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लडख़ड़ाता स्वास्थ्य क्षेत्र अब लडऩे को तैयार

Last Updated- December 12, 2022 | 10:36 AM IST

कोरोनावायरस महामारी के कारण इस साल में भारत के स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे में अहम बढ़ोतरी हुई है और ऐसा लगता है कि यह क्षेत्र वर्ष 2021 की चुनौतियों से निपटने में और अधिक सक्षम होगा। कोविड-19 के खिलाफ जंग का दायरा बढ़ा है यानी अब इलाज ही नहीं बल्कि इसकी रोकथाम के प्रयास किए जा रहे हैं। देश में वयस्क टीकाकरण की व्यापक एवं विशेष मुहिम की तैयारियां चल रही हैं।
सरकारी अधिकारियों का कहना है कि अगले साल तक भारत के पास कोई टीका चुनने के लिए करीब आधा दर्जन टीके उपलब्ध होंगे क्योंकि बहुत से टीका उमीदवार चिकित्सकीय परीक्षण के अग्रिम चरणों में पहुंच चुके हैं। हालांकि महामारी अभी खत्म नहीं हुई है। मणिपाल हॉस्पिटल्स में इंटरवेंशनल पल्मोनोलॉजी के प्रमुख और कर्नाटक कोविड कार्यदल के एक सदस्य डॉ. सत्यनारायण मैसूर ने कहा, ‘जब भी चेचक से लेकर वाइल्ड पोलियो समेत कोई भी महामारी आई है तो वह कम से कम दो साल बनी रही है। इसलिए छिटपुट संक्रमण जारी रहेगा। हालांकि हम टीकाकरण के नजदीक हैं, लेकिन पूरे विश्व में टीकाकरण होने में दो साल लगेंगे।’
वर्ष 2021 में सरकार के बुनियादी ढांचे की परीक्षा होगी क्योंकि उसने कोविड टीकाकरण कार्यक्रम के लिए शीत भंडारगृह शृंखला लॉजिस्टिक का इंतजाम करने की योजना बनाई है। देश में पहले ही करीब 29,000 शीत भंडार शृंखला केंद्रों, 240 बड़े कूलर्स, 70 बड़े फ्रीजर, 45,000 आइस-लाइन्ड रेफ्रिजरेटर, 41,000 डीप फ्रीजर और 300 सोलर रेफ्रिजरेटर चिह्नित किए जा चुके हैं और राज्यों को विस्तृत दिशानिर्देश जारी किए गए हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय ने देश के व्यापक टीकाकरण कार्यक्रम और भारत की बड़ी चुनाव प्रक्रिया के अनुभवों को इस्तेमाल करने की योजना बनाई है। देश में व्यापक टीकाकरण कार्यक्रम के तहत हर साल 2.4 करोड़ बच्चों को टीके लगाए जाते हैं।
टीकों के लिहाज से इस साल की उपलब्धियों का कोई मुकाबला नहीं है। दुनिया में अभी तक कोई भी टीका पांच साल से कम समय में नहीं बना है। इसका अपवाद केवल गलगंड का टीका है, जिसमें चार साल का समय लगा था। कोविड टीकों को बनाने में मैसेंजर आरएनए से लेकर वायरल वेक्टर समेत बहुत सी तकनीकों का इस्तेमाल किया गया है, जिनसे एचआईवी-एड्स, एल्जाइमर और कैंसर जैसी बीमारियों के इलाज एवं पहचान में भविष्य के वैज्ञानिक विकास का रास्ता तैयार होगा।
इससे भारत में शोध एवं विकास के भविष्य पर भी ध्यान केंद्रित हुआ है। अब इस पर सभी की नजर है कि क्या वर्ष 2021 में इस क्षेत्र में कोई सकारात्मक पहल हो सकती है। जैवतकनीक विभाग में सचिव रेणु स्वरूप ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘हम नीति-निर्माता और मददगार के रूप में बेसिक रिसर्च से संबंधित अंतर-विषयक अनुसंधान पर जोर दे रहे हैं। कोविड-19 के लिए भी अन्य बीमारियों के लिए विकसित प्लेटफॉर्म के इस्तेमाल के बारे में विचार किया जा रहा है।’
नीति आयोग के सदस्य और टीका प्रशासन पर राष्ट्रीय विशेषज्ञ समूह के प्रमुख डॉ. वी के पॉल ने हाल में कहा था कि देश के स्वास्थ्य क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास और डेटा विश्लेषण के लिए संस्थान होने जरूरी हैं। अन्य लोगों को 21वीं सदी का स्वास्थ्य बुनियादी ढांचा विकसित करने के भारत के प्रयासों पर संदेह है।
