अदाणी समूह पर हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट के बाद बैंकिंग क्षेत्र को लेकर भी तरह-तरह की बातें होने लगी हैं। इस रिपोर्ट में अदाणी समूह पर वित्तीय अनियमितताओं के आरोप लगाए गए हैं। चूंकि, भारतीय बैंकों ने अदाणी समूह को कर्ज दे रखे हैं, इसलिए बैंकिंग तंत्र पर संभावित असर से जुड़ी अटकलों का बाजार गर्म होना स्वाभाविक है।
हालांकि, 3 फरवरी को भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने एक बयान जारी कर कहा कि वर्तमान समीक्षा के आधार पर कहा जा सकता है कि देश का बैंकिंग क्षेत्र मजबूत एवं स्थिर है। आरबीआई ने किसी उद्योग समूह का नाम नहीं लिया मगर यह स्पष्ट था कि संदर्भ अदाणी समूह से जुड़ा था।
देश के केंद्रीय बैंक की तरफ से ऐसे बयान जारी होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है। सितंबर 2018- मार्च 2020 के बीच आरबीआई भारतीय बैंकिंग तंत्र के मजबूत होने पर कम से कम चार बयान (आईएलएफएस, पीएमसी बैंक, येस बैंक आदि मामलों में) जारी कर चुका है।
इन सभी मौकों पर वित्तीय संस्थाओं के संकट में घिरने से बैंकिंग क्षेत्र के लिए खतरा उत्पन्न हो गया था, मगर इस बार एक कंपनी चर्चा के केंद्र में है। इसमें दो राय नहीं कि किसी बड़े वित्तीय इकाई के धराशायी होने से बैंकिंग क्षेत्र पर पहाड़ टूट सकता है मगर एक बड़ी कारोबारी कंपनी भी हालत बिगाड़ सकती है, अगर बैंकों का उस इकाई में बड़ा निवेश रहा है तो।
अदाणी मामले में ऐसा प्रतीत होता नहीं दिख रहा है। पिछली मौद्रिक नीति के बाद आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने अदाणी समूह का नाम लिए बिना कहा था कि यह पूरा विवाद इसलिए खड़ा हुआ है कि संबंधित समूह के बाजार पूंजीकरण में कमी आई है। दास ने कहा कि बैंक किसी कंपनी या समूह को उसके बाजार पूंजीकरण के आधार पर कर्ज नहीं देते हैं बल्कि संबंधित कंपनी या समूह की ताकत और बुनियादी मजबूती को ध्यान में रखते हुए कदम बढ़ाते हैं।
अदाणी एंटरप्राइज का शेयर 27 मार्च, 2020 को 128 रुपये पर कारोबार कर रहा था, जो 21 दिसंबर, 2022 को उछल कर 4,189.55 रुपये पर पहुंच गया था। हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट में कथित वित्तीय अनियमितता के आरोप के बाद शेयर धराशायी हो गए।
एसऐंडपी ग्लोबल रेटिंग्स और मूडीज दोनों ने ही अदाणी समूह की कुछ कंपनियों के क्रेडिट स्कोर से संबंधित परिदृश्य में कमी कर दी है मगर रेटिंग में कोई बदलाव नहीं किए हैं।
रेटिंग एजेंसियों को भारतीय बैंकों के लिए फिलहाल कोई खतरा नजर नहीं आ रहा है मगर अदाणी समूह के लिए ऋण लेना महंगा हो जाएगा और विदेश में इसके लिए सस्ता कर्ज लेना आसान नहीं रह जाएगा। ऐसी स्थिति में अगर भारतीय बैंक अदाणी समूह को खुले हाथों से कर्ज देने के लिए आगे आएंगे तो वे अपने लिए मुसीबत मोल ले सकते हैं।
फिच रेटिंग्स का कहना है कि भारतीय बैंकों का अदाणी समूह में इतना पैसा नहीं लगा है कि कोई बड़ा खतरा नजर आए। जेफरीज की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में समूह पर कर्ज भारत में बैंकों के कुल आवंटित ऋणों का 0.5 प्रतिशत है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक के मामले में समूह पर कुल कर्ज आवंटित ऋण का 0.7 प्रतिशत और निजी बैंक के मामले में यह 0.3 प्रतिशत है।
