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ओखला के उद्योगों के काम में दिख रही तेजी

Last Updated- December 12, 2022 | 8:01 AM IST

एक साल पहले कोरोनावायरस महामारी की वजह से लगाए गए लॉकडाउन का दिल्ली के ओखला औद्योगिक क्षेत्र के कारखानों पर गहरा असर पड़ा था। जरूरी सेवाओं को छोड़कर सभी कारखाने बंद हो गए। इन कारखानों में काम करने वाले कामगार अपने गृहनगर चले गए और जो बचे रह गए थे उन्हें बिना वेतन के रहना पडऩा और उनको इस बात का आश्वासन भी नहीं था कि उनकी नौकरी बनी रहेगी।
लेकिन अब खाली सड़कें, धूल भरे खाली ट्रक और कामगारों की कॉलोनियों में वीरानगी का दृश्य नजर नहीं आ रहा है। ओखला औद्योगिक क्षेत्र में फिर से हलचल दिखाई दे रही है। सड़कों पर माल ढुलाई करने वाली गाडिय़ों की कतार लगी है। फुटपाथ पर खाने-पीने के सामान बेचने वालों के पास भीड़ उमड़ रही है और कारखानों से फिर आवाज बाहर निकलने लगी हैं। सूक्ष्म, लघु और मझोले उद्यम मंत्रालय (एमएसएमई) की 2019-20 की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली में 9.36 लाख पंजीकृत एमएसएमई हैं जिनमें लगभग 23 लाख कुशल और अर्ध-कुशल श्रमिकों को रोजगार मिला हुआ है।
ओखला में बड़ी तादाद में एमएसएमई हैं और यहां प्लास्टिक उत्पादों, परिधानों और कपड़े से लेकर विद्युत उपकरण, रसायन और सिंथेटिक्स तक के उद्यम शामिल हैं। इसके अलावा, यह क्षेत्र धीरे-धीरे अक्षय ऊर्जा कंपनियों, विद्युत वाहन निर्माताओं आदि के लिए स्टार्टअप का एक कॉरपोरेट केंद्र बनता जा रहा है।
प्लास्टिक की कंपनी आलोक मास्टरबैचेज के प्रबंध निदेशक विक्रम भदौरिया का कहना है, ‘अप्रैल 2020 एक खराब महीना था। इसके बाद धीरे.धीरे सुधार की रफ्तार बढ़ी। हमने दूसरों के मुकाबले काफी पहले ही अपना काम शुरू कर दिया क्योंकि हम आवश्यक सेवाओं से जुड़े थे। हमारी कमाई भी बढ़ी है लेकिन मुनाफे पर गंभीर असर पड़ा है क्योंकि सामान की कीमतें, माल ढुलाई, लॉजिस्टिक्स और निर्यात की लागत बढ़ गई है।’
भदौरिया का कहना है कि दिल्ली और तीन अन्य राज्यों में उनके कारखाने पिछले साल अप्रैल अंत तक खुल गए क्योंकि वे मेडिकल उद्योग को प्लास्टिक पैकेजिंग की आपूर्ति करते थे। दक्षिण पूर्व एशिया और यूरोपीय बाजारों में निर्यात करने वाले भदौरिया कहते हैं, ‘हमारा निर्यात अब भी कई तरह की समस्याओं का सामना कर रहा है क्योंकि कंटेनर की कमी के कारण माल ढुलाई लागत बढ़ गई है। दुनिया भर में चरणबद्ध लॉकडाउन ने वैश्विक स्तर पर लॉजिस्टिक्स को प्रभावित किया है।’
कई उद्योगों को निर्यात लॉजिस्टिक्स परेशान कर रहा है जबकि कुछ को कंटेनर की कमी का सामना करना पड़ रहा है वहीं कुछ अन्य अपने प्रमुख बाजारों में बढ़ी हुई माल ढुलाई की लागत को देख रहे हैं। इलेक्ट्रिक केबल और तार निर्माता केईआई इंडस्ट्रीज लिमिटेड के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक अनिल गुप्ता कहते हैं, ‘कम दूरी के लिए अब लागत अधिक है। परिवहन की लागत 200 डॉलर-250 डॉलर प्रति यूनिट से बढ़कर अब 800 डॉलर-1000 डॉलर प्रति यूनिट हो गई है।’
