2025 का साल कई उतार-चढ़ाव लेकर आया, और अब निवेशक 2026 की संभावनाओं पर नजरें टिकाए बैठे हैं। इसी बीच अवेंदुस वेल्थ मैनेजमेंट के मुख्य निवेश अधिकारी सौरभ रुंगटा ने बिजनेस स्टैंडर्ड को दिए ईमेल इंटरव्यू में अगले साल के बाजार, जोखिम, अवसर और आदर्श पोर्टफोलियो रणनीति पर अपने विचार साझा किए। उनके अनुसार, भारतीय बाजार अब एक ऐसे दौर में प्रवेश कर रहे हैं जहां सरकार का विकास पर खर्च बढ़ाने वाला बजट, अमेरिका और भारत के बीच नया ट्रेड समझौता, और भारतीय कंपनियों की अच्छी कमाई। ये सब मिलकर बाजार को और मजबूत बना सकते हैं।
रुंगटा का कहना है कि भारतीय रिजर्व बैंक ने इस बार भी बहुत सोच-समझकर कदम उठाए हैं। रीपो रेट में कटौती, ओएमओ और डॉलर स्वैप जैसे उपाय बाजार की लिक्विडिटी और ऋण-फ्लो को बेहतर करेंगे, खासकर NBFCs के लिए। इससे न सिर्फ ब्याज दरों में नरमी आएगी, बल्कि कर्ज लेने की क्षमता भी बढ़ेगी। उनके अनुसार मौजूदा नीतिगत माहौल- कम महंगाई, मजबूत घरेलू मांग और स्वस्थ बैंकिंग सिस्टम, अर्थव्यवस्था के लिए एक ठोस आधार तैयार कर रहा है।
पिछले एक साल में भारतीय शेयर बाजार दुनिया के दूसरे बाजारों के मुकाबले अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाए। इसी वजह से कई निवेशकों में थोड़ी चिंता भी दिखी। MSCI India ने सिर्फ 2.2% रिटर्न दिया, जबकि दुनिया के उभरते बाजारों का MSCI EM इंडेक्स 28% बढ़ गया। इसके बावजूद रुंगटा आने वाले समय को लेकर आशावादी हैं। उनका कहना है कि FY27 में कंपनियों की कमाई लगभग 14–16% की रफ्तार से बढ़ सकती है। अगर बाजार भी इसी गति का पालन करते हैं, तो निफ्टी 2026 के अंत तक करीब 28,500 से 30,000 तक पहुंच सकता है। वे यह भी जोड़ते हैं कि अगर अमेरिका-भारत ट्रेड डील हो जाती है, सरकार सुधारों वाला बजट लाती है या विदेशी निवेशक बड़ी मात्रा में दोबारा पैसा लगाने लगते हैं, तो निफ्टी इससे भी ऊपर जा सकता है।
उनके अनुसार 2026 निवेशकों के लिए कई सकारात्मक संकेत लेकर आ सकता है, बशर्ते नीतिगत कदम सही दिशा में होते रहें। सुधारवादी बजट आने से मैन्युफैक्चरिंग और निवेश में भरोसा बढ़ेगा। इसके साथ ही भारत की वैल्यूएशन अब ग्लोबल बाजारों की तुलना में उतनी महंगी नहीं है, इसलिए जोखिम भी कुछ हद तक कम हुआ है। दुनिया भर में यदि ब्याज दरें कम होती हैं, तो उभरते बाजारों में निवेश की नई लहर चल सकती है, जिसका फायदा भारत को भी जरूर मिलेगा।
हालांकि जोखिम अब भी मौजूद हैं। वैश्विक बाजारों में AI से जुड़ी निवेश थीम बहुत गर्म है, और यदि इसमें करेक्शन आता है, तो जोखिम वाले एसेट्स में बिकवाली देखने को मिल सकती है। भले ही भारत इस AI रैली का बड़ा हिस्सा नहीं रहा, लेकिन वैश्विक दबाव का असर भारतीय बाजार पर भी पड़ सकता है। इसके अलावा यदि कंपनियों की कमाई आगे की तिमाहियों में कमजोर पड़ी, तो वर्तमान हाई वैल्यूएशन दबाव में आ सकते हैं। रुंगटा का कहना है कि 2026 में सफलता की कुंजी “चुनिंदा निवेश” होगी। अच्छे गवर्नेंस और मजबूत बिजनेस मॉडल वाली कंपनियां ही पोर्टफोलियो को स्थिर रखेंगी।
