पहली तिमाही खराब गुजरने के बाद निर्यातक उत्तरी अमेरिका को निर्यात में सुधार को लेकर कुछ आस लगाए बैठे हैं। वैसे वित्त वर्ष 24 में बाजार के दूसरे बाजार जैसे यूरोप में सुधार होने में अधिक समय लग सकता है। दरअसल प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के सुस्त होने के साथ भूराजनीतिक तनाव बढ़ने के कारण भारतीय सामान की मांग घटी है।
रूस-यूक्रेन के युद्ध के कारण वैश्विक व्यापार का सामंजस्य गड़बड़ाया
निर्यातकों के मुताबिक विकसित अर्थव्यवस्थाओं में महंगाई बढ़ना खासी समस्या हो गई है। इससे उनके आयात की मांग पर भी असर पड़ा है। इंवेंटरी बढ़ने के बावजूद आर्डर को रोका गया है। हालांकि खरीदारी बढ़ने की उम्मीद है। उन्होंने कहा कि रूस-यूक्रेन के युद्ध के कारण वैश्विक व्यापार का सामंजस्य गड़बड़ा गया है।
फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोटर्स ऑर्गेनाइजेशन (फियो) के महानिदेशक व मुख्य कार्याधिकारी अजय सहाय ने बताया कि एक तरफ मांग कम हुई है और दूसरी तरफ कच्चे तेल, धातु व जिंसों के दाम कम हुए। इन दोनों के कारण निर्यातकों के लिए स्थितियां चुनौतीपूर्ण हो गई हैं। यह देशों को निर्यात किए जाने वाली वस्तुओं के मूल्य से भी उजागर होगा। सहाय ने कहा, ‘महंगाई के कारण यूरोप खास तौर पर प्रभावित हुआ है। यूरोप के ज्यादातर देशों में महंगाई अधिक है। हालांकि अमेरिका महंगाई को 3 फीसदी के करीब ले आया है।’
जून तिमाही में 15 फीसदी कम हुआ निर्यात
निर्यात अप्रैल-जून की तिमाही में 15 फीसदी कम होकर 102.68 अरब डॉलर हो गया। गैर तेल और गैर रत्न व आभूषण को मुख्य निर्यात माना जाता है और यह इस अवधि में करीब 8 फीसदी कम हो गया। निर्यात किए जाने वाले सात प्रमुख उत्पादों की कुल निर्यात में हिस्सेदारी 74 फीसदी है। इन सात प्रमुख उत्पादों के निर्यात में केवल इलेक्ट्रॉनिक और औषधि व दवा खंड में वृद्धि दर्ज हुई।
इंजीनियरिंग वस्तुओं का निर्यात 7.5 फीसदी गिरा
इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों के निर्यात में सालाना आधार पर 47 फीसदी इजाफा स्मार्टफोन के निर्यात के कारण हुआ। कुल वस्तुओं के निर्यात के मूल्य में इंजीनियरिंग वस्तुओं की हिस्सेदारी 26 फीसदी है जिसमें जून तिमाही के अंत में गिरावट आई। इंजीनियरिंग वस्तुओं का निर्यात 7.5 फीसदी गिरकर 26.8 अरब डॉलर हो गया।
भारतीय इंजीनियरिंग निर्यात संवर्द्धन परिषद (ईईपीसी) के चेयरमैन अरुण कुमार गरोडिया के मुताबिक अगस्त से सितंबर के दौरान मांग में कुछ बढ़ोतरी हो सकती है लेकिन यह खरीदारी पूरी तरह शुरू होने पर ही नजर आएगी। गरोडिया ने बताया, ‘कुछ पश्चिमी देशों खासतौर पर उत्तरी अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया से खरीदारी शुरू हो सकती है। दूसरी तरफ यूरोप के मामले में कुछ इंतजार करना पड़ सकता है।
भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार अमेरिका
इसके लिए कम से कम अक्टूबर तक इंतजार करना पड़ सकता है।’ निर्यातक अमेरिका के साथ-साथ यूरोपीय मार्केट से मांग को लेकर चिंतित हैं। ये बाजार भारत के उत्पादों के प्रमुख आयात गंतव्य है और आयात-निर्यात की मांग के संदर्भ में भी महत्त्वपूर्ण हैं।
भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार अमेरिका है। भारत के अंतरराष्ट्रीय व्यापार में अमेरिका की हिस्सेदारी 17 फीसदी है। इसके बाद यूरोपीय संघ की 16.6 फीसदी हिस्सेदारी है। हालांकि पूरे यूरोप में यूरोपीय मुक्त व्यापार एसोसिएशन (ईएफटीए) के चार सदस्य देश, यूरोप के देश जैसे ब्रिटेन शामिल है। लिहाजा भारत के कुल निर्यात में पूरे यूरोप की हिस्सेदारी करीब 22 फीसदी है।
प्रमुख उत्पादों रत्न व आभूषण, वस्त्र, पेट्रोलियम व रसायन के क्षेत्रों में क्रमश: 26.4 फीसदी, 17.7 फीसदी, 33.3 फीसदी और 19.4 फीसदी की गिरावट आई।