उत्तर प्रदेश के करहल विधानसभा क्षेत्र के मखानपुर गांव के एक किसान जितेंद्र कुमार को उम्मीद है कि अगर समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव सत्ता में आते हैं तो वह किसानों को मुफ्त बिजली देंगे। अखिलेश पहली बार करहल से विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं। उनकी पार्टी के घोषणापत्र में कहा गया है कि घरेलू उपभोक्ताओं को 300 यूनिट मुफ्त बिजली देने के लिए घर-घर अभियान चलाया जाएगा। जितेंद्र कुमार कहते हैं, ‘हमें एक दिन में केवल 12 घंटे की बिजली मिल रही है। हम एक महीने में करीब 2,200 रुपये ट्यूबवेल का बिल भरते हैं। हमें उम्मीद है कि अखिलेश यादव हमारे लिए कुछ अच्छा करेंगे।’
आगरा से इटावा और मैनपुरी, जो मुलायम सिंह यादव का गढ़ कई सालों से रहा है, वहां के ग्रामीण उपभोक्ता इस बात से संतुष्ट दिखते हैं कि घरेलू बिजली की आपूर्ति 12-18 घंटे तक होती है। लेकिन चिंताजनक बात यह है कि कृषि क्षेत्रों में बिजली आपूर्ति अनियमित होती है और सिंचाई पंप तथा ट्यूबवेल चलाने पर बिजली बिल ज्यादा आता है। मैनपुरी में गृहमंत्री अमित शाह ने पिछले हफ्ते वादा किया था कि उत्तर प्रदेश में फिर से सत्ता में आने के पांच दिनों के भीतर ही किसानों को पांच सालों तक मुफ्त बिजली दी जाएगी।
शाह ने यह वादा ऐसे वक्त पर किया है जब भाजपा शासित केंद्र सरकार ने बिजली वितरण क्षेत्र में सुधार की शुरुआत की है, जिसके तहत प्रमुख प्राथमिकता घाटे में चल रही बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) को दी जाने वाली सब्सिडी पर रोक लगाई जाए। केंद्र सरकार ने बजट 2021 में बिजली वितरण कंपनियों के लिए 3 लाख करोड़ रुपये की सुधार योजना की घोषणा की। यह योजना केंद्र की पहली सुधार योजना ‘उदय’ के बाद आई जो थोड़ी सफलता के बाद 2020 में समाप्त हो गई। केंद्रीय ऊर्जा मंत्री आर के सिंह ने मुफ्त बिजली की घोषणा करने वाले राजनीतिक दलों पर टिप्पणी करते हुए जनवरी में कहा था कि इस क्षेत्र का राजनीतिकरण मुश्किलें बढ़ाने लायक है। 27 जनवरी को स्मार्ट मीटरिंग पर सीआईआई के एक सम्मेलन में सिंह ने कहा था, ‘अगर आप बिजली को किसी वस्तु में तब्दील करेंगे जिसका वितरण आप मुफ्त करने जा रहे हैं और आपकी भुगतान करने की क्षमता भी नहीं है तब देश अंधेरे में चला जाएगा। किसी को भी इस बिजली की कीमत चुकानी ही होगी। अगर राज्य सरकार नहीं चाहती है कि उपभोक्ता भुगतान करें तब उन्हें अपने बजट में इसके लिए भी गुंजाइश बनानी होगी। अगर उसका बजट इसकी अनुमति नहीं देता है तब उसे ऐसी सब्सिडी की घोषणा करने का कोई अधिकार नहीं है जिसका भुगतान वह नहीं कर सकती है।’
बिजली मंत्री की चिंता कई राज्यों के लिए सच है, खासतौर पर उत्तर प्रदेश में जहां इसकी पांच बिजली वितरण कंपनियों में से तीन घाटे में हैं। राज्य के बिजली वितरण क्षेत्र का कुल वित्तीय घाटा 6,610 करोड़ रुपये है। इसका परिचालन घाटा 31 फीसदी के स्तर पर है जो राष्ट्रीय औसत से अधिक है। जब किसी बिजली वितरण कंपनी को सब्सिडी दर पर या मुफ्त में एक निश्चित ग्राहक श्रेणी के तहत बिजली का वितरण करना होता है तब लागत का बोझ अन्य उपभोक्ता श्रेणी में और ज्यादा उद्योग पर पड़ता है ताकि लागत की भरपाई की जा सके। उत्तर प्रदेश में कुछ ऐसा ही हो रहा है।
केंद्रीय बिजली मंत्रालय के डेटा संकलन के मुताबिक उत्तर प्रदेश में कृषि क्षेत्र के लिए बिजली शुल्क 2.9 रुपये प्रति यूनिट है जबकि वाणिज्यिक या औद्योगिक क्षेत्र के लिए यह शुल्क 12.4 रुपये प्रति यूनिट है जो देश में सबसे ज्यादा है। राज्य में बिजली का औसत घरेलू शुल्क 6.3 रुपये प्रति यूनिट है जो सबसे अधिक शुल्क श्रेणी में शामिल है।
राज्य में कृषि क्षेत्र के उपभोक्ताओं के लिए भले ही बिजली शुल्क कम है लेकिन बिजली की आपूर्ति अनियमित है जिसका अर्थ यह है कि जेनसेट चलाने के लिए डीजल पर अतिरिक्त खर्च किया जाएगा। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसानों का कहना है कि उनके घर का बिजली बिल कम है लेकिन खेत के लिए बिजली का खर्च बढ़ जाता है। फिरोजाबाद जिले के डोंकेली गांव के एक किसान चंद्रभान का कहना है, ‘ज्यादातर लोगों के पास मीटर नहीं है। बिना मीटर के जो तयशुदा बिल हम देते हैं उसके मुकाबले मीटर की लागत अधिक होती है। हर वर्ष हम करीब 20,000 रुपये से 25,000 रुपये सालाना का भुगतान करते हैं।’
उत्तर प्रदेश के उदय पोर्टल का दावा है कि ग्रामीण क्षेत्रों में खेती के क्षेत्र और घर के लिए अलग-अलग आपूर्ति की जा रही है और इसके अलावा फीडर मीटरिंग, डीटी मीटरिंग और स्मार्ट मीटरिंग की व्यवस्था भी है। वित्तीय दबाव की वजह से फरवरी में राज्य की वितरण कंपनियों पर बिजली उत्पादन कंपनियों का 9,760 करोड़ रुपये का बकाया है। वितरण कंपनियों का परिचालन घाटा सबसे ज्यादा है जो पिछले कुछ सालों में अधिक बढ़ गया है। राज्य के अपने विभागों पर भी बिजली बिल और सब्सिडी बकाया है जिसका भुगतान वितरण कंपनियों को करना है। राज्य ने अपनी एक बिजली वितरण कंपनी का निजीकरण करने के प्रयास 2020 में किए लेकिन बाद में इस फैसले को वापस ले लिया गया।
केंद्र सरकार बिजली क्षेत्र में सुधार पर जोर दे रही है लेकिन उत्तर प्रदेश में मतदाताओं से किए गए मुफ्त बिजली के वादे से ही नीतियों, राज्य की वित्तीय स्थिति और उस राजनीतिक दल की असली परीक्षा होगी जो देश के इस अहम प्रदेश में सत्ता में आएगी।
