फार्मा कंपनियां और राज्यों के दवा नियामक भारत में नकली और घटिया दवाओं के खतरे की जांच करने के लिए अपना दायरा बढ़ा रहे हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2019-20 में 81,329 दवाओं के नमूनों की जांच की गई, जिनमें 2,497 मानक गुणवत्ता के नहीं थे और 199 को नकली करार दिया गया। इसी तरह 2020-21 में 84,874 दवाओं के नमूने जांचे गए, जिनमें 2,652 मानक गुणवत्ता के नहीं थे और 263 नकली पाए गए। 2019 से 2021 के बीच नकली या गैर-मानक गुणवत्ता वाली दवाओं के कारोबार से जुड़े 384 लोगों को गिरफ्तार किया गया था।
इस दिशा में कार्रवाई की शुरुआत के लिए हिमाचल प्रदेश, जहां बद्दी दवा विनिर्माण का एक प्रमुख केंद्र है, के राज्य औषधि नियंत्रक ने विभाग में 3 से 4 लोगों की एक आंतरिक टीम बनाई है, जो राज्य में हो रहे नकली दवाओं के कारोबार से संबंधित खुफिया जानकारी जुटाने का काम कर रही है।
बिज़नेस स्टैंडर्ड से बातचीत में हिमाचल प्रदेश के राज्य औषधि नियंत्रक नवनीत मारवाह ने कहा, ‘नकली दवा बनाने वाली इकाइयों में से कोई भी विनिर्माण लाइसेंस वाली नियमित इकाई की तरह नहीं होगी। यह काम गुपचुप तरीके से किया जाता है। इसलिए हमने अधिकारियों की एक टीम बनाई है जो इस तरह की ‘अंडरग्राउंड’ गतिविधियों के बारे में लगातार खुफिया जानकारी जुटाने का काम कर रही है। इसके परिणाम मिले हैं और हमने पिछले तीन महीने में इस तरह के तीन रैकेट का पर्दाफाश किया है।’
मारवाह की टीम ने हाल ही में सरगना मोहित बंसल सहित चार लोगों को पकड़ा है, जो मॉन्टेयर, एटोरवा, ज़ीरोडॉल, यूरिपास जैसे लोकप्रिय दवा ब्रांडों की नकली दवा बना रहे थे। मारवाह ने बताया, ‘ये लोग रात में आगरा से आते थे और यहां दवाई बनाकर तथा कार में भरकर वापस आगरा ले जा रहे थे।’ उनका अनुमान है कि ट्राइजल फॉर्मूलेशन (बंसल के गिरोह) से जब्त की गई दवाओं का मूल्य लगभग 1.5 करोड़ रुपये है। इसके अलावा उनकी टीम ने हाल के महीनों में दो और रैकेट – आर्य फार्मा और एक्लीम फॉर्म्युलेशन का भी भंडाफोड़ किया है।
मारवाह का कहना है कि अक्सर नकली दवाएं बनाने वाली इकाइयों के पास खाद्य सामग्री बनाने का लाइसेंस होता है। उन्होंने कहा, ‘न्यूट्रास्यूटिकल्स और कई दवाएं बनाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली मशीनें एक जैसी होती हैं। इनमें से अधिकांश इकाइयों के पास दवा बनाने का लाइसेंस नहीं होता है।
इसलिए राज्य दवा नियामक के लिए इन्हें पकड़ना कठिन हो जाता है।’ कंपनियां भी यह सुनिश्चित करने का प्रयास कर रही हैं कि ग्राहक आसानी से असली और नकली दवा का पता लगा सकें। इस तरह की गतिविधियों पर रोक लगाना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि नकली दवा बनाने वाले कैंसर जैसी जीवनरक्षक दवाओं की भी नकल कर रहे हैं।
पिछले महीने दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा ने एक डॉक्टर सहित सात लोगों को कैंसर की दवा बनाने और भारत, नेपाल, बांग्लादेश तथा चीन में उसकी आपूर्ति करने के आरोप में गिरफ्तार किया था। जायडस लाइफसाइंसेज के प्रवक्ता ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि उन्होंने महत्त्वपूर्ण दवाओं की पैकेजिंग में एक नई सुविधा ‘जायवेरिफाई’ शुरू की है, जिससे मरीज पता कर सकते हैं कि दवा नकली तो नहीं है।
जायडस लाइफसाइंसेज के प्रवक्ता ने कहा, ‘हमने एक नया आईटी-आधारित स्क्रैच कोड शुरू किया है। मरीज खरीदे गए उत्पाद की पैकेजिंग खरोचकर कोड देख सकते हैं और उसे ऐप या वेबसाइट के माध्यम से सत्यापित करके पता लगा सकते हैं कि संबंधित दवा असली है या नहीं। हाइपरलिंक इन्फोसिस्टम द्वारा विकसित यह सुरक्षा सुविधा मरीजों और संस्थानों को नकली दवाओं का पता लगाने में मदद करती है।’
