से बीमा क्षेत्र में एजेंट के तौर पर काम कर रहे हैं। कुमार 2023 के पहले रोजाना औसतन 20 मोटर इंश्योरेंस पॉलिसी बेचते थे, लेकिन भारतीय बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (इरडा) द्वारा 1 जनवरी से ‘अपने ग्राहक को जानें’ (केवाईसी) अनिवार्य किए जाने के 12-13 दिन बाद संख्या कम हो गई। यह सभी नई बीमा पॉलिसियों की खरीद पर लागू किया गया है, चाहे प्रीमियम जितना भी हो।
कुमार और उनका परिवार न्यू इंडिया एश्योरेंस, फ्यूचर जनराली, श्रीराम जनरल इंश्योरेंस, आईसीआईसीआई लोंबार्ड, बजाज अलियांज और इफको टोकियो सहित कई बीमा कंपनियों की सेवाएं देते हैं। उनके मुताबिक उनके परिवार के अन्य सदस्यों द्वारा बेची जा रही बीमा पॉलिसियों में भी कमी आई है। यह सिर्फ कुमार का मामला नहीं है।
कई और बीमा एजेंट और कंपनियों ने बिजनेस स्टैंडर्ड ने बातचीत में संकेत दिए कि 1 जनवरी से केवाईसी दस्तावेज अनिवार्य किए जाने के बाद से नई स्वास्थ्य, मोटर, यात्रा व आवास बीमा पॉलिसियों की बिक्री में भारी कमी आई है। खासकर कम प्रीमियम वाली पॉलिसियों की बिक्री में ज्यादा कमी आई है और मोटर सेग्मेंट में 30 से 50 प्रतिशत की गिरावट आई है, खासकर ग्रामीण इलाकों में मांग ज्यादा घटी है। वहीं दूसरी तरफ पॉलिसीबाजार जैसे सेवा प्रदाताओं के कारोबार में 25 प्रतिशत की भारी बढ़ोतरी हुई है। इससे संकेत मिलता है कि यह कारोबार ऑनलाइन कारोबार के हिस्से में चला गया है। बजाज अलियांज जनरल इंश्योरेंस जैसी कंपनियां इस कदम का स्वागत कर रही हैं, और इसे बीमा उद्योग की लंबे समय से चल रही मांग बता रही हैं।
एक जनरल इंश्योरेंस कमपनी के वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न दिए जाने की शर्त पर कहा, ‘सिर्फ मोटर इंश्योरेंस ही नहीं, केवाईसी नियम अनिवार्य किए जाने के बाद कम प्रीमियम की सभी पॉलिसियों की बिक्री में गिरावट आई है। इसमें हमारे कारोबार का बड़ा हिस्सा जा रहा है। मोटर इंश्योरेंस में हम कारोबार में 50 प्रतिशत गिरावट देख रहे हैं, जिसमें खरीदार का ब्योरा वाहन खरीदने के समय पहले से ही उपलब्ध होता है।’
जनवरी के पहले गैर जीवन बीमा या जनरल इंश्योरेंस पॉलिसी के लिए केवाईसी दस्तावेज अनिवार्य नहीं थे, जिसमें स्वास्थ्य बीमा, वाहन बीमा और यात्री बीमा पॉलिसी शामिल है। नए दिशानिर्देशों के मुताबिक पैन या फॉर्म 60 देना अनिवार्य कर दिया गया है। एजेंटों ने संकेत दिए कि ज्यादातर मामलों में ग्रामीण इलाकों में पैन नहीं होता और इसकी वजह से प्रक्रिया पटरी से उतर रही है। वहीं आधार का ब्योरा देने को लेकर अनिच्छा की वजह से भी इसका बड़ा हिस्सा जा रहा है।