नए निर्यात ऑर्डरों में आई बढ़ोतरी ने जालंधर के 600 करोड़ रुपये के खेल उद्योग के लिए खुशियां लौटा दी हैं।
कुछ समय पूर्व तक शहर का खेल उद्योग निर्यात मांगों में कमी से मायूस नजर आ रहा था। बहुराष्ट्रीय खेल उत्पाद कंपनियों की ओर से पिछले साल अगस्त से लेकर इस साल जनवरी तक मांगें काफी कम रही थीं।
इस दौरान नए ऑर्डरों में करीब 25 से 40 फीसदी की गिरावट आई थी। लेकिन अब उद्योग जगत के लिए राहत की बात यह है कि इन्हें दोबारा से निर्यात ऑर्डर मिलने लगे हैं। विशेषज्ञों के अनुसार मांग में करीब 15 से 20 फीसदी की बढ़ोतरी पहले ही देखने को मिल चुकी है और आने वाले दिनों में हालात और सुरधने की उम्मीद की जा रही है।
अगस्त से जनवरी के बीच निर्यात में कमी की एक वजह मंदी का होना बताया जा रहा है। साथ ही पाउंड और ऑस्ट्रेलियाई डॉलर के मुकाबले रुपया मजबूत होने के कारण भी निर्यात को चोट पहुंची थी। निर्यातकों को मुद्रा में इस उतार-चढ़ाव के कारण काफी नुकसान हुआ, क्योंकि आम तौर पर निर्यात के लिये ऑस्ट्रेलियाई डॉलर में बीजक का इस्तेमाल करते हैं और अमेरिकी डॉलर की तुलना में यह काफी अस्थिर होता है।
बिजनेस स्टैंडर्ड से बातचीत में खेल उत्पाद निर्माता और निर्यातक संघ के निदेशक रघुनाथ राणा ने बताया कि इस साल हमारा निर्यात अगस्त से जनवरी के बीच मांगों में कमी के कारण बुरी तरह प्रभावित रहा। इसके साथ ही ऑस्ट्रेलियाई डॉलर और पाउंड के मुकाबले रुपये की मजबूती ने भी निर्यात को काफी प्रभावित किया।
ऑस्ट्रेलियाई डॉलर और पाउंड के मुकाबले रुपये की 15 से 20 फीसदी मजबूती ने भी निर्यात को बुरी तरह प्रभावित किया। ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और कुछ अन्य यूरोपीय देशों में भारतीय खेल उत्पाद उद्योग का 70 फीसदी का कारोबार है।
उन्होंने आगे बताया कि सितंबर का लक्ष्य पहले ही बढ़ाकर तय किया गया है। लेकिन अगस्त से जनवरी इस संकट के कारण पंजाब से निर्यात के द्वारा राजकोष में 390 करोड़ रुपये का ही योगदान हो सकेगा। पिछले साल 2007-08 में राज्य ने 350 करोड़ रुपये का योगदान दिया था।
कुछ ऐसा ही राग अलाप रहे सावी इंटरनेशनल के अशोक वर्मा का कहना है कि पिछले महीनों की तुलना में स्थितियां काफी सुधरी हैं। राज्य के कुल खेलोत्पाद उत्पादन में जालंधर का 90 फीसदी योगदान है, यह शहर इस उद्योग का केन्द्र है।
यहां फुटबॉल, क्रिकेट बैट, हॉकी, क्रिकेट बॉल, हॉकी स्टिक, टेनिस बैडमिंटन और स्क्वैश रैकेट, शटल कॉक आदि परंपरागत खेल उत्पाद बनाये जाते हैं। 1948 में बंटवारे के बाद खेलोत्पाद उद्योग सियालकोट से जालंधर में लाया गया था। इसके बाद उद्योग अपनी चमक बिखेरने लगा।
अपर्याप्त पूंजी और तकनीक के बाद भी इस उद्योग ने खुद को साबित किया। इस उद्योग ने प्रत्यक्ष रूप से 10,000 और अप्रत्यक्ष रूप से 40,000 लोगों को रोजगार दिया।