कंपनी का कहना है कि बाजार में नकली दवाओं के बढ़ते मामले देखते हुए यह सुनिश्चित करना जरूरी था कि उसके ब्रांड के 100 फीसदी असली उत्पाद उपलब्ध हों। जायडस के प्रवक्ता ने कहा, ‘हमने अपने कुछ उत्पादों में यह तकनीक शुरू की है और अन्य उत्पादों को भी इसके दायरे में लाया जा रहा है।’ उन्होंने कहा कि दवाओं पर क्यूआर कोड लगाना सरकार की अच्छी पहल है और इसे सभी आवश्यक उत्पादों के लिए अपनाया जा रहा है। कंपनी क्यूआर कोड प्रिंटिंग का दायरा बढ़ाती रहेगी।
मारवाह का कहना है कि कंपनियों के लिए हर उस व्यक्ति पर सख्ती से अंकुश लगाना जरूरी है, जो कभी भी जालसाजी करते पकड़ा गया हो। निशीथ देसाई एसोसिएट्स में फार्मा ऐंड लाइफ साइंसेज प्रैक्टिस के लीडर डैरेन पुनेन ने कहा, ‘कंपनियां 2 तरह से कार्रवाई कर सकती हैं- एक आईपी (मुख्य रूप से ट्रेडमार्क) उल्लंघन के नजरिये से, जिसमें ब्रांड मालिक आम तौर पर जालसाजी के स्रोत का पता लगाता है और अपराधी के खिलाफ कार्रवाई करता है और दूसरा गुणवत्ता या नियामक दृष्टिकोण है, जिसमें ब्रांड मालिक दवा नियामक को नकली दवाओं के बारे में सूचित करता है।’ पुनेन कहते हैं कि नियामक को सूचित करने के बाद पुलिस की सहायता से जांच की जाती है और नकली दवाओं के आयात, विनिर्माण या बिक्री के मामले में संबंधित अदालत में आपराधिक मुकदमा चलाया जाता है।
बाजार में कैसे पहुंचती है नकली दवाएं?
ऑथेंटिकेशन सॉल्यूशन प्रोवाइडर्स एसोसिएशन (एएसपीए) के अध्यक्ष नकुल पसरीचा का कहना है कि जिन बाजारों को बड़े पैमाने पर दवा वितरित की जाती हैं (उदाहरण के लिए आगरा), वहां कुछ वितरक असली दवाओं की खेप में नकली दवाएं मिला देते हैं और इसे केमिस्ट के पास भेज देते हैं। केमिस्ट कई बार अनजाने में अपराध के भागीदार बन जाते हैं और कई मामलों में वे शामिल भी होते हैं।
पसरीचा का कहना है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के एक विश्वव्यापी अध्ययन के अनुसार दुनिया भर में वितरित की जाने वाली 10 दवाओं में से एक नकली या घटिया है। भारत में सीडीएससीओ ने 2009 और 2016 में अध्ययन किया है, जिसमें उन्होंने पाया कि घटिया दवाओं की दर लगभग 4 फीसदी थी। इसमें से नकली दवाएं लगभग 0.3 फीसदी थीं। पसरीचा के अनुसार कोविड-19 के दौरान ऐसी शिकायतों की संख्या में 47 फीसदी की वृद्धि हुई है।
हालांकि सटीक संख्या जो भी हो, नकली और घटिया दवाओं के खतरे को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इस साल अगस्त में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया ने फार्मा उद्योग से देश में घटिया और नकली दवाओं के विनिर्माण में शामिल फर्मों के खिलाफ कार्रवाई करने को कहा था।
केंद्र ने एनल्जेसिक, विटामिन, मधुमेह और उच्च रक्तचाप की दवाओं सहित 300 सामान्य दवा ब्रांडों के लिए प्रामाणिकता और पता लगाने की क्षमता सुनिश्चित करने के लिए क्यूआर कोड लागू करने का फैसला किया है। इसकी मसौदा अधिसूचना को नवंबर में अंतिम रूप दिया गया था। इसके तहत ज्यादा बिकने वाली दवाओं को छांटा गया है, जिन पर क्यूआर कोड अनिवार्य किया गया है।
गुजरात के खाद्य एवं औषधि नियंत्रण प्रशासन के आयुक्त एचजी कोशिया का कहना है कि उनके पास ऐसी मशीनें हैं जो बिना सील तोड़े किसी भी खेप के नकली होने की जांच कर सकती हैं। जांच का समय कम करने के लिए गुजरात एफडीसीए ने मोबाइल दवा परीक्षण प्रयोगशालाएं शुरू की हैं।