जैसे-जैसे गन्ना सीजन का अंत हो रहा है, पश्चिम उत्तर प्रदेश के जाट लैंड और गन्ना बेल्ट में लोक सभा चुनाव का माहौल गरमाता जा रहा है। उत्तर प्रदेश में लगभग 50 लाख परिवार गन्ने की खेती करते हैं और इसकी वार्षिक अर्थव्यवस्था अनुमानित तौर पर 50,000 करोड़ रुपये है। ऐसे में वोटों की बढि़या फसल काटने के लिए हर राजनीतिक दल किसान समुदाय को लुभाने में जुटा है।
उत्तर प्रदेश देश का शीर्ष गन्ना, चीनी और एथनॉल उत्पादक है। वर्ष 2022-23 सीजन में राज्य का गन्ना क्षेत्र 28.5 लाख हेक्टेयर और उत्पादन लगभग 23.5 करोड़ टन रहा था। राज्य में 120 गन्ना मिल हैं, जिनमें लगभग 93 फैक्टरियों के साथ बड़ा हिस्सा निजी क्षेत्र का है।
सत्ताधारी भाजपा गन्ना भुगतान के तौर पर पिछले 6-7 वर्षों में 2.25 लाख करोड़ रुपये किसानों की झोली में डालने को अपनी उपलब्धि बता रही है। वहीं, विपक्षी दल खास कर समाजवादी पार्टी गन्ना बकाया, कृषि क्षेत्र के समक्ष आ रही परेशानियां और गन्ना समेत अन्य फसलों के लिए समर्थन मूल्य में मामूली बढ़ोतरी को मुद्दा बना रही है।
इससे पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दावा किया कि राज्य में 2017 से अब तक लगभग 86 लाख किसानों के ऋण माफ कर दिए गए हैं, जबकि पूर्व की सरकारों के कार्यकाल में कर्ज से परेशान किसान आत्महत्याएं कर रहे थे। इस साल जनवरी में योगी सरकार ने गन्ना मूल्य में 20 रुपये प्रति क्विंटल (100 किग्रा) की बढ़ोतरी की थी, जिससे चालू सीजन के लिए गन्ने के भाव जल्दी पकने वाली फसल के लिए 350 रुपये से 370 रुपये, सामान्य के लिए 340 से 360 रुपये और देर से तैयार होने वाली फसल के लिए 335 से बढ़कर 355 रुपये प्रति क्विंटल हो गए।
उस समय भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के अध्यक्ष नरेश टिकैत और प्रवक्ता राकेश टिकैत ने इस मूल्य वृद्धि को अपर्याप्त बताया था। रोचक बात यह कि भाकियू पिछले कुछ वर्षों से कृषि के मुद्दों को लेकर मोदी सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करती रही है। लेकिन, भाजपा ने किसानों विशेष कर इस क्षेत्र में प्रभावी जाट समुदाय को मनाने के लिए लोक सभा चुनाव से ठीक पहले पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीतिक शक्ति जयंत चौधरी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) के साथ गठबंधन कर लिया।
मेरठ में एक रैली को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि उनकी सरकार गन्ना बेल्ट को ‘ऊर्जा बेल्ट’ में बदलने की कोशिश में जुटी है। उनका इशारा गन्ने से बनने वाले एक अन्य उत्पाद एथनॉल को इंधन के रूप में इस्तेमाल करने की संभावनाओं की ओर था।
गन्ना यूं तो पूरे राज्य में बोया जाता है, लेकिन पश्चिमी यूपी के बिजनौर, मुजफ्फरनगर, मेरठ, बरेली, शामली, बागपत और सहारनपुर की यह प्रमुख फसल है। ऐसे में राजनीतिक दलों का इस गन्ना बेल्ट में किसानों को लुभाने के लिए पूरा जोर लगा देना स्वाभाविक है।
अपनी रैली में मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने गन्ने का समय पर भुगतान करने के लिए अपनी सरकार की पीठ थपथपाई और पूर्व की सरकारों पर कथित रूप से गन्ना भुगतान को वर्षों तक लटकाने का आरोप लगाते हुए हमला बोला। मार्च 2017 में पहली बार उत्तर प्रदेश की बागडोर थामने वाले योगी आदित्यनाथ ने छोटे और सीमांत किसानों का 36,000 करोड़ रुपये का कर्ज माफ किया था।
अर्थशास्त्री और समाजशास्त्री प्रो. एपी तिवारी कहते हैं कि किसानों को गन्ने का तुरंत भुगतान, एमएसपी में वृद्धि, पीएम किसान योजना, फसल बीमा, खेती में ड्रोन एवं एआई जैसी नई प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल और मिलेट उत्पादन को प्रोत्साहन जैसे कुछ कृषि पहलें हैं, जिन्हें भाजपा सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में गिना सकती है।