मौजूदा समय में शीर्ष-100 कंपनियों में से करीब 30 प्रतिशत के पास स्थायी बोर्ड सीटें हैं। इस व्यवस्था को बाजार नियामक ने सूचीबद्ध कंपनियों में कॉरपोरेट प्रशासन मजबूत बनाने के प्रयास में समाप्त करने की योजना बनाई है।
प्रस्तावित मानकों के तहत, कंपनियों को प्रत्येक बोर्ड सदस्य के लिए पांच साल में कम से कम एक बार शेयरधारक मंजूरी लेनी होगी। इस नीतिगत बदलाव का मकसद प्रवर्तकों द्वारा अपनी बड़ी शेयरधारिता समाप्त किए जाने के बाद भी नियंत्रण बरकरार रखे जाने को लेकर पैदा होने वाली चिंताएं दूर करना है।
प्रमुख सलाहकार एजेंसी इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर एडवायजरी सर्विसेज (आईआईएएस) ने कॉरपोरेट प्रशासन के बारे में अपनी रिपोर्ट में कहा है, ‘निवेशकों को प्रभावी बदलावों के अनुकूल ढालने के लिए संबद्ध निदेशक को हटाने की जरूरत होगी। यह किसी निदेशक की पुन: नियुक्ति के खिलाफ आसानी से वोटिंग करने के मुकाबले ज्यादा चुनौतीपूर्ण है।’
सिरिल अमरचंद मंगलदास में मैनेजिंग पार्टनर सिरिल श्र्रॉफ ने मुंबई में कॉरपोरेट प्रशासन के बारे में एक संबोधन में कहा, ‘मौजूदा परिवेश (प्रवर्तक केंद्रत कंपनियों) में सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है उत्तराधिकार प्रबंधन है।’
आईआईएएस रिपोर्ट के अनुसार, सिर्फ 47 प्रतिशत कंपनियों में निदेशक मंडल और वरिष्ठ नेतृत्व के लिए उत्तराधिकार योजना होती है। हालांकि यह स्तर 2021 के 34 प्रतिशत के मुकाबले सुधरा है।
रिपोर्ट में नए जमाने की कंपनियों से जुड़े नए मुद्दों पर भी ध्यान केंद्रित किया गया है।
उदाहरण के लिए, गैर-प्रवर्तक केंद्रित कंपनियों में विशेष अधिकार खास निवेशकों को दिए जाते हैं, जो अन्य शेयरधारकों के हितों के प्रतिकूल हो सकते हैं। नए सूचीबद्ध स्टार्टअप में, आईपीओ से पहले निवेशकों के पास शेयरधारिता दायरे के बगैर बोर्ड नामांकन अधिकार होते हैं।
एजेंसियां जिस अन्य मुद्दे पर पारदर्शिता लाए जाने पर जोर दे रही हैं, वह है ऑडिट गुणवत्ता। 2022 में, सिर्फ 23 प्रतिशत बोर्डों ने वैधानिक लेखा परीक्षकों की स्वायत्तता, क्षमता और अनुभव के बारे में जानकारी मुहैया कराई। यह आंकड़ा 2021 में महज आठ प्रतिशत था।
भारतीय उद्योग जगत बोर्ड स्तर पर लैंगिक विविधता के मामले में भी पीछे है। बीएसई-100 में महिलाओं का बोर्ड प्रतिनिधित्व 31 दिसंबर तक करीब 16 प्रतिशत था। 80 प्रतिशत से ज्यादा कंपनियों के बोर्ड में 30 प्रतिशत से कम महिलाएं थीं।