कांग्रेस के नेता एवं पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने सोमवार को कहा कि उन्हें नहीं लगता कि बजट में आयकर में राहत की घोषणा से देश में वस्तु एवं सेवाओं के उपभोग में इजाफा हो पाएगा और न ही इससे अर्थव्यवस्था को ताकत मिल पाएगी। चिदंबरम ने कहा कि कर राहत की घोषणा से बचने वाले 1 लाख करोड़ रुपये अर्थव्यवस्था की सुस्ती दूर करने में मददगार नहीं होंगे।
वित्त वर्ष 2025-26 के बजट पर राज्य सभा में चर्चा की पहल करते हुए चिदंबरम ने कहा कि यह विश्वास करना कठिन है कि 1 लाख करोड़ रुपये से अर्थव्यवस्था रफ्तार पकड़ पाएगी। उन्होंने सवाल किया कि क्या इस रकम का एक हिस्सा पुराने कर्ज चुकाने, विदेश में बच्चों को पढ़ाने और आयातित वस्तुएं खरीदने में नहीं खर्च नहीं होगा। उन्होंने बजट में व्यक्त इस अनुमान पर भी संदेह जताया कि 1 लाख करोड़ रुपये कर राजस्व नुकसान के बावजूद वर्ष 2025-26 में कर राजस्व में पिछले वित्त वर्ष की तरह ही 11.1 प्रतिशत की बढ़ोतरी होगी। चिदंबरम ने कहा, ‘यह केवल जादुई बातें ही लगती हैं। इसमें गणित कहीं नहीं दिख रहा है। मैं फिलहाल इस विषय पर कुछ नहीं कहना चाहूंगा कि आयकर राहत से कितना फायदा होगा। मैं बाद में इस पर टिप्पणी करूंगा।’ उन्होंने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से आग्रह किया कि आर्थिक वृद्धि को गति देने वाले दूसरे पहलुओं जैसे निर्यात एवं पूंजीगत निवेश को निश्चित रूप से बढ़ावा मिलना चाहिए। उन्होंने कहा कि केवल उपभोग के भरोसे देश की आर्थिक गति तेज नहीं की जा सकती है।
चिदंबरम ने कहा कहा कि सरकार ने राजनीतिक नफा-नुकसान का आकलन करने के बाद यह बजट तैयार किया था। उन्होंने कहा कि दिल्ली विधान सभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए बजट में आयकर में राहत देने की घोषणा की गई थी। उन्होंने कहा कि वित्त मंत्री देश के गरीब और पिछड़े लोगों को भूल गईं। इस बात पर तनिक भी विचार नहीं किया गया कि 2012 से 2024 तक 12 वर्ष की अवधि के दौरान खाद्य, शिक्षा और इलाज महंगा होने से लोगों की कमर टूट गई है।
उन्होंने कहा कि घरेलू बचत 25.2 प्रतिशत से कम होकर 18.4 प्रतिशत रह गई और 2023 में घरेलू उपभोग सर्वेक्षण के अनुसार ग्रामीण परिवार की औसत मासिक प्रति व्यक्ति व्यय केवल 4,226 रुपये रह गया और शहरी इलाकों में यह 6,996 रुपये दर्ज किया गया।
चिदंबरम ने कहा कि आयकर में राहत देने के साथ ही वित्त मंत्री जीएसटी में भी कमी कर सकती थीं और मनरेगा के अंतर्गत पारिश्रमिक बढ़ाने का निर्णय भी ले सकती थीं। उन्होंने कहा कि बजट में न्यूनतम वेतन की वैधानिक सीमा भी बढ़नी चाहिए थी। उन्होंने कहा, ‘वित्त मंत्री ने कुछ नहीं किया। उनका ध्यान केवल आयकर और दिल्ली विधान सभा चुनाव पर टिका था।’
चिदंबरम ने कहा कि बजट में दूरदर्शी सोच और नीति दोनों का ही अभाव था। उन्होंने सरकार पर आरोप लगाया कि उसने आर्थिक समीक्षा के उस सुझाव पर गौर नहीं किया कि सरकार को कारोबार की राह सुगम बनाने के लिए नियम-कायदे सरल बनाने चाहिए।
चिदंबरम ने कहा कि चालू वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटा 4.8 प्रतिशत रखने का लक्ष्य केंद्र के पूंजीगत व्यय में कमी और राज्यों के अनुदान में कमी से कर प्राप्त किया गया है।
लोकसभा में द्रमुक के दयानिधि मारन ने कहा कि आयकर राहत से भले ही अल्प अवधि में कुछ लाभ दिख जाए मगर दीर्घ अवधि के लिहाज से इसका कोई खास असर नहीं दिखेगा। कांग्रेस के मनीष तिवारी ने दावा किया कि पिछले एक दशक में सरकार पर कर्ज काफी चढ़ गया जिससे आने वाली पीढ़ियों के लिए मुश्किलें बढ़ गई हैं। भारतीय जनता पार्टी के अनुराग ठाकुर ने बजट की तारीफ की और कहा कि इससे अर्थव्यवस्था को कई मोर्चों पर ताकत मिलेगी। उन्होंने कहा, ‘राहुल गांधी इस बजट को बस अर्थव्यवस्था के घाव पर मरहम पट्टी बता रहे हैं। मैं उन्हें बताना चाहूंगा कि यह बजट देश की अर्थव्यवस्था को काफी मजबूती देगा।’