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स्मृति शेष: नई सदी के अग्रणी मार्क्सवादी नेता सीताराम येचुरी का निधन, वामपंथ और चुनावी राजनीति में संतुलन साधने में थे माहिर

साम्यवादी शासन वाले देशों की दिक्कतों के बारे में एक बार येचुरी ने कहा था कि इस विषय पर उनकी पसंदीदा फिल्मों में से एक थी क्यूबा में बनी कॉमेडी फिल्म ‘डेथ ऑफ अ ब्यूरोक्रेट'।

Last Updated- September 12, 2024 | 11:02 PM IST
Memory remains: Sitaram Yechury, the leading Marxist leader of the new century, passes away, was an expert in balancing leftism and electoral politics स्मृति शेष: नई सदी के अग्रणी मार्क्सवादी नेता सीताराम येचुरी का निधन, वामपंथ और चुनावी राजनीति में संतुलन साधने वाले व्यावहारिक नेता

साम्यवाद के व्यापक वैचारिक खाके को लेकर प्रतिबद्ध रहे सीताराम येचुरी अपनी पार्टी में उन दुर्लभ नेताओं में शुमार थे जो चुनावी राजनीति की जरूरतों पर भी पकड़ रखते थे। अपने मार्गदर्शक हरकिशन सिंह सुरजीत की राजनीतिक विरासत को सही ढंग से आगे ले जाने वाले येचुरी (72) ने गुरुवार को नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में अंतिम सांस ली। वह फेफड़ों में संक्रमण के बाद वहां भर्ती थे।

आजीवन मार्क्सवाद के प्रति समर्पित रहे येचुरी मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के शीर्ष नेताओं में से एक रहे। उन्होंने सन 2000 के दशक के शुरुआती दौर से ही यह प्रयास आरंभ कर दिया था कि देश का वामपंथी आंदोलन भारत की सामाजिक-सांस्कृतिक जटिलताओं को लेकर अपने सैद्धांतिक दृष्टिकोण का त्याग करे और संघ परिवार से निपटने के लिए चुनावी और सामाजिक गठबंधन स्थापित करने पर काम करे।

सन 1992 से 2005 तक जब सुरजीत ने माकपा का नेतृत्व किया तो इस दौरान यानी 1996 में संयुक्त मोर्चा सरकार और 2004 में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार को आकार देने में येचुरी ने उनके सिपहसालार के रूप में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने संयुक्त मोर्चा सरकार के न्यूनतम साझा कार्यक्रम के निर्माण में कांग्रेस के पी. चिदंबरम के साथ मदद की और संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की पहली सरकार में वह इसके शिल्पकारों में से एक थे।

येचुरी ने पड़ोसी मुल्क नेपाल के माओवादी विद्रोहियों को प्रेरित किया कि वे जंग छोड़कर बहुदलीय लोकतांत्रिक प्रक्रिया में शमिल हों। पार्टी की केंद्रीय समिति के अंतरराष्ट्रीय विभाग के मुखिया के रूप में येचुरी विदेशों में पार्टी की पहचान भी थे।

वर्ष 2008 में भारत-अमेरिका नाभिकीय समझौते के समय वाम के विरोध को लेकर माकपा के तत्कालीन महासचिव प्रकाश करात के साथ येचुरी की असहजता किसी से छिपी नहीं है। परंतु इस बात को लेकर विवाद है कि पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु को प्रधानमंत्री बनाने के प्रस्ताव को केंद्रीय समिति में खारिज करने में करात और वे एकमत थे या उनके विचार अलग-अलग थे।

इन तमाम बातों के बीच बसु अपने निधन तक येचुरी को स्नेह करते रहे और येचुरी भी जब कभी कोलकाता होते तो बसु के पास अवश्य जाते। बसु ने एक बार माकपा के एक नेता से कहा था कि उन्होंने प्रधानमंत्री बनने पर येचुरी के लिए विदेश मंत्री का पद सोचा था। नाभिकीय समझौते पर येचुरी ने 2015 में कहा था कि माकपा को नाभिकीय समझौते के बजाय आजीविका के मुद्दे पर सरकार से समर्थन वापस ले लेना चाहिए था।

निजी बातचीत में येचुरी एक व्यावहारिक वामपंथी और सोशल डेमोक्रेट थे। वह सोवियत संघ के पतन के कारणों पर भी नजरिया देते थे। साम्यवादी शासन वाले देशों की दिक्कतों के बारे में एक बार येचुरी ने कहा था कि इस विषय पर उनकी पसंदीदा फिल्मों में से एक थी 1966 में क्यूबा में बनी कॉमेडी फिल्म ‘डेथ ऑफ अ ब्यूरोक्रेट’। इस फिल्म में एक क्रांतिकारी की विधवा पत्नी की कहानी थी जिसे पेंशन पाने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। फिल्म एक साम्यवादी देश में लालफीताशाही पर तंज कसती है।

येचुरी 12 अगस्त, 1952 को एक तेलुगू परिवार में जन्मे थे और उन्होंने सेंट स्टीफंस कॉलेज और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से पढ़ाई की थी। जेएनयू में वह तीन बार छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गए। वह 1975 में आपातकाल के दौरान गिरफ्तार भी हुए थे। उन्हें 1985 में माकपा की केंद्रीय समिति में और 1992 में पोलित ब्यूरो में शामिल किया गया था।

येचुरी उन चुनिंदा वामपंथी नेताओं में शामिल थे जो वाम आंदोलन की सांस्कृतिक संबद्धता के महत्त्व को सराहते थे और सहमत संस्था द्वारा आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रमों में नियमित रूप से उपस्थित रहते थे। उनके पुराने साथियों ने याद किया कि कैसे वह चाणक्य सिनेमा में फिल्म देखने जाया करते थे। येचुरी पार्टी के साथियों के लिए हमेशा सुलभ रहते थे और पार्टी कैंटीन में वह काली चाय और अनफिल्टर्ड सिगरेट के साथ कॉमरेड्स के साथ हिंदी, बांग्ला, तमिल, तेलुगू, मलयालम और अंग्रेजी भाषाओं में चर्चा किया करते। पार्टी प्रमुख बनने तक वह अपनी मारुति जेन कार खुद चलाते थे।

येचुरी 2005 से 2017 तक राज्य सभा में रहे और संसद में कांग्रेस नेता राहुल गांधी अक्सर उनके कक्ष में जाया करते जहां वे घंटों बातचीत करते। वह 2015 में प्रकाश करात के बाद माकपा के महासचिव बने। यह वह दौर था जब पार्टी चुनावी राजनीति में तेजी से पिछड़ रही थी। जब 2019 में माकपा की केंद्रीय समिति ने लोक सभा चुनावों के लिए कांग्रेस के साथ समझौते के प्रस्ताव को नकारा तो येचुरी ने इस्तीफा देने की पेशकश की थी। उन्होंने 2024 के चुनावों के लिए इंडिया गठबंधन बनाने में भी मदद की थी।

First Published - September 12, 2024 | 11:02 PM IST

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