पिछले कुछ सालों में टेक्नोलॉजी ने हमारी जिंदगी को इतना बदल दिया है कि अब हम सोचने और सीखने के तरीके पर भी सवाल उठने लगे हैं। 2008 में जब ‘द इटलांटिक’ मैगजीन ने अपने कवर स्टोरी में सवाल उठाया था, “क्या गूगल हमें बेवकूफ बना रहा है?”,
उस वक्त लोगों के बीच इसको लेकर बहस छिड़ गई थी। इसके लेखक निकोलस कार ने उस समय तर्क दिया था कि सर्च इंजन की वजह से लोग तथ्यों को याद रखने या गहराई से सोचने की आदत खो रहे हैं, क्योंकि हर जवाब बस एक क्लिक की दूरी पर है। लेकिन आज, करीब 17 साल बाद, एक नई तकनीक ने इस बहस को और गहरा कर दिया है—जेनरेटिव आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), जैसे ChatGPT या दूसरे AI टूल्स।
यह तकनीक न सिर्फ जानकारी देती है, बल्कि उसे बना सकती है, एनालिसिस कर सकती है और उसका सारांश भी तैयार कर सकती है। सवाल अब यह है कि क्या ChatGPT जैसी तकनीक हमें और आलसी या कमजोर दिमाग वाला बना रही है?
जो पिछले दो दशकों से AI के साथ काम कर रहे कम्युनिकेशन सेक्टर से जुड़े एक प्रोफेसर का कहना है कि ChatGPT जैसी तकनीक ने इंटरनेट यूजर्स के सामने एक नया रास्ता खोल दिया है। यह तकनीक न सिर्फ हमारी याददाश्त को आउटसोर्स कर रही है, बल्कि हमारी सोचने की क्षमता को भी प्रभावित कर रही है। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह हमें कमजोर बना रही है या फिर हमें और स्मार्ट होने का मौका दे रही है? आइए, इस बदलाव को गहराई से समझते हैं।
ChatGPT जैसी जेनरेटिव AI तकनीक ने जानकारी तक पहुंचने और उसे समझने के तरीके को पूरी तरह बदल दिया है। पहले लोग सर्च इंजन पर जाकर कई सोर्स से जानकारी इकट्ठा करते थे, अलग-अलग नजरिए को समझते थे और फिर खुद निष्कर्ष निकालते थे। लेकिन अब ChatGPT कुछ सेकंड में ही साफ-सुथरे और पॉलिश्ड जवाब दे देता है। ये जवाब भले ही हमेशा सही न हों, लेकिन ये इतने आसान और तेज होते हैं कि लोग इन्हें तुरंत स्वीकार कर लेते हैं।
इस बदलाव का असर हमारे काम करने और सोचने के तरीके पर साफ दिख रहा है। उदाहरण के लिए, अब लोग लंबे लेख पढ़ने या जटिल सवालों पर गहराई से विचार करने की बजाय ChatGPT से सीधा जवाब मांग लेते हैं। यह सुविधा भले ही समय बचाती हो, लेकिन यह हमारी सोचने की क्षमता को कमजोर कर सकती है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि अगर हम हर काम के लिए AI पर निर्भर हो जाएं, तो हमारी गंभीर सोच, जटिल समस्याओं को हल करने की क्षमता और जानकारी को गहराई से समझने की आदत कमजोर पड़ सकती है।
हालांकि, इस बारे में अभी ज्यादा रिसर्च नहीं हुआ है, लेकिन यह डर सही हो सकता है कि AI का ज्यादा इस्तेमाल हमारी बौद्धिक जिज्ञासा को कम कर सकता है, ध्यान देने की क्षमता को घटा सकता है और हमें AI पर इतना निर्भर बना सकता है कि हमारी सोचने की क्षमता धीरे-धीरे कम हो जाए।
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AI के इस्तेमाल से जुड़ा एक और खतरा है, जिसे मनोविज्ञान में डनिंग-क्रूगर प्रभाव कहते हैं। यह एक ऐसी स्थिति है, जिसमें कम जानकारी या कम स्किल वाले लोग अपनी क्षमता को लेकर ज्यादा आत्मविश्वास रखते हैं, क्योंकि उन्हें यह नहीं पता कि वे कितना कम जानते हैं। दूसरी ओर, ज्यादा जानकारी वाले लोग अपनी क्षमता को लेकर कम आत्मविश्वास दिखाते हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि अभी बहुत कुछ सीखना बाकी है।
ChatGPT के संदर्भ में यह प्रभाव कुछ इस तरह काम करता है। कुछ लोग AI का इस्तेमाल अपनी सोच को पूरी तरह बदलने के लिए करते हैं। वे ChatGPT के जवाबों को बिना सोचे-समझे स्वीकार कर लेते हैं और सोचते हैं कि वे किसी विषय को अच्छे से समझ गए हैं। लेकिन असल में, वे सिर्फ AI के बनाए जवाब दोहरा रहे होते हैं। इससे उनका आत्मविश्वास तो बढ़ता है, लेकिन उनकी असल समझ कमजोर रहती है। इसे एक्सपर्ट “माउंट स्टूपिड” की चोटी कहते हैं, जहां लोग बिना ज्यादा मेहनत किए खुद को समझदार मान लेते हैं।
वहीं, कुछ लोग AI का इस्तेमाल अपनी सोच को बेहतर करने के लिए करते हैं। वे ChatGPT को एक टूल की तरह देखते हैं, जो उनकी जिज्ञासा को बढ़ाता है, नए विचार देता है और जटिल चीजों को समझने में मदद करता है। ऐसे लोग AI के जवाबों को आलोचनात्मक नजरिए से देखते हैं, उनमें कमियां ढूंढते हैं और दूसरी जानकारी से उनकी तुलना करते हैं। यानी, AI का इस्तेमाल करने का तरीका यह तय करता है कि यह हमें कमजोर बनाएगा या मजबूत।
ChatGPT की लोकप्रियता ने इस बहस को और तेज कर दिया है। इस तकनीक ने रिलीज होने के सिर्फ दो महीने में 10 करोड़ यूजर्स का आंकड़ा पार कर लिया था, जो दिखाता है कि लोग कितनी तेजी से इसे अपना रहे हैं। लेकिन इस तेजी ने हमें एक दोराहे पर लाकर खड़ा कर दिया है। एक रास्ता वह है, जहां हम अपनी सोच को पूरी तरह AI को सौंप देते हैं। दूसरा रास्ता वह है, जहां हम AI को अपने दिमाग का साथी बनाते हैं और उसकी मदद से अपनी क्षमताओं को बढ़ाते हैं।
एक्सपर्ट्स का मानना है कि भविष्य में वही लोग कामयाब होंगे, जो AI का इस्तेमाल अपनी सोच को बेहतर बनाने के लिए करेंगे। जो लोग AI को अपनी सोच का विकल्प बना लेंगे, वे आसानी से नौकरियों में पिछड़ सकते हैं। दूसरी ओर, जो लोग AI के साथ मिलकर काम करेंगे, वे ऐसे नतीजे हासिल कर सकते हैं, जो न तो इंसान अकेले कर सकता है और न ही AI।
इसलिए, यह सवाल नहीं है कि हम ChatGPT का इस्तेमाल कर रहे हैं या नहीं। असल सवाल यह है कि हम इसका इस्तेमाल कैसे कर रहे हैं। क्या हम इसे अपनी सोच को आसान बनाने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं, या फिर इसे अपनी सोच का आधार बना रहे हैं? यह तय करेगा कि हमारा दिमाग कितना तेज रहेगा।
(एजेंसी के इनपुट के साथ)