Global economic environment: वैश्विक आर्थिक माहौल में व्याप्त अनिश्चितता बीते कुछ महीनों में कम हुई है लेकिन निकट भविष्य का परिदृश्य कमजोर ही नजर आ रहा है।
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने जुलाई माह का जो वैश्विक आर्थिक परिदृश्य प्रस्तुत किया है उसमें 2023 के लिए वैश्विक वृद्धि के अनुमान को 0.2 फीसदी बढ़ा दिया गया है। उसने चालू वर्ष के लिए भारत के वृद्धि अनुमान को भी 0.2 फीसदी बढ़ाकर 6.1 फीसदी कर दिया है।
हालांकि वैश्विक वृद्धि की बात करें तो 2023 और 2024 के लिए तीन फीसदी का स्तर बताया गया है जो 2009 और 2019 के बीच के 3.8 फीसदी के सालाना औसत से भी कम है। 2022 में वैश्विक अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 3.5 फीसदी रही।
विकसित देशों का विनिर्माण क्षेत्र का प्रदर्शन काफी कमजोर
विकसित देशों की बात करें तो हालांकि सेवा क्षेत्र का प्रदर्शन अब ठीक है लेकिन विनिर्माण क्षेत्र का प्रदर्शन काफी कमजोर रहा है। यह आंशिक तौर पर मांग में बदलाव में भी नजर आता है। महामारी के बाद भौतिक गतिविधियां सामान्य होने के बीच मांग भी वस्तुओं से सेवाओं की ओर स्थानांतरित हो रही है।
इन तमाम बातों के बीच वैश्विक वृद्धि के लिए अभी भी जोखिम मौजूद हैं। विकसित देशों में जहां मुद्रास्फीति की दर में कमी आई है, वहीं अभी भी यह मध्यम अवधि के लक्ष्य से ऊपर है। मुख्य मुद्रास्फीति (खाद्य और ईंधन के अतिरिक्त लगभग सभी वस्तुओं और सेवाओं की दीर्घकालिक मुद्रास्फीति) में आ रही कमी यही संकेत देती है कि लक्ष्य को हासिल करना अभी भी चुनौती बना हुआ है।
जैसा कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने कहा भी कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व और बैंक ऑफ इंगलैंड से यही उम्मीद है कि वे नीतिगत ब्याज दरों में अप्रैल के अनुमान से अधिक इजाफा करेंगे। बहरहाल, यह राहत की बात है कि कुछ अर्थशास्त्रियों के अनुमान के विपरीत मेहनताने और कीमत का चक्र स्थगित नहीं हुआ है।
विकसित देशों में ब्याज दरें निकट भविष्य में ऊंचे स्तर पर बनी रह सकती हैं
खासतौर पर अमेरिका में ऐसा नहीं हुआ है और दीर्घावधि के मुद्रास्फीति संबंधी अनुमान अभी नियंत्रण में हैं। मुद्रास्फीति के हालात को देखते हुए विकसित देशों में ब्याज दरें निकट भविष्य में ऊंचे स्तर पर बनी रह सकती हैं। इसका प्रभाव ऋण के प्रवाह तथा वृद्धि पर भी पड़ेगा। कुछ निम्न तथा मध्यम आय वाले देशों के लिए भी फाइनैंस की स्थिति में सुधार करना मुश्किल बना हुआ है।
यहां तक कि विकसित अर्थव्यवस्था वाले देश अभी भी उच्च मुद्रास्फीति से जूझ रहे हैं जबकि दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में वह अब भी लक्ष्य से नीचे है। चीन के केंद्रीय बैंक ने नीतिगत दरों में कटौती की है ताकि मांग बढ़ाई जा सके। चीन की अर्थव्यवस्था में धीमेपन की वजह ढांचागत कारकों को माना जा रहा है। यह वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए दिक्कत की बात बन सकता है।
हालांकि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने चालू वर्ष में चीन के 5.2 फीसदी की दर से वृद्धि हासिल करने का अनुमान जताया है लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि यह दर इससे कम रहेगी। वैश्विक आर्थिक कमजोरी व्यापार संबंधी अनुमानों में भी नजर आती है।
विश्व व्यापार वृद्धि के 2023 में दो फीसदी रहने का अनुमान
विश्व व्यापार वृद्धि के 2022 के 5.2 फीसदी से घटकर 2023 में दो फीसदी रहने का अनुमान है। इसके अलावा यूक्रेन युद्ध भी वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए जोखिम पैदा करता रहेगा। उदाहरण के लिए ब्लैक सी ग्रेन इनीशिएटिव का निलंबन भी चिंताएं बढ़ाने वाला है।
घरेलू मोर्चे पर भी चुनौतियां
हालांकि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने चालू वर्ष में भारत के वृद्धि अनुमान में केवल 0.2 फीसदी का इजाफा किया है जो अन्य पूर्वानुमानों के अनुरूप ही है, वहीं अनुमान से कमजोर वैश्विक आर्थिक माहौल संभावनाओं पर असर डालेगा। उदाहरण के लिए भारत का वस्तु निर्यात जून में सालाना आधार पर 22 फीसदी कम हुआ। घरेलू मोर्चे पर भी चुनौतियां हैं।
उदाहरण के लिए गत सप्ताह सरकार ने चावल निर्यात पर रोक लगा दी ताकि खाद्य मुद्रास्फीति को थामा जा सके। हालांकि यह कदम सुविचारित नहीं था क्योंकि कृषि अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता होने पर रिजर्व बैंक निकट भविष्य में दरें कम नहीं कर पाएगा।
इसके अलावा व्यापक स्तर पर भारत को 6 फीसदी से ऊंची वृद्धि दर हासिल करनी होगी ताकि वह विकास संबंधी लक्ष्य हासिल कर सके और बढ़ती श्रम शक्ति के लिए रोजगार तैयार कर सके। ऐसे में प्रतिकूल वैश्विक माहौल में भी नीतिगत ध्यान मध्यम अवधि की वृद्धि संभावनाओं में सुधार पर होना चाहिए।