उत्तराखंड भले ही गंभीर बिजली संकट से गुजर रहा हो पर उसके बावजूद राज्य सरकार अब तक वैकल्पिक ऊर्जा के स्त्रोतों का विकास करने की दिशा में कोई कामयाब कदम नहीं उठा पाई है।
राज्य की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए राज्य सरकार की योजना गैस क्षेत्र में ऊर्जा संयंत्र लगाने की थी, पर इस दिशा में सरकार को कोई सफलता हाथ नहीं लगी है। तीन साल पहले प्राकृतिक गैस से जुड़ी विभिन्न परियोजनाओं की संभावनाओं का पता लगाने के लिए गेल इंडिया के साथ गठजोड़ करने का प्रयास किया था।
सरकार की योजना उत्तराखंड में नैशनल गैस ग्रिड के विस्तार की थी। साथ ही राज्य सरकार ने रिलायंस इंडस्ट्रीज जैसी निजी कंपनियों के साथ भी इस मोर्चे पर गठजोड़ का प्रयास किया था। पर उसके बाद से ही सरकार ने इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। एक अधिकारी ने बताया, ‘सरकार के साथ साथ गेल ने भी इस परियोजना के प्रति कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है।’
राज्य में फिलहाल बिजली की मांग 2.3 से 2.5 करोड़ यूनिट के करीब है जिसमें सालाना 10 से 15 फीसदी का इजाफा होने की उम्मीद है। राज्य में आने वाले दिनों में जिस रफ्तार से औद्योगिक इकाइयों के खुलने की उम्मीद है उससे तो यही लगता है कि आने वाले दिनों में बिजली की मांग भी उसी तेजी से बढ़ेगी।
उत्तराखंड राज्य बुनियादी ढांचा और औद्योगिक विकास निगम (एसआईडीसीयूएल) ने गैस आधारित ऊर्जा परियोजनाओं में तेजी लाने के लिए गेल के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किया था। पर इन परियोजनाओं के लिए व्यावहारिता रिपोर्ट अब तक तैयार नहीं की जा सकी है।
राज्य सरकार ने राज्य में प्राकृतिक गैस और संबंधित उत्पादों की मांग का पता लगाने के लिए अब तक कोई मूल्यांकन भी नहीं करवाया है। न ही सरकार ने कम्प्रेस्ड नेचुरल गैस (सीएनजी), रीगैसिफाइड लिक्विफाइड नेचुरल गैस (आरएलएनजी) और पाइप्ड नेचुरल गैस (पीएनजी) के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए भी कोई अभियान नहीं चलाया है।
गेल की पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में एचबीजे ट्रंक पाइपलाइन नेटवर्क है जिसके लिए सबसे नजदीकी स्थान बरेली है जहां से उत्तराखंड के लिए प्राकृतिक गैस जैसा साफ ईंधन उपलब्ध कराया जा सकता है। उत्तराखंड में इस गैस को लाने के दो रास्ते हैं। पहला रास्ता 95 किमी लंबा है जो बरेली से होते हुए रुद्रप्रयाग, रामनगर और हल्दवानी तक पहुंचता है।
दूसरी पाइपलाइन 200 किमी लंबी है जो दादरी से हरिद्वार और देहरादून तक पहुंचती है। प्राथमिक आकलन के मुताबिक दोनों रास्तों के जरिए राज्य में प्रतिदिन 2.13 एमएम घन मीटर प्राकृतिक गैस की मांग है। यह मांग राज्य में मौजूदा उद्योगों के मद्देनजर है और जैसे जैसे उद्योगों का विकास तेज होगा वैसे वैसे इस मांग में भी तेजी आएगी।
राज्य में उद्योगों को दिया जाने वाले विशेष पैकेज की मियाद 31 मार्च, 2010 को पूरी हो रही है और इसे देखते हुए इस साल कई उद्योग इकाइयों ने राज्य में अपना औपचारिक परिचालन शुरू किया है। अब अगर अधिक संख्या में उद्योग इकाइयां काम करेंगी तो राज्य में बिजली की मांग बढ़नी भी तय है।
राज्य में गैस परियोजनाओं की गाड़ी पर लगा ब्रेक
गेल और रिलायंस इंडस्ट्रीज के साथ नहीं बन पा रही बात
बिजली की मांग बढ़ रही पर नहीं है कोई विकल्प
सरकार भी गैस परियोजनाओं के प्रति उदासीन नजर आ रही है
राज्य में बिजली की मौजूदा मांग 2.3 से 2.5 करोड़ यूनिट
उद्योगों के विशेष पैकेज की मियाद मार्च 2010 में होगी पूरी
