प्रदेश सरकार ने 36 वर्ष पूर्व घटित भोपाल गैस त्रासदी के केंद्र यूनियन कार्बाइड कारखाने के गोदाम और तालाब के पास दफन विषाक्त कचरे को नष्ट करने के लिए निविदा जारी की है। परंतु गैस पीडि़तों के अधिकारों के लिए काम करने वाले संगठनों का कहना है कि यूनियन कार्बाइड का कुल कचरा बताये जा रहे कचरे की तुलना में बहुत ज्यादा है और सरकार का यह कदम कचरा निस्तारण करने में नाकाम साबित होगा।
गैस पीडि़तों के लिए काम करने वाले भोपाल ग्रुप फॉर इन्फॉर्मेशन ऐंड एक्शन से संबद्ध सामाजिक कार्यकर्ता रचना धींगरा कहती हैं, ‘कारखाने के गोदाम में पड़ा 337 टन कचरा जिसे हटाने की निविदा जारी करने की बात गैस राहत मंत्री विश्वास सारंग ने की है, वह कुल कचरे का केवल पांच प्रतिशत है।’
धींगरा ने कहा कि नागपुर स्थित नैशनल एन्वायरनमेंट इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (नीरी) की रिपोर्ट के अनुसार कारखाने के भीतर 21 जगहों पर जहरीला कचरा दबा हुआ है जिसका कोई आकलन नहीं किया गया है। उन्होंने कहा कि 32 एकड़ में बने सोलर एवोपरेशन पॉन्ड में 1977 से ही कचरा डाला जाता रहा है और गैस कांड की त्रासदी घटित होने से पहले 1982 में ही तालाब की लाइन फटने से कचरे का विषाक्त हिस्सा भूजल में मिलने लगा था। धींगरा ने दावा किया तालाब में ही 1.7 लाख टन जहरीला कचरा है।
गैस राहत मंत्री विश्वास सारंग के मुताबिक कचरा हटाने की प्रक्रिया शुरू की गई है और इसे पर्यावरण मंत्रालय के अधिकारियों की निगरानी में अंजाम दिया जाएगा। मंत्री ने कारखाना स्थल पर एक स्मारक बनाए जाने की बात भी दोहराई। इस पर आपत्ति जताते हुए गैस पीडि़त संगठनों ने कहा कि पीडि़तों को अब तक सही इलाज, पेंशन और पुनर्वास नहीं मिल सका है लेकिन सरकार उसी जहरीली जमीन पर 100 करोड़ रुपये का स्मारक बनाना चाहती है जो समझ से परे है।