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के सेंटर ऑफ एडवांस्ड रिसर्च इन वायरोलॉजी के पूर्व प्रमुख जैकब जॉन ने कहा, ‘अगर हम आयुर्वेदिक डॉक्टरों के सर्जरी करने की बात कर रहे हैं तो भारत ने असल सीख नहीं ली है। यह समाधान 21वीं सदी के लिए उपयुक्त नहीं है… हमने आधुनिक चिकित्सा और महामारी विज्ञान नहीं सीखी है।’
पिछले महीने सरकार ने कोविड-19 टीके के शोध एवं विकास के लिए 900 करोड़ रुपये मंजूर किए थे। जेनोवा बायोफार्मास्यूकिल्स, माइनवैक्स, प्रीमास बायोटेक, हेस्टर बायोसाइंस जैसी देसी कंपनियां टीकों पर काम कर रही हैं। हालांकि दवा नियामक भारत बायोटेक, फाइजर ऐंड बायोनटेक और सीरम इंस्टीट््यूट ऑफ इंडिया के तीन टीकों के आपात इस्तेमाल को मंजूरी देने के बारे में विचार कर रहा है।
वर्ष 2020 में भारत की स्वास्थ्य प्रणाली में जो सबसे बड़ा बदलाव आया है और वर्ष 2021 में और तेजी पकड़ सकता है, वह डिजिटलीकरण का तेजी बढऩा है। देश में आपात चिकित्सकों की तादाद सीमित है, इसलिए फोर्टिस जैसी अस्पताल शृंखलाओं ने टेली-आईसीयू शुरू किए हैं। टेलीमेडिसन जैसी तकनीकों को तेजी से अपनाना भी जरूरी था ताकि विकसित होते उपचार के नए तरीकों की जानकारी सुदूरवर्ती इलाकों तक पहुंचाई जा सके। सरकार ने महामारी के बीच ही राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन शुरू किया। विशेषज्ञों का कहना है कि यह कार्यक्रम देश में स्वास्थ्य आंकड़ों की खाई को पाट सकता है। यह कार्यक्रम नागरिकों के लिए स्वैच्छिक है।  इस महामारी ने भारत के स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे की रफ्तार बढ़ा दी है। उदाहरण के लिए इस साल के प्रारंभ में देश में पीपीई किट की भारी किल्लत थी, लेकिन वह जुलाई तक इन किटों का शुद्ध निर्यातक बन गया क्योंकि बहुत सी बड़ी कपड़ा कंपनियों ने उनका विनिर्माण शुरू कर दिया। वेंंटिलेटर, मास्क और सैनिटाइजर के मामले में भी ऐसा ही हुआ है। भारत महामारी की शुरुआत में वेंटिलेटर का आयात कर रहा था। मगर अब उसने हर साल करीब 50,000 वेंटिलेटर बनाने की क्षमता विकसित कर ली है और अब देश निर्यात के अवसर तलाश रहा है। असल में वर्ष 2020 में आयात पर निर्भरता घटाने पर जोर रहा है। चीन के वुहान में कारखाने बंद होने से यह बात सामने आई कि भारत का दवा उद्योग कच्चे माल के लिए कितना दूसरे देशों पर निर्भर है।
महंगी दवाओं के स्थानीय उत्पादन को बढ़ावा देते हुए केंद्रीय मंत्रिमंडल ने नवंबर में दवा उत्पादों के लिए 15,000 करोड़ रुपये की उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना (पीएलआई) को सैद्धांतिक मंजूरी दे दी। सरकार को उम्मीद है कि इस योजना से देश में घरेलू और बहुराष्ट्रीय कंपनियां 50,000 करोड़ रुपये का निवेश करेंगी।
हालांकि भारत ने स्वास्थ्य क्षेत्र में तगड़ी छलांग लगाई है, लेकिन भारत में स्वास्थ्य पर कुल खर्च लगातार नीचे बना हुआ है। यह वर्ष 2018-19 के आंकड़ों के मुताबिक जीडीपी का 1.5 फीसदी था, जबकि यूरोपीय देश स्वास्थ्य पर जीडीपी का 7 से 8 फीसदी खर्च करते हैं। हालांकि आगामी वर्ष में स्वास्थ्य सरकार की प्राथमिकताओं का केंद्र बिंदु रहने और इस पर सार्वजनिक व्यय का एक बड़ा हिस्सा खर्च होने के आसार हैं।

First Published - December 23, 2020 | 11:26 PM IST

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