ब्रोकरेज सीएलएसए के अनुमानों के अनुसार समूह की पांच कंपनियों पर कुल कर्ज 2.1 लाख करोड़ रुपये है। समूह पर कुल ऋण में भारतीय बैंकों द्वारा आवंटित ऋण 40 प्रतिशत से कम या करीब 80,000 करोड़ रुपये है।
निजी बैंकों की हिस्सेदारी 10 प्रतिशत से कम है। समाचार माध्यमों में प्रकाशित खबरों के अनुसार भारतीय स्टेट बैंक ने अदाणी समूह को 27,000 करोड़ रुपये का कर्ज दिया है। यह रकम बैंक के कुल ऋण खाते का 0.8 प्रतिशत से थोड़ा अधिक है।
बैंक ऑफ बड़ौदा समूह को कर्ज देने वाले 10 शीर्ष कर्जदाताओं में शामिल नहीं है। पंजाब नैशनल बैंक ने समूह को 7,000 करोड़ रुपये का कर्ज दिया है। निजी बैंकों में ऐक्सिस बैंक ने अपने ऋण खाते का 1 प्रतिशत से भी कम ऋण आवंटित किया है। इंडसइंड बैंक के मामले में यह आंकड़ा 0.46 प्रतिशत है।
आरबीआई ने ऋण आवंटन के संबंध में कुछ नियम तय कर रखे हैं। इन नियमों के अनुसार कोई बैंक किसी समूह को अपनी शुद्ध हैसियत या टीयर-1 पूंजी का 25 प्रतिशत और एक इकाई को 20 प्रतिशत तक ऋण आवंटित कर सकता है। पहले समूह के मामले में 40 प्रतिशत और एकल इकाई के मामले में 25 प्रतिशत ऋण आवंटित करने की अनुमति थी।
आधारभूत परियोजनाओं के लिए बैंक अपनी शुद्ध हैसियत का 50 प्रतिशत तक ऋण आवंटित कर सकते थे। मगर आरबीआई ने यह सीमा कर कर दी। ऋण आवंटन के संबंध में मौजूदा नियमों की जद में किसी समूह या कंपनी से आर्थिक रूप से संबद्ध इकाई भी आती है। इन नियमों का कड़ाई से पालन कराने के लिए आरबीआई ने एक प्रवर्तन विभाग की भी स्थापना की है।
बैंकिंग प्रणाली से जोखिम कम करने के लिए कॉर्पोरेट बॉन्ड बाजार को अधिक मजबूत किया जा सकता है। दिसंबर 2022 में भारतीय कॉर्पोरेट बॉन्ड बाजार का आकार 40.89 लाख करोड़ रुपये था। इस वित्त वर्ष में अब तक 7.86 लाख करोड़ रुपये मूल्य के बॉन्ड जारी किए जा चुके हैं। मौजूदा विनिमय दरों पर भारतीय कंपनियों पर कुल 11.8 लाख करोड़ रुपये का विदेशी कर्ज है।
इसकी तुलना में बैंकिंग तंत्र का ऋण पोर्टफोलियो जनवरी अंत में 133.4 लाख करोड़ रुपये था। वास्तव में हमें काफी बड़े आकार का बॉन्ड बाजार चाहिए। अमेरिका छोड़ कर किसी भी दूसरे बाजार में बॉन्ड बाजार पर कंपनी जगत की निर्भरता बैंकिंग तंत्र से अधिक नहीं है।
सरल शब्दों में कहें तो अगर हम आधारभूत संरचना विकसित करना चाहते हैं तो बैंकों को उधार देना ही होगा। मगर इसके लिए ऋण आवंटन के ढांचे में बदलाव जरूरी है। वैश्विक स्तर पर आधारभूत परियोजनाओं में निर्माण से जुड़े जोखिम का वहन बॉन्ड बाजार करते हैं और बैंक बाद के चरणों में तब आते हैं जब वे रकम का प्रवाह बढ़ता देखते हैं। भारत में हाल तक यह रुझान उल्टा रहा है।
बैंकों को निर्माण के स्तर पर आधारभूत परियोजनाओं के लिए रकम उपलब्ध कराने का जोखिम मोल नहीं लेना चाहिए। कंपनियों को बाजार से रकम उधार लेने और अधिक जोखिम वाले ऋणों पर अधिक ब्याज का भुगतान करने के लिए छोड़ दिया जाना चाहिए।
बैंक बाद में आकर ऋण का नियंत्रण अपने पास ले सकते हैं जिससे कंपनियों के लिए रकम जुटाने की लागत कम हो जाएगी। यह एक उचित रणनीति मानी जा सकती है।
(लेखक जन स्मॉल फाइनैंस बैंक लिमिटेड में वरिष्ठ सलाहकार हैं।)