केंद्र सरकार ने संसद में दिए गए जवाब के माध्यम से महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के लिए आधार आधारित भुगतान प्रणाली (एबीपीएस) और मोबाइल ऐप्लिकेशन (नैशनल मोबाइल मॉनिटरिंग सिस्टम, एनएमएमएस) के जरिये श्रमिकों की अनिवार्य हाजिरी से जुड़े मुद्दे पर स्पष्टीकरण देने की कोशिश की है लेकिन, अब भी सिविल सोसाइटी के सदस्यों और अन्य लोगों का कहना है कि संशोधित नियम के तहत जिले के अधिकारियों द्वारा मैनुअल हाजिरी की पुष्टि करना अपने आप में ही जटिल और समस्याओं को बढ़ाने वाला है।
सरकार ने पिछले हफ्ते संसद में पूछे गए एक सवाल के जवाब में स्पष्ट किया कि राज्यों के अनुरोध के कारण एबीपीएस के लिए समय सीमा 31 मार्च तक बढ़ा दी गई है। लेकिन मोबाइल ऐप-आधारित हाजिरी के मामले में जिला कार्यक्रम अधिकारी को मैनुअल हाजिरी को मंजूरी देने के लिए अधिकृत किया गया है, लेकिन यह केवल ‘असाधारण’ परिस्थितियों में ही किया जाएगा।
पिछले कुछ सप्ताह से सिविल सोसाइटी से जुड़े संगठन, मनरेगा के लिए अनिवार्य किए गए हाजिरी के दोनों प्रावधानों के खिलाफ राष्ट्रीय राजधानी और देश के अन्य जगहों पर विरोध कर रहे हैं।
केंद्र सरकार ने संसद में दिए गए जवाब में कहा कि कई राज्यों द्वारा अनुरोध किए जाने पर मंत्रालय ने निर्णय लिया गया है कि 31 मार्च, 2023 तक लाभार्थियों का वेतन भुगतान या तो एबीपीएस या नैशनल ऑटोमेटेड क्लियरिंग हाउस (एनएसीएच) का उपयोग करके किया जा सकता है, लेकिन यह लाभार्थी की एबीपीएस की स्थिति पर निर्भर करेगा।
जवाब में कहा गया, ‘मजदूरी भुगतान करने के लिए दो विकल्पों का उपयोग किया जा सकता है। विकल्प 1 के तहत, यदि कोई लाभार्थी एबीपीएस से जुड़ा है तो भुगतान केवल एबीपीएस के माध्यम से किया जाएगा। जबकि दूसरे मामले में, यदि किसी तकनीकी कारण से लाभार्थी एबीपीएस से जुड़ा नहीं है तब कार्यक्रम अधिकारी एनएसीएच से मजदूरी का भुगतान करने के लिए फैसला ले सकते हैं।’
एनएमएमएस के हिस्से के रूप में मोबाइल ऐप के माध्यम से किसी निजी जमीन पर किए गए काम को छोड़कर कार्यस्थलों पर हाजिरी लगाना 1 जनवरी से ही अनिवार्य कर दिया गया है। सरकार ने कहा कि एनएमएमएस ऐप में भी संशोधन किया गया है ताकि सुबह की हाजिरी के लिए पहली तस्वीर लेने के ठीक चार घंटे बाद दूसरी तस्वीर ली जा सके। मोबाइल कनेक्टिविटी की समस्या को दूर करने की दिशा में भी सरकार ने कदम उठाए हैं जिससे हाजिरी दर्ज करने में बाधा आती है और काम के लिए पंजीकरण नहीं होता है। इस पर सरकार ने स्पष्ट किया कि सुबह की उपस्थिति से जुड़ी पहली तस्वीर और दूसरी तस्वीर ऑफलाइन मोड में ली जा सकती है और मोबाइल के नेटवर्क वाले क्षेत्रों में आने के बाद अपलोड की जा सकती है।
सरकार ने कहा, ‘असाधारण परिस्थितियों में अगर हाजिरी से जुड़े फोटो अपलोड नहीं किए जा सके हैं तब जिला कार्यक्रम समन्वयक (डीपीसी) को मैन्युअल हाजिरी की स्वीकृत के लिए अधिकृत किया गया है।’
सरकार ने स्पष्ट किया कि सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेश 1 जनवरी, 2023 से एनएमएमएस ऐप के माध्यम से सभी कार्यों (व्यक्तिगत लाभार्थी योजना/परियोजना को छोड़कर) के लिए हाजिरी दर्ज कराना सुनिश्चित करेंगे। हालांकि, सिविल सोसाइटी के कार्यकर्ताओं ने कहा कि छूट से समस्या का समाधान नहीं होता है क्योंकि डीपीसी को मैनुअल हाजिरी की स्वीकृति के लिए अधिकृत करना अपने आप में एक जटिल और समस्या बढ़ाने वाला काम है और इसके साथ ही काम दर्ज नहीं किया जा रहा है और मजदूरी का भुगतान नहीं किया जा रहा है।
नरेगा संघर्ष मोर्चा के शोधकर्ता अपूर्व गुप्ता का कहना है, ‘इस आधार पर बहुत सारे सबूत मिले हैं कि कामगार डीपीसी द्वारा हाजिरी की मंजूरी नहीं ले पा रहे हैं और इसके बजाय एक अलग मस्टर रोल तैयार किया जा रहा है।’
मोर्चा ने कुछ दिन पहले ही एक बयान जारी कर कहा था कि एनएमएमएस या एबीपीएस से संबंधित तकनीकी समस्याओं के कारण कई मनरेगा मजदूरों को बिना भुगतान के काम करना पड़ा। यह बेहद अन्यायपूर्ण, अस्वीकार्य और अवैध है।
बयान में कहा गया कि एनएमएमएस ऐप की शुरुआत के बाद से ही देश भर के श्रमिकों ने कई मुद्दों को लेकर शिकायत की है जिनमें नेटवर्क मुद्दों के चलते वे अपने इलेक्ट्रॉनिक मस्टर रोल (ईएमआर) को भरने में दिक्कत होती है और कई त्रुटि कोड और डिवाइस से जुड़ी समस्याएं भी आती हैं। मोर्चा ने बयान में कहा है, ‘ऐसे अनगिनत श्रमिक हैं जिनकी काम की मांग के कारण ईएमआर जारी की गई लेकिन उनकी हाजिरी कभी नहीं भरी गई। एनएमएमएस ऐप ने नरेगा के तहत श्रमिकों के काम करने के अधिकार को कम कर दिया है।’