भारत को लेकर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की नवीनतम तथाकथित आर्टिकल चार मशविरा रिपोर्ट जो व्यापक आर्थिक और वित्तीय स्थिरता पर आधारित है, वह काफी हद तक सकारात्मक दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है। वैश्विक स्तर पर प्रतिकूल हालात के बावजूद जिसमें वैश्विक वृद्धि में धीमापन और बढ़ता भूराजनीतिक विभाजन शामिल है, भारत ने बीते वर्ष के दौरान मजबूत वृद्धि दर्शाई है।
IMF ने भारत के निकट अवधि के राजकोषीय दृष्टिकोण की सराहना की है। उसने रिजर्व बैंक की मूल्य स्थिरता और मौद्रिक नीति प्रबंधन को लेकर प्रतिबद्धता को भी सराहा है। बैंकिंग क्षेत्र के कम फंसे हुए कर्ज, घरेलू ऋण में इजाफा और पूंजी पर्याप्तता आदि ने भी आर्थिक दृष्टिकोण को सुधारने तथा भारत के वित्तीय क्षेत्र को बेहतर बनाने में अहम भूमिका निभाई है। आईएमएफ का अनुमान है कि चालू और अगले वित्त वर्ष में भारत की आर्थिक विकास दर 6.3 फीसदी रहेगी।
बहरहाल, सकारात्मक दृष्टिकोण के बावजूद चिंताएं बरकरार हैं। उदाहरण के लिए सार्वजनिक ऋण का बढ़ा हुआ स्तर और आकस्मिक देनदारी वृद्धि और वित्तीय स्थिरता के लिए चुनौती बन सकती है। सार्वजनिक ऋण में तेज इजाफे का श्रेय महामारी के दौर की राजकोषीय उथल-पुथल और समाज के विभिन्न धड़ों को मदद पहुंचाने में हुए व्यय को दिया जा सकता है।
आईएमएफ के पूर्वानुमानों के अनुसार भारत का सार्वजनिक ऋण 2024-25 में सकल घरेलू उत्पाद के 82.3 फीसदी के बराबर रह सकता है और 2028 तक वह 80 फीसदी के आसपास रहेगा। उदाहरण के लिए अगर जलवायु संबंधी निवेश की बात की जाए तो 2070 तक विशुद्ध शून्य उत्सर्जन लक्ष्य को हासिल करने के लिए फंडिंग स्रोत के मौजूदा मिश्रण के हिसाब से तो सार्वजनिक ऋण में और अधिक इजाफा होगा।
यानी आईएमएफ का यह सुझाव सही है कि राजकोषीय जवाबदेही एवं बजट प्रबंधन अधिनियम की समीक्षा की जाए तथा मध्यम अवधि के राजकोषीय ढांचे (एमटीएफएफ) का क्रियान्वयन किया जाए। एमटीएफएफ राजकोषीय सहारे के रूप में काम कर सकता है और बफर भंडार को दोबारा तैयार करने में मदद कर सकता है। हालांकि सरकार वृद्धि के लिए निजी निवेश बढ़ाने पर जोर दे रही है लेकिन किसी न किसी मोड़ पर उसे अपनी राजकोषीय स्थिति को समायोजित करना होगा।
ध्यान रहे कि आईएमएफ ने रिजर्व बैंक द्वारा मुद्रा बाजार में निरंतर हस्तक्षेप का मसला भी उठाया है। रुपये का कारोबार हाल के महीनों में एक संकीर्ण दायरे में हुआ है जिससे यह संभावना बनी है कि केंद्रीय बैंक के संभावित हस्तक्षेप ने विनिमय दर में अस्थिरता कम की है। इसके परिणामस्वरूप आईएमएफ ने भारत की विनिमय दर व्यवस्था को ‘स्थिर व्यवस्था’ करार दिया है।
बहरहाल, यह भी ध्यान देने की आवश्यकता है कि 2023 में विनिमय दर में सीमित अस्थिरता चालू खाते के घाटे में कमी और भारत सरकार के बॉन्ड के वैश्विक बॉन्ड सूचकांक में शामिल होने की खबर सामने आने के बाद बढ़े हुए पूंजी प्रवाह की बदौलत हो सकती है।
वैश्विक वित्तीय हालात में भी उल्लेखनीय नरमी आई है। इस संदर्भ में यह बात भी ध्यान देने लायक है कि रिजर्व बैंक के लिए पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार तैयार रखना जरूरी है ताकि वित्तीय स्थिरता सहित अन्य लक्ष्यों का बचाव किया जा सके।
इसका यह तात्पर्य बिल्कुल नहीं है कि उसे विनिमय दर का लचीलापन त्याग देना चाहिए। बल्कि रिजर्व बैंक की घोषित नीति यह है कि वह विनिमय दर के किसी स्तर को लक्ष्य नहीं बनाता है और केवल अतिरिक्त नकदी को कम करने के लिए हस्तक्षेप करता है। अनुकूल समय में एकत्रित विदेशी मुद्रा भंडार रिजर्व बैंक को उस समय दबाव से बचने में मदद की जब 2022 में बड़े केंद्रीय बैंकों ने समन्वित रूप से ब्याज दर बढ़ा दी थी।
बड़े मुद्रा भंडार के अभाव में भारत को मुद्रा बाजार में अस्थिरता का सामना करना पड़ा जिसका असर मुद्रास्फीति और वृद्धि दोनों पर पड़ा। इससे वित्तीय स्थिरता को जोखिम बढ़ेगा और कई विकासशील देशों में हमने ऐसा देखा भी। ऐसे में विनिमय दर प्रबंधन पर आईएमएफ के कुछ कर्मचारियों की टिप्पणियां अवांछित हो सकती हैं। उसे रिजर्व बैंक की स्थिति को समझने और विनिमय दर प्रबंधन को दीर्घकालिक नजरिये से देखने की आवश्यकता है।