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भारतीय कॉमिक्स में आ रहा है सुधार

PTI

- December,19 2018 8:13 AM IST

(हेमाग्र्य बल)

नयी दिल्ली, आठ दिसम्बर(भाषा) बैटमैन, सुपरमैन, डेडपूल और हल्क जैसे कॉमिक किताबों के हीरो ‘दिल्ली कॉमिक कॉन’ में हर स्टॉल पर मौजूद हैं, पर सवाल यह है कि भारतीय कॉमिक्स के नायक कहां हैं? विदेशी नायकों की भारी-भरकम मौजूदगी में हिंदुस्तानी हीरो कहां सिमटे हुये हैं?

इसका जवाब भी है। वह यह, कि जो लोग उन्हें चाहते हैं, वो उनके लिए बहुत दूर भी नहीं है बस नजर घुमाने भर का फेर है। कम से कम दिल्ली में चले रहे कॉमिक कॉन से तो यही संदेश मिल रहा है।

कॉमिक्स से जुड़े इस मेले के आठवें संस्करण में कई लोग अपनी मौजूदगी दर्ज करा रहे हैं। उनसे मिलने के बाद भारतीय कामिक्स के रचनाकारों की यह समझ बनी है कि यहां की खुश्बू और रंग लिए कॉमिक्स को गंभीरता से लेने का वक्त दस्तक दे रहा है।

‘मेगा देसी कॉमिक्स’ के अनंत ने पीटीआई-भाषा को बताया, "मुझे उम्मीद है कि यह बेहतर हो जाएगा, मुझे आशा है कि लोग इंडी-कॉमिक्स को और गंभीरता से लेना शुरू कर देंगे।’’

इस मेले में लगभग 200 प्रतिभागी हिस्सा ले रहे हैं और वे अपनी कॉमिक्स, किताबें, परिधान और वस्तुओं को बेचने के लिए यहां आये हुये हैं।

कॉमिक कॉन इंडिया के संस्थापक जतिन वर्मा स्वीकार करते हैं कि बैटमैन, स्पाइडरमैन और एवेंजर्स की तरह सुपरहीरो को लोग बहुत चाव से देखते हैं क्योंकि वे उनके बारे में अच्छे से जानते है।

वर्मा ने कहा, पर जब भारतीय हिस्सेदारी की बात आती है तो ग्राहकों में महज कौतूहल और सतही जानकारी की इच्छा ही दिखती है।

उन्होंने कहा, "क्योंकि वे (लोग) नहीं जानते कि नयी सामग्री कैसी है। वे केवल चाचा चौधरी या राज कॉमिक्सों के बारे में जानते हैं। उन्हें नहीं पता कि ये कॉमिक्स आज भी प्रकाशित हो रहे हैं या नहीं’’

चेरियट कॉमिक्स के अनिरुद्ध का मानना ​​है कि उन्होंने इस बाजार में 2012 में कदम रखा और तब से बाजार बेहतर ही हुआ है।

उन्होंने कहा "उस समय (बाजार) बहुत ही सिमटा हुआ था। बीते चार साल में हमें बहुत सारा पैसा बहाना पड़ा और साल दर साल नुकसान होता गया। पर अब ये बेहतर हो गया है। बल्कि रोज ब रोज इसमें इजाफा ही हो रहा है। हम चाहते हैं कि यह और बड़ा बने। हम चाहते हैं कि लोग अधिक से अधिक इंडी-कॉमिक्स पढ़ें।’’

कार्टून चरित्र बनाने वाले बेंगलूर से आये मोहसिन को भी लगता है कि लोग अब इंडी-कॉमिक्स में अधिक रूचि ले रहे हैं। उन्होंने कहा, "अब बहुत अच्छी संभावनाएं हैं, लोग पहले से अधिक योगदान और निवेश करने के इच्छुक हैं,"

ब्लैफ्ट प्रकाशन के राकेश ने कहा कि 1980 और 1990 के दशक में टेलीविज़न के आने से पहले लुगदी कथा साहित्य हर जगह देखने को मिलता था। उन्होंने कहा, "कभी-कभी, मैं थोड़ा दुखी हो जाता हूं कि लोग स्थानीय कलाकारों और स्थानीय लेखकों की तरफ देखते तक नहीं हैं।"

लुगदी साहित्य के भविष्य के बारे में बात करते हुए, उन्होंने कहा, "लोग दीवाना बना देने वाली चीजें बनाते रहेंगे.. चाहें लोग उन्हें खरीदें या नहीं।"

यह दो दिवसीय मेला नौ दिसम्बर तक चलेगा।

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