रुंगटा का कहना है कि इस समय बड़ी कंपनियों (लार्जकैप) में निवेश करना ज्यादा सुरक्षित और समझदारी वाला है, क्योंकि मिड और स्मॉल कैप कंपनियों के शेयर बहुत महंगे हो चुके हैं। उन्हें फाइनेंशियल सेक्टर पसंद है, लेकिन प्राइवेट बैंकों को छोड़कर। इसके अलावा वे उन सेक्टरों को भी अच्छा मानते हैं जो देश की घरेलू मांग पर चलते हैं। IT और फार्मा सेक्टर में भी उन्हें कुछ ऐसे मौके दिख रहे हैं जहां लंबे समय में अच्छा फायदा मिल सकता है, खासकर तब जब बाजार कमजोर रहता है। वहीं इंडस्ट्रियल्स, कैपिटल गुड्स और पावर सेक्टर में शेयरों की कीमत पहले ही बहुत बढ़ चुकी है, इसलिए इन सेक्टर्स में नए मौके तभी बनेंगे जब कीमतें थोड़ी नीचे आएं या कुछ समय तक स्थिर रहें।
रुंगटा की राय में अगर कोई 3 से 5 साल के लिए पैसा लगाना चाहता है, तो उसे एक संतुलित पोर्टफोलियो बनाना चाहिए। इसमें बड़ी कंपनियों (लार्जकैप) और चुनिंदा मिड व स्मॉल कैप कंपनियों का लगभग बराबर मिलाकर निवेश करना बेहतर रहता है। बड़ी कंपनियों से पोर्टफोलियो को स्थिरता मिलती है और वे लंबे समय वाले बड़े थीम्स का फायदा देती हैं। वहीं मिड और स्मॉल कैप कंपनियां पोर्टफोलियो को अतिरिक्त रिटर्न देने में मदद कर सकती हैं। लेकिन वे यह भी साफ कहते हैं कि सिर्फ तेजी देखकर शेयर खरीदना गलत है। निवेश हमेशा कंपनी की कमाई की मजबूती, पैसे का सही इस्तेमाल और अच्छे मैनेजमेंट पर आधारित होना चाहिए।
अगर कोई निवेशक भारत के साथ-साथ दुनिया में भी निवेश करना चाहता है, तो रुंगटा कहते हैं कि उसका सबसे बड़ा और मुख्य हिस्सा भारत ही होना चाहिए। भारत के बाद वे अमेरिका में निवेश करने की सलाह देते हैं, क्योंकि वहां तकनीक, नए आइडिया और AI से जुड़े बहुत बड़े मौके हैं। एशिया के कुछ देश भी अच्छे लगते हैं, खासकर वे जो चीन से बाहर नए मैन्युफैक्चरिंग सेंटर बन रहे हैं। इसके अलावा दुनिया भर के फार्मा और हेल्थकेयर सेक्टर में भी निवेश करना फायदेमंद हो सकता है, क्योंकि ये सेक्टर ज्यादातर समय स्थिर रहते हैं और बड़ी गिरावट से पोर्टफोलियो को बचाते हैं। चीन को लेकर वे सावधानी बरतने को कहते हैं, लेकिन यह भी बताते हैं कि वहां शेयर काफी सस्ते हैं, इसलिए अगर वहां की नीतियां और माहौल थोड़ा सुधरता है, तो चीन के बाजार में थोड़े समय के लिए अच्छी तेजी आ सकती है।
रुंगटा कहते हैं कि आज विदेशी निवेशक (FII) बहुत सोच-समझकर और तेजी से फैसले लेते हैं। वे तभी लगातार पैसा लगाएंगे, जब भारत उन्हें भरोसा दिलाने वाले कदम दिखाए- जैसे अमेरिका-भारत ट्रेड डील, ऐसा बजट जो विकास को बढ़ावा दे, कंपनियों की अच्छी कमाई और दुनिया भर में ब्याज दरों में स्थिर कमी। दिलचस्प बात यह है कि पिछले कई महीनों में FII ने शेयर बाजार में काफी बिकवाली की, लेकिन नई कंपनियों के IPO यानी प्राइमरी मार्केट में वे लगातार पैसा लगाते रहे। इससे पता चलता है कि लंबी अवधि में भारत की कहानी उन्हें अब भी अच्छी और मजबूत लगती है।
रुंगटा बताते हैं कि अगर कोई निवेशक 3–5 साल में करीब 10% रिटर्न पाना चाहता है और ज्यादा जोखिम नहीं लेना चाहता, तो उसे ऐसा पोर्टफोलियो बनाना चाहिए जिसमें शेयर (इक्विटी) कम हों और अधिक हिस्सा सुरक्षित साधनों- जैसे फिक्स्ड इनकम और वैकल्पिक डेट में लगाया जाए। इससे पोर्टफोलियो स्थिर रहता है। दूसरी तरफ, जो निवेशक ज्यादा जोखिम ले सकते हैं और लगभग 15% रिटर्न का लक्ष्य रखते हैं, उन्हें अपने पोर्टफोलियो में शेयर और वैकल्पिक इक्विटी का हिस्सा बढ़ाना चाहिए। दोनों तरह के निवेशकों के लिए एक बात समान रहती है- कमोडिटी, खासकर सोना, पोर्टफोलियो में बराबर जगह पाता है, क्योंकि यह बाजार में उतार-चढ़ाव होने पर सुरक्षा और स्थिरता देता है।