संसद के मॉनसून सत्र के अंतिम दिन 20 अगस्त को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 130वां संविधान संशोधन विधेयक पेश किया, जिसमें प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री अथवा केंद्र और राज्य सरकार के किसी भी अन्य मंत्री को गंभीर आपराधिक आरोपों में गिरफ्तार किए जाने और हिरासत में रखे जाने की स्थिति में हटाने का प्रावधान है। ये प्रावधान दिल्ली के केंद्र शासित प्रदेश पर भी लागू होंगे। पुदुच्चेरी और जम्मू-कश्मीर में भी इन्हीं नियमों को लागू करने के लिए ऐसे ही दो अन्य विधेयक पेश किए गए हैं। तीनों विधेयकों को संसद की संयुक्त समिति को भेज दिया गया है। देश के कई राज्यों में ऐसे मुख्यमंत्री पद आसीन हैं, जिनके खिलाफ कई-कई गंभीर आरोपों वाले मामले दर्ज हैं।
किसी मंत्री पर 5 साल या अधिक की कैद की सजा वाले अपराध का आरोप है और लगातार 30 दिनों से हिरासत में है तो उसे पद से हटा दिया जाएगा।
लगातार 31वें दिन तक हिरासत में रहने वाले केंद्र सरकार के मंत्री को प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा हटाया जाएगा। यदि प्रधानमंत्री इस समय तक राष्ट्रपति को सलाह नहीं देते हैं तो मंत्री अगले दिन से पद पर नहीं रहेंगे। यही प्रावधान राज्य स्तर पर भी लागू होगा, जहां राज्यपाल मुख्यमंत्री की सलाह पर आरोपी मंत्री के खिलाफ कार्रवाई करेंगे। प्रधानमंत्री या राज्य और दिल्ली के मुख्यमंत्री के मामले में लगातार हिरासत के 31वें दिन इस्तीफा दे देना होगा। यदि व्यक्ति इस समय तक इस्तीफा नहीं देता है, तो वह अगले दिन से पद मुक्त मान लिया जाएगा।
पद से हटाए गए मंत्री को हिरासत से रिहा होने के बाद पुन: नियुक्त किया जा सकता है। 3 में से 1 मुख्यमंत्री पर गंभीर आपराधिक आरोप एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने राष्ट्रपति शासन के अधीन मणिपुर को छोड़कर राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के सभी 30 वर्तमान मुख्यमंत्रियों के स्व-शपथ पत्रों का विश्लेषण किया। इसने मुख्यमंत्रियों द्वारा उनके अंतिम चुनाव लड़ने से पहले दाखिल किए गए शपथ पत्रों से डेटा निकाला है। उनके शपथ पत्रों के अनुसार 40 प्रतिशत (30 मुख्यमंत्रियों में से 12) ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले घोषित किए हैं। इसी तरह 33 प्रतिशत (10 मुख्यमंत्रियों) पर हत्या का प्रयास, अपहरण, रिश्वतखोरी और आपराधिक धमकी सहित गंभीर आपराधिक मामले हैं।
एडीआर गंभीर आपराधिक मामलों को उन मामलों के रूप में परिभाषित करता है जिनमें अधिकतम पांच साल या उससे अधिक की सजा हो अथवा जो गैर-जमानती, संज्ञेय या चुनावी प्रकृति के हों। इसमें भ्रष्टाचार, हमला, हत्या, अपहरण, बलात्कार, महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराध, राजकोष को नुकसान पहुंचाने वाले अपराध और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8 या भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत सूचीबद्ध अपराध भी शामिल हैं।