भदौरिया का कहना है कि उनकी कंपनी को उम्मीद है कि अगली तीन से चार तिमाहियों में वृद्धि का स्तर कोविड से पहले के स्तर पर पहुंच जाएगा। हालांकि, कोविड के दौर से पहले के स्तरों तक वृद्धि का बढऩा काफी मुश्किल लगता है। ओखला के बिजली उपकरण उद्योग में भी इसी तरह की वृद्धि नजर आ रही है। इस क्षेत्र को भी ‘आत्मनिर्भर भारत’ की पहल के तहत सरकार की ओर से घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा मिलने की भी उम्मीद है। करीब 70 फीसदी बिजली उपकरण उद्योग में एमएसएमई जुड़ा है।
गुप्ता का कहना है, ‘हम आने वाले छह महीनों में मांग की काफी उम्मीद कर रहे हैं क्योंकि सरकार द्वारा घोषित बुनियादी ढांचा परियोजनाओं पर अमल होना शुरू हो गया है। इन्फ्रा परियोजनाओं के साथ ही सीमेंट, इलेक्ट्रिक उपकरण, स्टील आदि क्षेत्रों की भी मांग बढ़ जाती है।’ गुप्ता कहते हैं, ‘सरकार बुनियादी ढांचा परियोजनाओं पर जितना अधिक खर्च करती है या देती है उतना ही संबद्ध क्षेत्रों में विकास होता है।’ हालांकि सभी इतने उम्मीद में नहीं हैं। परिधान और कपड़े के कारखाने अब भी घाटे में हैं और उनका भविष्य अंधकारमय है। ओखला फेज-2 में मोनिका गारमेंट्स के अनिल वर्मा कहते हैं कि मई 2020 से कम से कम सितंबर तक ऑर्डर आने बंद हो गए और ओखला के परिधान उद्योग को मूल कीमत से महज 10 फीसदी कीमत पर उत्पादों को बेचना पड़ा। वर्मा परिधान निर्यातक संगठन के प्रमुख भी हैं।
वर्मा कहते हैं, ‘सबसे पहले, खरीदारों ने भुगतान बंद कर दिया जिसके कारण निर्माण प्रक्रिया रूक गई और उसके बाद भविष्य के ऑर्डर रोक दिए गए। उद्योग को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। कई निर्यातकों ने प्रमुख कपड़ों के ब्रांडों द्वारा ऑर्डर रद्द किए जाने के बाद खुद को दिवालिया घोषित कर दिया।’
जबकि अन्य क्षेत्रों में चीन का विनिर्माण कौशल भारतीय विनिर्माताओं की वृद्धि पर हावी रहता है जबकि परिधान उद्योग के लिए बांग्लादेश ही भारत का प्रदर्शन फीका कर देता है ।
वर्मा कहते हैं, ‘हम एकदम लाचारी वाली स्थिति में पहुंच गए हैं। परिधान उद्योग देश के सबसे बड़े नियोक्ताओं में से एक है। इस उद्योग में विदेशी मुद्रा और आयात बढ़ रहे हैं जबकि पारंपरिक भारतीय वस्त्र उद्योग में गिरावट आ रही है चाहे वह चमड़ा, हस्तशिल्प या कुछ और हो। हम केंद्र द्वारा टेक्सटाइल पार्कों की घोषणाओं के बारे में सुनते रहे हैं लेकिन अभी कुछ नजर नहीं आ रहा है। वैसे तो सरकार को घरेलू उद्योग का समर्थन करना चाहिए और आयात को प्रोत्साहित करना चाहिए।’
हालांकि उद्योग अब भी अपने नुकसान का अंदाजा लगा रहा है और सुधार की राह स्पष्ट हो रही है। कई प्रवासी मजदूर काम पर वापस आ गए हैं और ओखला की श्रमिक कॉलोनियों में फिर से रौनक आ गई है। हालांकि काम करने की शैली अब अलग है। अब मास्क लगाकर, शारीरिक दूरी को बरकरार रखते हुए काम हो रहा है। कई कारखाना मालिकों को पहले की तरह एक ही कर्मचारियों की संख्या बनाए रखने की कोशिश की है जबकि शारीरिक दूरी को सुनिश्चित करने के लिए कई बदलाव भी किए गए हैं।
ओखला फेज-1 के एक कारखाने में काम करने वाले एक कामगार का कहना है, ‘जब तक मेरे पास नौकरी है तब तक सब कुछ संभाला जा सकता है।’ उनके आसपास खड़े अन्य लोग भी सहमत हैं, लेकिन वे मजदूरी में कमी या पालियों  में नौकरी से जुड़ी अपनी परेशानियों को भी साझा करते हैं। लेकिन छोटे उद्योगों और दिहाड़ी कमाने वालों के लिए आज भी सबसे महत्त्वपूर्ण मंत्र यही है कि ‘कुछ न होने से तो बेहतर है।’

First Published - February 21, 2021 | 11:20 PM IST

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