राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) प्रमुख शरद पवार ने भारतीय जनता पार्टी को टक्कर देने के लिए एक गैर-कांग्रेसी गठबंधन तैयार करने की मुहिम शुरू की है। उनकी इस पहल में पूर्व वित्त मंत्री एवं भाजपा के पूर्व नेता यशवंत सिन्हा और राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर भी शामिल हैं।
पवार ने मंगलवार को दिल्ली स्थित अपने आवास पर सभी गैर-कांग्रेसी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों को आमंत्रित किया है। यह नई मुहिम 1980 के दशक के राजनीतिक गुटबंदी से मेल खाती है जब सभी दलों ने मिलकर कांग्रेस को भारतीय राजनीति के शीर्ष स्थान से कई वर्षों तक बेदखल कर दिया था। हालांकि उनका यह कदम अंतर्विरोध से अछूता नहीं है लेकिन कांग्रेस के एक पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि फिलहाल तो कांग्रेस को सबसे अधिक चिंता करने की जरूरत है।
इस बीच, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पेट्रोल की तेजी से बढ़ती कीमतों सहित विभिन्न चुनौतियों पर चर्चा के लिए पार्टी नेताओं की बैठक बुलाई है।
प्रशांत किशोर ने पवार से दो चरणों में बातचीत की थी। पहले चरण में 3 घंटे तक चली बैठक में दोनों नेताओं ने राकांपा और शिवसेना के बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) का चुनाव साथ लडऩे के विकल्प पर भी चर्चा की थी।
जब एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने मुंबई में पवार से मुलाकात की थी तो उन्होंने कहा था कि पवार ने माना कि कांग्रेस के बिना कोई भी मुहिम भाजपा को टक्कर देने के लिए नाकाफी होगी। संभवत: किशोर ने पवार को कांग्रेस को दूर रखने की सलाह दी होगी और कांग्रेस नेताओं का भी कहना है कि उन्होंने (किशोर) ही पवार को कांग्रेस को शामिल करने नहीं दिया होगा।
समझा जा रहा है कि अगर वरिष्ठ नेताओं जैसे के चंद्रशेखर राव, एम के स्टालिन और ममता बनर्जी बैठक में शामिल नहीं हुए तो भी वे अपने प्रतिनिधियों को जरूर भेजेंगे और भाजपा के खिलाफ गठबंधन तैयार करने में दिलचस्पी दिखाएंगे। यह स्पष्ट नहीं है कि शिरोमणि अकाली दल को न्योता दिया गया है या नहीं। शिरोमणि अकाली दल के सूत्रों ने कहा कि पंजाब विधानसभा के आगामी चुनाव में कांग्रेस को उस हद तक सफलता नहीं मिलेगी जितनी वह उम्मीद कर रही है। सूत्रों ने कहा कि ऐसी सूरत में पार्टी अपनी पूर्व सहयोगी भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाने का विकल्प खुला रखना चाहती है।
माकपा के नेतृत्व वाले वाम मोर्चे ने केरल में राकांपा के साथ गठबंधन किया है। माकपा के मुख्य सचिव सीताराम येचुरी और पवार एक दूसरे के संपर्क में हैं। हालांकि पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी और वामपंथी दल एक दूसरे के धुर विरोधी हैं। क्या भाजपा के खिलाफ विपक्षी दलों की एकता कायम करने के लिए वे अपने मतभेद भुला सकते हैं? कई कांग्रेस नेताओं का मानना है कि जब मोदी के खिलाफ लामबंद होने की बात होती है तो सभी दल अपने मतभेद भुला देते हैं। कांग्रेस के एक नेता ने कहा, ‘पश्चिम बंगाल में वाम दलों और तृणमूल के बीच मतभेद जरूर हैं लेकिन मोदी से लडऩे की बात आने पर उनकी आपसी लड़ाई खत्म हो जाती है।’ फिलहाल कांग्रेस की हालत सबसे खराब है। सार्वजनिक मंचों पर इसके नेताओं ने दमखम वाली बातें जरूर कीं लेकिन अंदर ही अंदर उन्होंने माना कि पवार की तरफ से पहल हो चुकी है और कांग्रेस इसमें कहीं शामिल नहीं है। कुछ महीने पहले शरद पवार के सिपहसालारों ने संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के नेतृत्व पर सवाल उठाया था और सवालिया लहजे में पूछा था कि आखिकर कांग्रेस संप्रग को एक सक्रिय और मजबूत विपक्षी खेमा बनाए रखने के लिए कुछ क्यों नहीं कर रही है। पवार के लोगों ने संप्रग प्रमुख के तौर पर पवार का नाम भी उछाला था।
कुछ महीने पहले पश्चिम बंगाल चुनाव से पहले ममता बनर्जी ने कांग्रेस सहित सभी विपक्षी दलों को पत्र लिखकर भाजपा के खिलाफ एकजुट होने की अपील की थी। लेकिन इस पर विपक्षी दलों ने बहुत उत्साह नहीं दिखाया था। पवार की बात दूसरी है। पहली बात तो वह वरिष्ठ हैं और विभिन्न दलों को एक साथ लाने और उनसे बात करने की उनमें क्षमता मौजूद है। कांग्रेस के एक नेता ने कहा, ‘जो काम पवार करने जा रहे हैं वह कांग्रेस को करना चाहिए था। अफसोस की बात है कि कांग्रेस के बजाय कोई और यह पहल कर रहा है।’