भारत में वैश्विक दिग्गज टेक कंपनियों को सरकार, भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई), संसदीय समितियों और व्यावसायिक लॉबियों, विशेष रूप से दूरसंचार कंपनियों की ओर से भारी जांच का सामना करना पड़ रहा है।
यूरोप की तरह भारत भी देश में डिजिटलीकरण की दौड़ में इन कंपनियों के बढ़ते वर्चस्व पर लगाम लगाने की कोशिश कर रहा है।
पिछले महीने, वित्तीय संसदीय स्थायी समिति ने डिजिटल बाजार में महत्त्वपूर्ण बिचौलियों की जांच करने के लिए एक नए डिजिटल प्रतिस्पर्धा कानून की सिफारिश की थी, जिसकी पहचान उनके राजस्व, बाजार पूंजीकरण, व्यवसायों और अंतिम उपयोगकर्ताओं की संख्या के आधार पर की जाएगी, जिसमें गूगल, मेटा, ऐपल इंक और यहां तक कि एमेजॉन भी स्पष्ट रूप से निशाने पर है।
यह निशाना इस बात से समझा जा सकता है कि हाल ही में सीसीआई ने गूगल पर गूगल प्ले स्टोर के नियमों के माध्यम से प्रतिस्पर्धा कानून का कथित रूप से उल्लंघन का आरोप लगाया था और भारी जुर्माना लगाने का आदेश दिया था।
गूगल प्ले स्टोर ऐप डेवलपर्स को ऐंड्रॉयड डिवाइस पर मौजूद रहने के लिए गूगल के माध्यम से साइन अप करने के अलावा कोई विकल्प नहीं देता है।
सरकार ने डिजिटल अर्थव्यवस्था को विनियमित करने के लिए तीन विधेयकों को प्रस्तावित किया है। प्रस्तावित दूरसंचार विधेयक में मेटा के स्वामित्व वाले व्हाट्सऐप जैसे ओटीटी संचार प्लेटफॉर्म को लाइसेंस व्यवस्था के तहत लाने की योजना है, ताकि सभी के लिए समान अवसर सुनिश्चित किया जा सके, जिसकी दूरसंचार कंपनियां मांग कर रही हैं। अन्य विधेयक डेटा गोपनीयता और आईटी अधिनियम में सुधार को लेकर प्रस्तावित हैं।
दूरसंचार कंपनियां भी चाहती हैं कि बड़ी टेक कंपनियां शुल्क का भुगतान करें और वित्तीय साझेदारी करें क्योंकि, टेक कंपनियां ग्राहकों को सामग्री प्रदान करने के लिए अधिकांश टेलीकॉम बैंडविड्थ का उपयोग करती हैं।