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डेटा कानून में अभिभावक की सहमति की शर्त से छूट चाहती हैं कंपनियां

इस कानून के मुताबिक 18 साल से कम उम्र के उपयोगकर्ताओं के निजी डेटा का इस्तेमाल करने के लिए डिजिटल मंचों को माता-पिता या कानूनी अभिभावक की ‘सत्यापित सहमति’ लेना अनिवार्य होगा।

Last Updated- August 20, 2023 | 11:29 PM IST
Draft Data Bill gets Cabinet ‘protection’

कानून के मुताबिक 18 साल से कम उम्र के उपयोगकर्ताओं के निजी डेटा का इस्तेमाल करने के लिए डिजिटल मंचों को माता-पिता या कानूनी अभिभावक की ‘सत्यापित सहमति’ लेनी अनिवार्य होगी

डिजिटल निजी डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023 के तहत बच्चों के डेटा इस्तेमाल करने के लिए माता-पिता की सहमति अनिवार्य बनाए जाने के मुद्दे पर बड़े प्रौद्योगिकी मंच सरकार से संपर्क कर सकते हैं। सूत्रों के अनुसार इस प्रावधान ने सब तक डिजिटल सेवाएं पहुंचाने, निजता और बच्चों की सुरक्षा के लिहाज से इसके अनपेक्षित परिणामों की आशंका के चलते चिंताजनक स्थिति बना दी है।

केंद्र सरकार ने पिछले सप्ताह इस कानून को अधिसूचित किया था। इसके मुताबिक 18 साल से कम उम्र के उपयोगकर्ताओं के निजी डेटा का इस्तेमाल करने के लिए डिजिटल मंचों को माता-पिता या कानूनी अभिभावक की ‘सत्यापित सहमति’ लेना अनिवार्य होगा। विधेयक को लेकर किए गए सार्वजनिक परामर्श के दौरान यह प्रावधान सबसे विवादास्पद मुद्दों में से एक था।

हालांकि अब इस नियम को लागू कर दिया गया है लेकिन तकनीकी दिग्गज, नियम में छूट की मांग करेंगे जिसके साथ ही सरकार क्रियान्वयन के तरीके और संभावित छूट निर्धारित कर सकती है।

उद्योग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘अभिभावकों की सत्यापित की जाने वाली सहमति सबसे चिंताजनक है। यह बच्चे और माता-पिता को बहुत अधिक जोखिम में डाल सकता है। इसके चलते भारतीय उपयोगकर्ताओं को कई ऐप्स पर आईडी दस्तावेज जमा कराने पड़ सकते हैं जिसके चलते उनकी सुरक्षा जोखिम में हो सकती है। यह सुरक्षा की समस्या और अति नियमन के मामले को हल करने का एक अजीब तरीका है।’

उसी खंड में बच्चों के निजी डेटा की प्रोसेसिंग के बारे में भी बात की गई है और यह कानून बच्चों पर निगाह रखने या उनके व्यवहार की निगरानी करने के साथ ही बच्चों के लिए लक्षित विज्ञापन पर भी प्रतिबंध लगाता है। अधिकारी ने कहा कि यह बाल सुरक्षा से जुड़ी प्रणाली में बाधक बन सकता है।

कुछ सोशल मीडिया मंच एआई मॉडल के साथ व्यवहार से जुड़े डेटा की निगरानी करते हैं ताकि अज्ञात वयस्क बच्चों को संदेश न भेज पाएं और उन्हें रोका जा सके। मकसद यह है कि खास उद्देश्य से संदेश भेजने वालों की पहुंच नाबालिगों तक न हो। अधिकारी के अनुसार निगरानी पर पूर्ण प्रतिबंध से इसकी कार्यक्षमता बाधित हो सकती है। उन्होंने कहा कि लक्षित विज्ञापनों को रोकने से बच्चे अप्रासंगिक और अनुचित विज्ञापनों के संपर्क में आ सकते हैं।

उन्होंने कहा, ‘लाखों किशोर लड़के और लकड़ियां अपने माता-पिता को सिखा रहे हैं कि कंप्यूटर का प्रभावी ढंग से इस्तेमाल कैसे किया जाए। इन्हें अशक्त बनाना एक खराब विचार है और यह उन लड़कियों के लिए विशेष रूप से खराब है जिनकी आमतौर पर सूचना संचार प्रौद्योगिकियों (आईसीटी) तक समान रूप से पहुंच नहीं होती है। कुल मिलाकर, अभिभावकों की सत्यापन वाली सहमति इंटरनेट को नियमन के दायरे में लाने का एक अनुचित तरीका है।’

उद्योग के एक अन्य सूत्र ने कहा, ‘माता-पिता की सहमति के प्रावधान के लिए हमें उपयोगकर्ताओं की उम्र और माता-पिता तथा बच्चे के रिश्ते को सत्यापित करने के लिए आईडी प्रमाण जैसे निजी डेटा बड़ी मात्रा में एकत्र करना होगा। यह निजता कानूनों के सामान्य मौलिक उद्देश्य के विपरीत होगा जिसमें कम से कम डेटा लेने पर जोर दिया गया है।’ इस बारे में गूगल, मेटा और एमेजॉन को भेजे गए ईमेल का कोई जवाब नहीं मिला।

लिंक्डइन इंडिया में निदेशक और कंट्री लीड (लीगल, पब्लिक पॉलिसी और इकनॉमिक ग्राफ) अदिति झा कहती हैं, ‘हम अपने मंच को विश्वसनीय और पेशेवर बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं और हम जिस देश में काम करते हैं वहां के कानून का सम्मान करते हैं जो हम पर लागू होता है। किसी भी नए कानून की तरह, हम अपने सदस्यों और कारोबार पर पड़ने वाले प्रभाव को समझने के लिए इसकी समीक्षा कर रहे हैं।’

सार्वजनिक परामर्श के दौरान, कई हितधारकों ने अन्य भौगोलिक क्षेत्रों के कानूनों के अनुरूप ही डेटा इस्तेमाल की सहमति के लिए न्यूनतम आयु को कम करके 16 वर्ष तक करने की मांग की थी। अमेरिका और ब्रिटेन में, 13 वर्ष से अधिक उम्र के लोग व्यक्तिगत डेटा की प्रोसेसिंग के लिए सहमति दे सकते हैं।

विधेयक के अंतिम संस्करण में, सरकार ने सहमति की आवश्यकता से मंचों की कुछ श्रेणियों के लिए संभावित छूट के लिए एक शर्त जोड़ी। हालांकि, केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिकी एवं सूचना प्रौद्योगिकी राज्यमंत्री राजीव चंद्रशेखर ने कहा है कि सोशल मीडिया मंच इस तरह की छूट की पात्रता नहीं रखते हैं।

चंद्रशेखर ने बिज़नेस स्टैंडर्ड के साथ एक साक्षात्कार में कहा, ‘हमने कहा है कि क्या ऐसे डिजिटल मंच हैं जो इंटरनेट पर बच्चों के लिए सुरक्षित क्षेत्र बनाने पर असाधारण रूप से अपना ध्यान केंद्रित करते हैं। कोई भी सोशल मीडिया मंच निश्चित रूप से इसकी पात्रता नहीं रखता है क्योंकि वे कोई केवाईसी नहीं करते हैं और वे नहीं जानते कि उनके ऐप का उपयोग कौन कर रहा है और इनका गुमनाम तरीके से अधिक उपयोग होता है।’

First Published - August 20, 2023 | 11:29 PM IST

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