संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के समय वर्ष 2011 में राष्ट्रीय ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क के रूप में शुरू हुई परियोजना को 2014 में भारतनेट के रूप में एक नई पहचान मिली थी। इसका लक्ष्य भी वही था: देश भर की 2.5 लाख से अधिक ग्राम पंचायतों को एक-दूसरे से जोडऩा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाल के स्वतंत्रता दिवस संबोधन में छह लाख गांवों को 1,000 दिनों के भीतर ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क से जोडऩे की घोषणा के बाद इस परियोजना को एक नया लक्ष्य भी मिल गया है।
विशेषज्ञों का मानना है कि प्रधानमंत्री के इस ऐलान से डेटा की मांग में उछाल आएगी जो उद्योग जगत के लिहाज से बेहद सकारात्मक होगा। पिछली योजनाओं के उलट अब गांवों को जोड़कर अंतिम दौर की कनेक्टिविटी मुहैया कराने पर जोर दिया जाएगा।
ईवाई के तकनीक, मीडिया एवं मनोरंजन और दूरसंचार प्रमुख प्रशांत सिंघल कहते हैं, ‘डेटा खपत में उछाल आने से भारत भविष्य में 2-3 साल आगे बढ़ गया है। ग्रामीण क्षेत्रों में मांग बढऩा सकारात्मक है क्योंकि डेटा खपत पिछले कुछ महीनों में दोगुना बढ़ी है। बढ़त का यह दौर कायम रहने वाला है। वर्ष 2025 तक भारत का कुल डेटा उपभोग दोगुना होने और प्रति उपभोक्ता मासिक 25 जीबी होने का अनुमान है। डिजिटल ढांचे में निवेश करना अब भौतिक ढांचे का विकास करने जितना ही महत्त्वपूर्ण है।’
इसे लेकर निजी क्षेत्र खासा उत्साहित नजर आ रहा है। स्टरलाइट टेक्नोलॉजिज लिमिटेड के समूह मुख्य कार्याधिकारी आनंद अग्रवाल का कहना है कि डिजिटल की तरफ रुझान स्थायी होने से ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल नेटवर्क मुहैया कराने का यह सही समय है। अग्रवाल कहते हैं, ‘इससे ई-शिक्षा, ई-स्वास्थ्य और ई-गवर्नेंस जैसे आवश्यक उपयोगों तक पहुंच को संभव बनाया जा सकेगा। ग्रामीण भारत के सूचना एवं शिक्षा संपन्न होने से वहां के निवासियों के लिए रोजगार एवं उद्यमशीलता के अधिक अवसर भी पैदा होंगे। इससे उन इलाकों में आर्थिक वृद्धि एवं विकास संभव हो सकेगा।’
ग्रामीण दूरसंचार की सबसे बड़ी परियोजना के रूप में देखे जा रहे इस कार्यक्रम का मकसद ऑप्टिकल फाइबर के जरिये देश के हरेक कोने तक ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी मुहैया कराना है।
भारतीय दूरसंचार उपकरण विनिर्माता संघ (टेमा) के मानद चेयरमैन प्रोफेसर एन के गोयल कहते हैं कि ग्रामीण भारत का बड़ा हिस्सा पिछले 70 वर्षों से बुनियादी दूरसंचार संपर्क का इंतजार करता रहा है। अगर सरकार अगले 1,000 दिनों में इस योजना को पूरा करना चाहती है तो उसे अंतिम चरण की कनेक्टिविटी के लिए घरेलू स्तर पर निर्मित मौजूदा 2जी या 3जी तकनीकों का उपयोग करना चाहिए। गोयल कहते हैं, ‘इससे सरकार के मेक इन इंडिया संकल्प को मजबूती मिलेगी और अंतिम चरण की कनेक्टिविटी को भी जल्दी से हासिल करने में मदद मिलेगी।’
भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) को 344 ऑपरेटरों से मिलीं रिपोर्ट बताती हैं कि मई के अंत तक देश भर में ब्रॉडबैंड उपभोक्ताओं की संख्या 68.37 करोड़ थी। सरकारी दूरसंचार कंपनी बीएसएनएल समेत पांच बड़े सेवा प्रदाताओं का इस बाजार के 98.93 फीसदी हिस्से पर कब्जा है।
प्रोफेसर गोयल के मुताबिक भारत के पास ऑप्टिकल फाइबर के विनिर्माण की पर्याप्त घरेलू क्षमता है लेकिन 4जी उपकरणों के लिए वह विदेशी कंपनियों पर आश्रित है। हालांकि भारतीय कंपनियों के भी अगले 12-18 महीनों में 4जी उपकरणों के उत्पादन की क्षमता हासिल कर लेने की उम्मीद है। असल में ऑप्टिकल फाइबर परियोजना मोदी सरकार के डिजिट इंडिया अभियान के लिहाज से केंद्रीय अहमियत रखती है। इसके माध्यम से नागरिकों को डिजिटल माध्यम से जोडऩे और ग्रामीण एवं शहरी भारत के बीच डिजिटल विभेद को दूर करने का भी लक्ष्य है।
इस मकसद को हासिल करने में मददगार के तौर पर विशेष कंपनी भारत ब्रॉडबैंड नेटवर्क (बीबीएनएल) का गठन दूरसंचार मंत्रालय ने किया है। यह कंपनी भारतनेट परियोजना के प्रबंधन, स्थापना एवं परिचालन का दायित्व संभाल रही है। कंपनी अधिनियम के प्रावधानों के तहत एक सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी के तौर पर वर्ष 2012 में इसका गठन हुआ था।
इस अभियान के पीछे हरेक ग्राम पंचायत को न्यूनतम 100 मेगाबाइट प्रति सेकंड का बैंडविड्थ मुहैया कराने की सोच है। ऐसा होने पर हरेक पंचायत में ऑनलाइन सेवाओं की आसान पहुंच हो सकेगी। इससे ई-गवर्नेंस, ई-कॉमर्स, ई-शिक्षा, ई-बैंकिंग और ई-स्वास्थ्य सेवाओं तक हरेक ग्रामीण की पहुंच संभव हो सकेगी।
इस महत्त्वाकांक्षी परियोजना के दूसरे चरण को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने जनवरी में ही संस्तुति दे दी थी। इस कार्यक्रम का कुल बजट 42,068 करोड़ रुपये का है जिसमें से 18,792 करोड़ रुपये दूसरे चरण के लिए चिह्नित किए गए हैं।
राष्ट्रीय ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क पैनल की 2015 में आई रिपोर्ट के आधार पर दूसरे चरण की योजना तैयार की गई है। इसे अमलीजामा पहनाने के लिए सरकार, निजी क्षेत्र एवं सार्वजनिक उपक्रमों को आधार बनाने की बात कही गई है। इसका मतलब है कि कनेक्टिविटी मुहैया कराने के लिए इस योजना में ऑप्टिकल फाइबर, रेडियो एवं उपग्रह जैसे अधिकतम माध्यमों का इस्तेमाल किया जाएगा। इसके अलावा अंतिम चरण की कनेक्टिविटी सुनिश्चित करने के लिए वाई-फाई तकनीक का भी सहारा लिया जाएगा ताकि घर एवं दफ्तर हर जगह इंटरनेट चालू रहे।
आठ राज्यों ने राज्य की अगुआई वाले मॉडल को चुना है जबकि मुश्किल भौगोलिक क्षेत्रों वाले राज्यों ने उपग्रह-आधारित मॉडल को ही लागू करने का फैसला किया है।