देश-विदेश में मशहूर ग्वालियर और चंबल के सैंडस्टोन कारोबार को महामारी के दौरान जो झटका लगा था, उसका असर काफी हद तक देसी बाजार ने कम कर दिया है। कोरोना से जुड़ी बंदिशें खत्म होने के कारण देश में इस पत्थर की मांग बढ़ रही है। विदेश में भी मांग है मगर आयातक ऑर्डर लेने से बच रहे हैं क्योंकि कंटेनर की कमी के कारण भाड़ा बहुत बढ़ गया है। आयातक भाड़ा कम होने के इंतजार में ऑर्डर टाल रहे हैं। बहरहाल देश में रियल एस्टेट का काम बढऩे से निकली देसी मांग इस उद्योग को बहुत सहारा दे रही है।
कच्चे माल की कमी
हालांकि अब खदानों का ठप रहना कारोबारियों के लिए चुनौती है क्योंकि उसकी वजह से कच्चे माल की किल्लत हो रही है। इलाके में सैंडस्टोन की 400 छोटी-बड़ी इकाइयां हैं। सैंडस्टोन कारोबारियों के मुताबिक कोरोना से पहले जिनका सालाना कारोबार 200 से 250 करोड़ रुपये था, अब यह घटकर 100 से 150 करोड़ रुपये रह गया है। अगर पर्याप्त मात्रा में खदानें चलें तो सालाना कारोबार 500 से 600 करोड़ रुपये पहुंचने की संभावना है। मध्य प्रदेश स्टोन एसोसिएशन के संरक्षक और ग्वालियर में स्टोन निर्यातक भानुप्रताप सिंह राठौर भी कच्चे माल की किल्लत से परेशान हैं। वह कहते हैं कि देश-विदेश से भरपूर ऑर्डर मिलने भी लगें तो कच्चे माल की कमी के कारण कारोबारी उनकी आपूर्ति ही नहीं कर पाएंगे।
पूरी दुनिया में मांग
ग्वालियर और चंबल के इलाके में सफेद और हल्के पीले रंग का पत्थर मिलता है। इसमें फिसलन बहुत कम होती है और इस तरह का सैंडस्टोन दुनिया में बहुत कम पाया जाता है। यही वजह है कि ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, इटली, यूरोप के अन्य देशों तथा पश्चिम एशिया में इसकी जबरदस्त मांग है। उन देशों में इसका इस्तेमाल स्विमिंग पूल, बगीचों और फार्महाउस में फर्श बिछाने के लिए किया जाता है। इसका इस्तमाल सीढिय़ों, छत और दीवारों पर भी किया जाता है। इसकी मांग इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि यह गर्मी में अधिक गर्म नहीं होता और सर्दियों में ज्यादा ठंडा नहीं होता। गुणवत्ता और आकार के हिसाब से इस पत्थर की कीमत 500 रुपये से 1,500 रुपये प्रति वर्ग मीटर है।
निर्यात पर भाड़े का घात
ग्वालियर-चंबल रीजन स्टोन एसोसिएशन के अध्यक्ष और बामौर के सैंडस्टोन निर्यात के के मित्तल ने बताया कि उनके इलाके में पडावाली और रंछौली की खदानों से स्टोन आता है, जिसे मिंट स्टोन कहते हैं। इस पत्थर की विदेश में सबसे अधिक मांग रहती है मगर आयात ऑर्डर लेने से कतरा रहे हैं क्योंकि भाड़ा कई गुना बढ़ गया है। इस समय भाड़ा 7,000 से 7,500 डॉलर प्रति कंटेनर है, जो पहले 1,500 से 2,000 डॉलर ही रहता था। भाड़ा ज्यादा होने से आयातकों को पत्थर काफी महंगा पड़ रहा है। इसलिए वे बहुत जरूरी होने पर ही ऑर्डर दे रहे हैं। उद्योग के संगठन स्टोन पार्क ग्वालियर के अध्यक्ष सत्यप्रकाश शुक्ला कहते हैं कि कंटेनर का भाड़ा हरेक उद्योग के लिए बढ़ा है मगर पत्थर पर इसकी ज्यादा मार इसीलिए पड़ रही है क्योंकि पत्थर में अधिक वजन होता है। इसीलिए ज्यादा भाड़ा देने पर भी कम कीमत का पत्थर जा पाता है। जाहिर है कि परिवहन लागत काफी पड़ जाती है। अन्य उत्पादों की मात्रा कंटेनर में ज्यादा आ जाती ह और उसी के हिसाब से कीमत भी ज्यादा होती है, जिससे कुल कीमत पर भाड़े की लागत 10 से 15 फीसदी ही बढ़ती है। शुक्ला ने कहा कि ग्वालियर से मुंबई बंदरगाह तक स्टोन पहुंचाने का भाड़ा 5 लाख से बढ़कर 5.15 लाख रुपये हुआ है और मुंबई से विदेश माल भेजने का भाड़ा 2 लाख रुपये से बढ़कर 6 लाख रुपये प्रति कंटेनर हो गया। चूंकि भाड़ा आयातकों को देना होता है, इसलिए फिलहाल वे बड़े ऑर्डर देने से बच रहे हैं और परियोजना के लिए जरूरी माल ही मंगा रहे हैं।
देसी मांग का सहारा
ऐसे में देसी रियल्टी उद्योग की सुधरती हालत सैंडस्टोन कारोबारियों को राहत दे रही है। लॉकडाउन खत्म होने और अर्थव्यवस्था सुधरने से रियल एस्टेट में हलचल बढ़ी है, जिससे पगडंडी, पार्क, फार्म हाउस, बहुमंजिला इमारतें और मकान बनाने में पत्थरों की मांग बढ़ रही है। मित्तल ने कहा कि इस साल घरेलू मांग 25 से 30 फीसदी बढ़ी है। मगर कारोबारियों का कहना है कि कारोबार बढऩे के लिए निर्यात ऑर्डर आना और उनकी डिलिवरी होना बहुत जरूरी है क्योंकि देसी बाजार में कम कीमत का पत्थर ज्यादा इस्तेमाल होता है, जबकि निर्यात में अधिक कीमत वाला पत्थर जाता है।