देश का सबसे मूल्यवान बैंक एचडीएफसी बैंक अब शायद विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों की पसंदीदा होने का दावा नहीं कर सकता। दो संकेतक (जो कुछ हद तक एक दूसरे से जुड़े हैं) काफी कुछ बताते हैं : स्थानीय शेयरों के मुकाबले एचडीएफसी बैंक के अमेरिकी डिपॉजिटरी रिसीट्स (एडीआर) का घटता प्रीमियम और देसी बाजार में एफपीआई के लिए निवेश के पर्याप्त मौके की उपलब्धता।
एडीआर प्रीमियम सिकुड़कर 5 फीसदी से नीचे चला गया है, जो मार्च 2021 में 30 फीसदी से ज्यादा था, साथ ही यह हालिया स्तर से और नीचे आ गया है। कैलेंडर वर्ष 2023 में यह औसतन 12 फीसदी था, लेकिन पिछले हफ्ते यह घटकर 4.8 फीसदी रह गया, जो जून 2022 के बाद का निचला स्तर है।
मैक्वेरी कैपिटल सिक्योरिटीज की प्रमुख (इंडिया इक्विटी सेल्स) अंजलि सिन्हा के नोट के मुताबिक, इस प्रीमियम के अस्तित्व में बने रहने की कोई फंडामेंटल वजह नहीं है। जब एडीआर की पोजीशन के दोबारा मूल्यांकन की बात आती है तो किसी प्रीमियम का अस्तित्व मोटे तौर पर निवेशक की निष्क्रियता के चलते होता है। इसके अतिरिक्त देसी शेयर बाजार में विदेशी निवेश के पर्याप्त मौके और फंडामेंटल के स्तर पर अल्पावधि की चुनौतियां एडीआर प्रीमियम के लिहाज से ठीक नहीं है।
सिन्हा ने एक नोट में कहा, एडीआर प्रीमियम ऐतिहासिक तौर पर मुख्यत: इसलिए था क्योंकि शेयर में विदेशी निवेश की गुंजाइश काफी कम थी (स्थानीय शेयर साल 2018 तक एफपीआई के लिए प्रतिबंधित था)। कुछ अन्य वजह हैं एडीआर में निवेश की आसान प्रक्रिया और कर लाभ, लेकिन ये कारण अन्य भारतीय शेयरों के एडीआर के लिए भी वैध हैं, लेकिन इनमें से किसी एडीआर का काफी ज्यादा प्रीमियम पर ट्रेड नहीं हो रहा।
एचडीएफसी बैंक की समकक्ष मसलन आईसीआईसीआई बैंक व ऐक्सिस बैंक के एडीआर की ट्रेडिंग बार-बार स्थानीय शेयरों के मुकाबले डिस्काउंट पर होती है। एचडीएफसी बैंक में विदेशी फंडों की दिलचस्पी कोविड-19 के बाद घटी है, जिससे इस शेयर के प्रदर्शन में कमजोरी आई है।
नवंबर 2020 में एचडीएफसी बैंक को डिपॉजिटरी एनएसडीएल की लाल निशान वाली सूची में रखा गया। इस सूची का इस्तेमाल सूचीबद्ध शेयरों में विदेशी निवेश की निगरानी में होता है और इस सूची में किसी कंपनी को तब डाला जाता है जब विदेशी निवेशकी गुंजाइश अनुमति वाली सीमा से तीन फीसदी नीचे चली जाती है।
एचडीएफसी बैंक में विदेशी निवेश की गुंजाइश का विस्तार मूल कंपनी एचडीएफसी में उसके हालिया विलय के बाद हुआ, जिसमें एफपीआई के निवेश की गुंजाइश अपेक्षाकृत ज्यादा थी। विलय पूरा होने के ठीक बाद विलय के बाद बनी नई इकाई में 60 फीसदी थी, जिससे विदेशी निवेश की गुंजाइश 19 फीसदी से ज्यादा देखने को मिली।
बैंक सितंबर तिमाही के शेयरधारिता के आंकड़े का खुलासा जल्द करेगा, जिससे कंपनी में एफपीआई की ताजा शेयरधाारिता का पता चलेगा। हालांकि बैंक के शेयर की कीमतों में नरमी को देखते हुए विश्लेषक एफपीआई के निवेस की गुंजाइश में और बढ़ोतरी की संभावना से इनकार नहीं करते। कुल के लिहाज से एचडीएफसी बैंक अभी भी सबसे ज्यादा एफपीआई निवेश वाली अग्रणी कंपनियों में शामिल है।
ऐसे में एचडीएफसी बैंक में एफपीआई की घटती दिलचस्पी के पीछे कौन से फंडामेंटल कारक हैं?
सिन्हा ने एक नोट में कहा, विलय के कारण एचडीएफसी बैंक में कुछ चीजें देखने को मिली – मसलन एचडीएफसी के कम प्रावदान कवरेज अनुपात के चलते प्रावधान में इजाफा, अत्यधिक नकदी के कारम कम शुद्ध ब्याज मार्जिन, जमाओं में कम वृद्धि, एचडीएफसी के रियल एस्टेट पोर्टफोलियो में ज्यादा नॉन परफॉर्मिंग लोन और लेखा नियमों के कारण हुई परेशानी। उन्होंने कहा, इन सभी चीजों का मतलब है अल्पावधि में परिसंपत्ति पर रिटर्न का कम होना।
परिसंपत्ति पर रिटर्न में सुधार आने में दो या तीन तिमाही लग सकते हैं। ऐसे में अगर आप वित्त वर्ष 23 की चौथी तिमाही और वित्त वर्ष 24 की पहली तिमाही में औसत से कमजोर प्रदर्शन पर नजर डालें तो हम करीब साल के औसत प्रदर्शन पर बात कर रहे हैं।
पिछले महीने देश की तीसरी सबसे मूल्यवान फर्म एचडीएफसी बैंक का शेयर महज दो दिन में 5 फीसदी टूट गया जब लेनदार ने विलय के प्रतिकूल असर की संभावना का संकेत दिया।
मोतीलाल ओसवाल के नोट में कहा गया है, विलय के बाद बनी नई इकाई के पास आगामी वर्षों में मजबूत लाभ व वृद्धि हासिल करने के लिए सबकुछ है, लेकिन कामयाब क्रियान्वयन अहम होगा। मंगलवार को एचडीएफसी बैंक का शेयर 1.2 फीसदी की गिरावट के साथ 1,508 रुपये पर बंद हुआ।