यूं तो लालू प्रसाद को उनकी हाजिरजवाबी के लिए जाना जाता है, पर इन दिनों वह थोडे उखड़े-उखड़े से नजर आ रहे हैं।
कभी पार्टी कार्यकर्ताओं पर अपना गुस्सा निकाल रहे हैं तो कभी संवाददाता सम्मेलनों में पत्रकारों को बाहर का रास्ता दिखा रहे हैं। दरअसल, 2009 के लोकसभा चुनाव में बिहार में अपनी पार्टी के प्रदर्शन को लेकर वह थोड़ा चिंतित नजर आ रहे हैं।
अगर रेल मंत्री को खुद के लिए और अपनी पार्टी के सदस्यों के लिए लोकसभा की ट्रेन पकड़नी है तो बिहार में दूसरे चरण का चुनाव उनके लिए बहुत महत्त्वपूर्ण रहेगा। गुरुवार को बिहार की जिन 13 लोकसभा सीटों पर मतदान होना है, 2004 में उनमें से 11 पर संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (जिसमें लालू प्रसाद, रामविलास पासवान और कांग्रेस भी शामिल है) ने जीत दर्ज की थी।
इन 13 सीटों में से महज 2 पर ही जनता दल यूनाइटेड और भाजपा का कब्जा हो पाया था। दूसरे चरण के इस मतदान में ही हाजीपुर संसदीय सीट से रामविलास पासवान अपनी किस्मत आजमाएंगे। वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में संप्रग ने बिहार की 40 में से 29 सीटों में अपना परचम लहराया था (राजद 22, कांग्रेस 3 और लोजपा 4) और यह इन तीन दलों के गठबंधन के कारण ही हो पाया था।
पश्चिमी और पूर्वी चंपारण, सीतामढ़ी, मधुबनी, दरभंगा, समस्तीपुर और वैशाली जिलों में गठबंधन ने शानदार प्रदर्शन किया था और इस बार दूसरे चरण के मतदान में इन सभी जिलों में मतदान होना है। पिछली बार भाजपा को इन सीटों में से 1 में भी जीत नहीं मिली थी, वहीं जदयू 2 सीटें जीतने में कामयाब रही थी।
पश्चिमी और पूर्वी चंपारण, सीतामढ़ी, मधुबनी और दरभंगा जैसे जिलों को राज्य के गरीब क्षेत्रों में गिना जाता है और ये विकास के मामले में काफी पिछड़े हुए हैं। हालांकि दरभंगा के रास्ते मुजफ्फरपुर से नेपाल सीमा तक जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग को 8 लेन एक्सप्रेसवे में तब्दील किया गया है, पर इस रास्ते से होकर गुजरने पर पता चलेगा कि औद्योगिक इकाई या फैक्टरी के नाम पर यहां कुछ भी नहीं है।
